मासूमियत मसलने वालों के खिलाफ

व्यवस्था कुलजमा ऐसी होनी चाहिए कि कोई भी इंटरनेट पर बच्चों के यौन शोषण की तस्वीरों को खोज न सके। बात बस इतनी सी ही है। यह कोई सेंसरशिप का मामला नहीं है। इसका अर्थ केवल लोगों को यह बता देना है कि वे इंटरनेट के किसी सर्च इंजन का इस्तेमाल एक ऐसी चीज के लिए नहीं कर सकते, जो पूरी तरह गैर कानूनी है और रुग्ण मानसिकता की निशानी भी। कल जब इंटरनेट की सबसे बड़ी सर्च कंपनी गूगल और सॉफ्टवेयर कारोबार के महारथी संस्थान माइक्रोसॉफ्ट ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी को रोकने के लिए हाथ मिलाया, तो सुरक्षित इंटरनेट का सपना सच लगने लगा। अब इंटरनेट पर ऐसे एक लाख शब्दों का इस्तेमाल सर्च के लिए नहीं हो सकेगा, जिनके जरिये लोग बच्चों के यौन शोषण की तस्वीरों तक पहुंचते थे। कुछ मामलों में तो ऐसी सर्च करने पर तुरंत ही ऑनलाइन चेतावनी भी मिल जाएगी।
यह एक बड़े प्रयास का नतीजा है और इसके लिए दुनिया भर की सरकारों ने चाइल्ड एक्सप्लॉइटेशन ऐंड ऑनलाइन प्रोटेक्शन सेंटर व इंटरनेट वॉच फाउंडेशन के साथ मिलकर कोशिश की। इसके साथ ही इंटरनेट कारोबार में लगी कंपनियों ने भी एकजुटता दिखाई। इंटरनेट को इस जहर से बचाने  का समाधान खोजना आसान नहीं था, इसके लिए काफी मेहनत करनी पड़ी। किसी काम की सफलता को मापने का एक ही पैमाना होता है- इसका नतीजा। अगर यह प्रयास सफल होता है, तो इससे एक तो ऐसे लोगों की संख्या में कमी आएगी, जो इंटरनेट पर बच्चों के यौन शोषण की तस्वीरें खोजते हैं, इससे बच्चों को शोषण भी कम होगा। हमें एक बात कभी नहीं भूलनी चाहिए कि ऐसी हर तस्वीर और ऐसे हर वीडियो के पीछे एक छोटे बच्चे या बच्ची के शोषण की वास्तविक कहानी होती है। ‘चाइल्ड पोर्न’ शब्द के पीछे हमेशा इस कहानी को छिपाया जाता है, अब हमें इस शब्द को हमेशा के लिए अपने शब्द भंडार से निकाल देना चाहिए। बच्चों के यौन शोषण के लिए पोर्न शब्द का इस्तेमाल करके यह बताने की कोशिश होती है कि यह इंसानी काम-इच्छा का ही एक रूप है। अब हमें इसके लिए ‘बाल शोषण’ शब्द का ही इस्तेमाल करना चाहिए, और इसमें किसी तरह की बचने की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। कुछ लोग यह पूछ सकते हैं कि इंटरनेट पर ऐसी तस्वीरों को देखने से रोकना इतना महत्वपूर्ण क्यों है? क्या इन सारे संसाधनों का इस्तेमाल करके बच्चों के किसी भी तरह के शोषण को रोकने की कोशिश नहीं होनी चाहिए? शायद यह ऐसा मामला नहीं है, जिसमें कहा जाए कि या तो शोषण को पूरी तरह से रोको या फिर रोको ही न। ऐसी सभी तस्वीरों में जो भी दिखाया जाता है, वह अपराध है। और हमें पता है कि इसके अपराधी अपनी यात्रा की शुरुआत बच्चों के यौन शोषण की तस्वीरों को खोजकर ही करते हैं। यह चुनौती जितनी बड़ी है और जिस पैमाने पर है, मैं उसे नजरंदाज नहीं कर रहा हूं। मुझे मालूम है कि गूगल और माइक्रोसॉफ्ट ने जिस समझौते के लिए हाथ मिलाए हैं, और कुछ खास शब्दों के जरिये इंटरनेट सर्च पर रोक लगाई जा रही है, सिर्फ उन्हीं से यह अपराध रुकने वाला नहीं है। लेकिन इसके जरिये हम उन लोगों को तो रोक ही सकते हैं, जो यहां से इस खतरनाक रास्ते की यात्रा शुरू करते हैं। हमें पता है कि बच्चों के यौन शोषण की तस्वीरों और इनके वीडियो का आदान-प्रदान इंटरनेट के कई अंधेरे कोनों में होता है, खासकर ऐसी वेबसाइटों, पर जिन्हें ‘पियर टू पियर फाइल शेयरिंग’ वेबसाइट कहा जाता है। बच्चों के यौन शोषण को रोकने की कोशिश में जुटे संगठनों का अगला निशाना भी अब यही वेबसाइट हैं। सबसे बड़ी बात है कि इंटरनेट उद्योग में लगी बड़ी कंपनियां हमारे साथ हैं, जिनके पास इस क्षेत्र का बहुत अच्छा अनुभव है। बेशक अगर हमें बच्चों के शोषण को पूरी तरह रोकना है, तो अभी बहुत कुछ करना होगा। एक तो इसके लिए हमें बच्चों को शिक्षित करना होगा। जितना जल्द हो सके, हमें बाल यौन शोषण के अपराधियों को पहचानना होगा, उनकी धर-पकड़ करनी होगी, उनका इलाज करना होगा, ताकि वे बच्चों के लिए फिर कभी खतरा न बन सकें। इस अपराध को रोकने का कोई अकेला रामबाण तरीका नहीं है। सभी तरह के प्रयास एक साथ करने होंगे। लेकिन इसका यह अर्थ भी नहीं है कि इंटरनेट उद्योग ने इसके लिए जो प्रतिबद्धता दिखाई है, उसे हम नजरंदाज कर दें। यह एक ऐसा कार्यक्रम है, जो निरंतर चलता रहेगा, क्योंकि इसमें लगातार निगरानी, लगातार विकास और पारदर्शिता जैसी चीजों को शामिल किया गया है। अगर बच्चों का यौन शोषण करने वाले और लोगों का पता लगता है, तो हमारा काम है कि हम उन्हें पकड़ें, उन पर मुकदमा चलाएं, उन्हें जेल भेजें और उन्हें सजा दिलवाएं। सबसे ज्यादा दुख की बात यह है कि इस तरह के अपराध करने वाले लोगों की संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है, लेकिन पुलिस द्वारा मुकदमा चलाने और आगे कार्रवाई के लिए भेजे जाने वाले ऐसे मामलों की संख्या घट रही है। सरकारों को बच्चों के यौन शोषण के मसले पर कड़ा रुख अपनाना होगा। बच्चों के यौन शोषण के मुद्दे को अपने राजनीतिक कार्यक्रम में सबसे ऊपर रखना होगा। इसके लिए ज्यादा संसाधनों की जरूरत है, ताकि अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई को अपने अंजाम तक पहुंचाया जा सके। दिक्कत यह भी है कि ऐसे अपराधी तकनीकी तौर पर ज्यादा कुशल होते जा रहे हैं, इसलिए हमें उनसे एक कदम आगे रहना होगा। हमारी पीढ़ी के सामने यह बाल संरक्षण की सबसे बड़ी परीक्षा है। इसमें हमें किसी हाल में नाकाम नहीं होना है।

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