दलित मुख्यमंत्री के राज में भुखमरी से मर गया बेचारा तुलसी

प्रशासन ने किया इंकार, गांव में हाहाकार
बाराबंकी। दलित हितों की दुहाई देने वाली माया सरकार के मंत्री भले ही लाखों के वारे-न्यारे करके अपनी तिजोरियां भर रहे हों! लेकिन बेचारा दलित तुलसीराम महज पेट न भर पाने के चलते ही काल की आकाल मौत का शिकार हो गया। तहसील प्रशासन का रटा रटाया उवाच है मौत स्वाभाविक है न कि भुखमरी। जबकि सारे हालात चीख चीख कर कह रहें है कि तुलसी की मौत स्थानीय प्रशासन की शर्मशार संवेदनहीनता का परिणाम है। वह भी तब जब लेखपाल ने उसे पहले ही मृत दर्शाकर उसका लाल कार्ड भी छीन लिया हो।
    बसपा सरकार में दलितों के साथ किसी भी क्षण भी कुछ भी हो सकता है। लेकिन सरकार के जिम्मेदार लोग केवल वही भाषा समझते हैं जो उनके अधीनस्थ, संवेदनाविहीन, प्रशासनिक अधिकारी उन्हें बताते है। असन्द्रा थाना क्षेत्र के सरवन टिकठा गांव में बीती शाम उस समय कोहराम मच गया जब यहां के स्थानीय निवासी दलित (65 वर्षीय) तुलसीराम की मौत हो गयी। मिली जानकारी के मुताबिक तुलसीराम गरीबी का वह प्रतिरूप था जिसको ग्राम प्रधानी की चुनावी रंजिश का पक्षपात काफी दिनों से चबा रहा था। घटनाक्रम के मुताबिक एक पुत्र व चार पुत्रियांे का पिता तुलसी हर किस्म की सरकारी सुविधाओं से महरूम था। घर में गरीबी के हालात यह थे कि लोगों से मांगकर घर में चूल्हा लता था। हां यह जरूर था कि पूर्व प्रधान ने उस पर तरस खाकर उसका अन्त्योदय कार्ड संख्या 67330 उसे बनाकर जरूर दे दिया था। लेकिन वाह री चुनावी रंजिश जैसे ही प्रधान बदले और नये प्रधान आये ग्राम प्रधान की सैटिंग क्षेत्रीय लेखपाल से हो गयी और फिर तुलसी का लाल कार्ड समाप्त कर दिया गया। यहां शर्मशार यह रहा कि परिजनों का कहना यह है कि उसका जो राशन कार्ड खत्म किया गया वह रिपोर्ट में यह दिखाकर किया गया कि दलित तुलसीराम की मौत एक वर्ष पहले ही हो चुकी है।
    ग्रामीणों व परिजनों के मुताबिक पहले राशन कार्ड कुछ राशन पानी भी मिल जाता था लेकिन इसके बाद तो तुलसीराम के परिवार में भूख के फांके पड़ने लगे। ऐसा नहीं है कि उसने इस अंधेरगर्दी की शिकायत रामसनेहीघाट उपजिलाधिकारी से न की हो उसने की लेकिन पद की हनक में चूर एसडीएम ने उसकी शिकायत को कोई तवज्जों ही नहीं दी। आखिरकार वही हुआ जो नीयत ने तय कर रखा था। भुखमरी, बीमारी, आभाव के दंश बढ़ते गये और इनसे जुझता हुआ दलित तुलसीराम बीती रात कड़ी ठंड मंे प्रदेश की दलित सरकार को उसके कथित दलित हित के प्रयासों को कोसता हुआ चल बसा। बेटे माता प्रसाद व अन्य परिजनों पर मौत का पहाड़ टूट पड़ा। दलित की मौत के बाद तहसील प्रशासन भी जागा और उसके अधिकारी मौके पर पहुंचे। तहसील प्रशासन ने तुगलगी दावा किया कि दलित की मौत स्वाभाविक है, वृद्धा अवस्था व बीमारी के कारण है। उसके पास पर्याप्त मात्रा मंे पेट भरने को संसाधन थे। लेकिन दूसरी तरफ गांव वालों का साफ कहना था कि हम लोग जो जानते हैं वह यह है कि तुलसीराम के घर में गरीबी के दंश ने भुखमरी के दानव को पाल रखा था। जिसके चलते ही उसकी मौत हुई है। फिलहाल यह मौत पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बनी हई है।

पूरे मामले की होगी जांच
बाराबंकी। दलित तुलसीराम की मौत के बाद बचाव की मुद्रा मंे आया तहसील प्रशासन अब यह कहकर इस मौत से पीछा छुड़ा रहा है कि सारे मामले की उच्च स्तरीय जांच करायी जायेगी तथा जो भी इसमें जिम्मेदार पाया जायेगा उसके खिलाफ कार्यवाही भी की जायेगी। प्रशासन का कहना है कि उसका राशन कार्ड किन परिस्थतियों में काटा गया तथा उसे जिन्दा होते हुए मृत कैसे दर्शाया गया इसकी भी जांच होगी। लेकिन फिलहाल दलित की मौत स्वाभाविक ही है नाहक ही इसे भुखमरी के कारण होना बताया जा रहा है।

मौत के बाद मिला राशन
बाराबंकी। वाह री बसपा सरकार और गजब रे तहसील प्रशासन। आज जब दलित तुलसी की मौत हो गयी तो एकाएक ग्राम प्रधान व तहसील प्रशासन के अधिकारी बड़े ही संत हो गये। आनन फानन आदेश हुए और तत्काल कोटेदार को कहा गया कि मृतक के परिजनों को पूरे 11 माह का राशन पहुंचा दिया जाये। आखिरकार वही हुआ। पता चला है कि मृतक के परिजनो ने उक्त राशन लेने से इंकार कर दिया। लेकिन फिर भी वह राशन उन्हें किसी प्रकार दे ही दिये जाने की जुगत की गयी। ग्रामीणों का कहना था कि यदि यही राशन जिन्दा रहते मिल जाता तो शायद आज एक दलित मौत के काल के गाल मंे न समाता। लेकिन फिर भी बसपा सरकार है जहां मौत के बाद ही प्रशासन जागता है।

नौकरशाही के रूतबे में दबी दलित की आवाज
बाराबंकी। भुखमरी से हुई दलित की मौत के बाद हल्कान तहसील प्रशासन अपने पापों को छिपाने पर इस कदर बौखलाया था कि उसने पूरे मामले को रफा दफा करने के लिए मृतक के परिजनों से दबाव डालकर आखिरकार यह लिखवा ही लिया कि तुलसी की मौत स्वाभाविक है न की भुखमरी से। विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक कई घंटो तक दलित की लाश के पड़े रहने व मौत पर चर्चा होने के बाद जागा प्रशासन अंत तक इसी प्रयास में जुटा रहा कि कैसे मामले को अपने पक्ष में किया जाये। मृतक पुत्र माता प्रसाद ने चीख चीख कर मीडिया के सामने कहा कि उसके पिता की मौत भुखमरी से हुई है लेकिन जब नौकरशाही का रूतबा अपनी औकात पर आया तो दलित राज में दलित की आवाज दब कर रह गयी। आनन फानन उससे यह लिखवाया गया कि मौत स्वाभाविक है और लाश का अन्तिम संस्कार भी करवा दिया गया। एक अधिकारी ने कहा कि दरअसल पोस्टमार्टम कराने के लिए मृतक के परिजन तैयार नहीं थे इसलिए यह न हो सका। जबकि चर्चा यह थी कि यदि तहसील प्रशासन पाक साफ था तो उसने भुखमरी से मौत की चर्चा अथवा आरोप के बाद भी दलित मृृतक का पोस्टमार्टम क्यों नहीं करवाया?

मृत तुलसी तब मरा या अब मरा इससे बसपा सरकार को क्या!
   लेखपाल ने काटा राशन कार्ड
  न बना जॉब कार्ड और न मिली पेंशन

बाराबंकी। तहसील रामसनेहीघाट के बनीकोडर ब्लाक के ग्राम सरवन टिकठा निवासी दलित तुलसीराम की मौत को प्रशासन स्वाभाविक बता रहे है। फिलहाल इस पर आश्चर्य करने की कोई बात नहीं है। क्योंकि ग्रामीणों के मुताबिक स्थानीय लेखपाल ने तो उसे एक वर्ष पहले सरकारी कागजों में मृत्युलोक का वासी बना दिया था। ऐसे में बेचारा तुलसी तब मरा या अब मरा इससे स्थानीय अधिकारियों अथवा दलितांे की सरकार कही जाने वाली बसपा सरकार को क्या?
    प्रदेश में दलित हितों के बारे में कोहराम मचाने वाली बसपा की सरकार है। जब भी प्रदेश की मुख्यमंत्री सियासी मंचो पर बोलती हैं तो वे अपने आप को व अपने दल को दलितों का सबसे बड़ा मसीहा बताने में नहीं चूकती। लेकिन यदि जिले में हुई एक नहीं कई घटनाओं पर गौर किया जाये तो साफ नजर आता है कि इस सरकार मंे दलितों पर ही काफी अत्याचार हुए हैं। 65 वर्षीय तुलसीराम चुनावी रंजिश का शिकार हो जाता है। संवेदानाविहीन प्रशासन व उसका मनमाना लेखपाल तुलसी को एक साल पहले ही मृतक दर्शाकर उसका लाल राशन कार्ड खत्म करवा देता है। तुलसीराम चीख चीख कर उपजिलाधिकारी रामसनेहीघाट की चौखट पर इसके लिए गुहार करता है। लेकिन एसडीएम महोदय को दलित राज में इस दलित की पुकार नहीं सुनाई देती। दिन आते जाते रहते हैं गरीबी व भुखमरी का तांडव बढ़ता जाता है और फिर वही हो जाता है जिसकी परिकल्पना राजस्व विभाग के कुछेक जिम्मेदार जन व चुनावी रंजिश से रखने वाले कुछ खूंखार परजीवी कागजों मंे पहले ही साकार कर चुके होंते हैं। आरोपी लेखपाल इस आरोप से इंकार करता है उसका कहना है कि उस पर जो आरोप लगाया जा रहा है वह गलत है उसने जो कुछ किया नियम संगत किया उसे नाहक ही इसमंे खींचा जा रहा है।
    तुलसी की मौत के बाद तहसील प्रशासन के झूठे व बेपरवाही भरे कामों की पोल खुलती नजर आती है। मृतक की मौत होने के बाद उसके घर एक नहीं बल्कि 11 महीनों का राशन भेजा जाता है। संभव है कि हो सकता है कि इस पर अन्य कई सियासत दान आने वाले दिनों में अपनी राजनीति की रोटी सेकते नजर आये। लेकिन यक्ष प्रश्न यह है कि दलित की मौत के पहले जब राजस्व विभाग ने उसके साथ इतना बड़ा गंदा खेल किया की जिन्दा रहते हुए भी उसे मार डाला गया। उस समय अधिकारी तो अधिकारी शायद क्षेत्रीय नेताओं को भी इसकी कोई सुध नहीं आयी थी। ग्रामीणों का साफ कहना है कि भैया यदि राशन कार्ड होता और उसे गल्ला मिलता तो तुलसी अभी और जीते। इस प्रकार स्पष्ट है कि यह एक तुलसी की कहानी नहीं है बल्कि जिले में यदि बारीकी व जिम्मेदारी से खोजे जायें तो कई ऐसे तुलसी ऐड़ियां रगड़-रगड़ कर जिन्दगी को जीते नजर आ ही जायेंगे। मृतक के बेटे माता प्रसाद का कहना था कि वह स्वयं एक नहीं कई बार इसके लिए लेखपाल व प्रधान के पास गया कि मेरा काटा हुआ राशन कार्ड हमे दे दो लेकिन उसकी किसी ने नहीं सुनी। पिता की मौत से आहत माता प्रसाद बार-बार यही कह रहा था कि वाह रे साहब पहलै कागज मा मार डारेयों अब बप्पा सही मा भूखन के मारै मरिगै भगवान तुमका खुशी रखैं। जबकि सत्यता तो यही है कि तुलसी तब मरा या अब मरा इससे सरकार व प्रशासन को भले ही कोई फर्क न होता हो लेकिन उसके परिवार पर तो इसका असर होता ही है।

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Fa!zy:

bahut hi achha article hai janab...

aman srivastava:

hiiiiiiiiiiiiii dadaa je i am aman srivastava from balrampur up 271201

bhupendra:

bhaiya g mujhse lucknow k vikas bhawan k p.d. ne kaha tha jauo s.p. majboot karo ,maine o to kar diya,kya nyaye mil payega mujhe,main aur mera pura pariwar atmahatya ki ore tha pichle 4 sal se,mujhe n...

bhupendra:

bhaiya c.m. banne par aapko bahut -2 badhai.plz meri help kar dijiye warna mai aur mera pariwar barbad ho jayega.bhupendra yadav.lucknow.

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