कपड़े उतरने लगे तो अब सब नंगे होंगे
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दीवार से सट कर खड़े होना एक बात है, तब दीवार आप को सहारा देती है। लेकिन
आप उसे बलपूर्वक गिराने का प्रयत्न करेंगे तो जितनी ताकत से आप उसे धक्का
मारते हैं, उतनी ही ताकत से दीवार आप को उलटा धक्का मारती है। प्रकृति में
गति के इस नियम को तीन सदी पहले न्यूटन ने खोज कर दुनिया को बता दिया था।
पर अभी भी बहुत से लोग इस के बारे में नहीं जानते। इस नियम को जानने के लिए
जरूरी नहीं कि न्यूटन को पढ़ा ही जाए। बहुत लोग हैं जो अपने अनुभव से इसे
जान जाते हैं और दीवारों को गिराने के असफल प्रयत्न नहीं करते। लेकिन फिर
भी कई पढ़े-लिखे समझदार लोग भी अक्सर इस नियम की अवहेलना करते और उस की सजा
पाते दिखाई पड़ते हैं।
तरुण तेजपाल ने भी यही किया। उसने बिलकुल अकेले
में जहां कोई तो क्या सीसीटीवी तक देखता न था, वहां दीवार को गिराने का
प्रयत्न किया। लेकिन दीवार उस की ताकत से अधिक मजबूत निकली, गिरी नहीं
अपितु गति के नियम के मुताबिक प्रतिक्रिया में जो धक्का लगा है उससे धक्का
लगाने वाला खुद ही गिरता नजर आ रहा है। दीवार गिराने का असफल प्रयत्न हमेशा
कुछ निशान तो छोड़ता ही है जो अपराधी तक पहुंचने में सहायक होते हैं।
अपराध के दंड से निकलने के लिए जो गली पकड़ी गई थी वह भी आगे जा कर बंद
निकली और चूहा चूहेदानी में फंस गया। अब चूहा चूहेदानी से बाहर निकलने के
लिए उछलकूद कर रहा है, लेकिन चूहेदानी ऐसी है कि उस के बाहर निकलने के
प्रयत्न निरर्थक साबित हो रहे हैं।
दो व्यक्तियों के बीच कैसी भी घटना
और व्यवहार कदापि वैयक्तिक नहीं हो सकता। मनुष्य जाति का जन्म एक समूह/समाज
में हुआ है। उस की प्रत्येक गतिवधि सामाजिक होती है। वह अपनी किसी भी
गतिविधि के लिए मौजूदा समाज और उस के वर्तमान मूल्यों के प्रति जिम्मेदार
होता है। अपनी किसी भी गलती के सार्वजनिक हो जाने पर व्यक्ति को उस का
खामियाजा भुगतने को तैयार रहना चाहिए। तरुण तेजपाल उस का अपवाद नहीं हो
सकता।
तेजपाल जिस घटना के लिए जिम्मेदार है उसके अनेक पहलू हैं। पहला
तो यह है कि उसने अपनी माहतत के साथ ऐसा व्यवहार किया जो किसी भी संस्थान
में काम करने वाले द्वारा किया जाने वाला गंभीर दुराचरण है। इसके लिए
वर्तमान मूल्यों के अंतर्गत उस संस्थान से सेवाच्युति से कम कोई दंड नहीं
दिया जा सकता। यह स्वीकार किया जा चुका है कि गलती हुई है, उसके लिए क्षमा
चाही गई है। लेकिन दुराचरण का कृत्य कोई गलती नहीं होता, वह जानबूझ कर किया
गया या कृत्य या अकृत्य होता है। व्यक्तिगत तौर पर जिस व्यक्ति को हानि
हुई है उसके द्वारा क्षमा कर दिए जाने से दुराचरण अकृत नहीं हो जाता। यदि
संस्थान को स्वयं की रक्षा करनी है तो उसे ऐसे व्यक्ति को सदा सर्वदा के
लिए खुद से अलग करना पड़ेगा जिसने ऐसा गंभीर क्षमा नहीं किए जाने वाला
दुराचरण किया है।
किसी भी संस्थान में किया गया दुराचरण का कृत्य समाज
के लिए अपराध भी हो सकता है। तरुण तेजपाल का यह कृत्य भी अपराध है। जिस
ई-मेल से शिकायत की गई है और जिसे स्वीकार करते हुए क्षमा याचना की गई है,
वह जिस गंभीर अपराध को प्रकट करता है उसके लिए दंडित किए जाने की प्रक्रिया
से अब तेजपाल का बचना असंभव प्रतीत होता है। कम से कम उस व्यक्ति का जिस
ने स्वयं ढेर सारे लोगों के इसी तरह के सामाजिक अपराध उजागर कर के
न्यायालयों में अभियोजन की ओर ढकेला हो। प्रायश्चित तो स्वयं के सुधार की
वैयक्तिक प्रक्रिया है, उसका समाज से कोई संबंध नहीं है। तेजपाल का
प्रायश्चित उनके व्यक्तित्व के सुधार की प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन इसका
अर्थ नहीं है कि वे इस से वे सामाजिक दंड से बच जाएंगे।
गोवा पुलिस ने
मामला दर्ज कर लिया है, उसने अन्वेषण आरंभ कर दिया है। जो भी सच होगा सामने
आएगा। दुराचरण और अपराध के लिए दंड तेजपाल को भुगतने ही होंगे। लेकिन इस
अवसर का राजनैतिक लाभ उठाने की गरज से जो बयान गोवा के मुख्यमंत्री ने दिया
उसने इस व्यवस्था को भी नंगा किया है। उन्होंने कहा -
"मैं ने पुलिस
को इस मामले का अन्वेषण करने का संपूर्ण प्राधिकार दे दिया है। मैंने
उन्हें कहा इस बात की परवाह करने की कतई जरूरत नहीं है कि व्यक्ति लो
प्रोफाइल का है या हाई प्रोफाइल का। व्यक्ति का कद कोई मायने नहीं रखता,
अपराध मायने रखता है। आप को वही करना चाहिए जो कानूनन सही है"
गोवा
मुख्यमंत्री के इस कथन से स्पष्ट है कि अन्य सभी मामलों में व्यक्ति का कद
भी महत्व रखता है, अपराध नहीं, और पुलिस को अन्य सभी मामलों में अन्वेषण
करने का संपूर्ण प्राधिकार नहीं होता। इस मामले में आप चाहते हैं, इसलिए
आपने यह आदेश दे दिया। अन्यथा...
अब एक दूसरे के कपड़े उतारने का
सिलसिला आरंभ हो ही गया है तो यह रुकने वाला नहीं है। यह चलता रहेगा। वह भी
तब तक जब तक कि समाज एक हम्माम में तब्दील न हो जाए, जहां सभी नंगे खड़े
हों।
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