माया तो मिलने का वक्त ही नहीं देती...

                              दर्दे जिगर

कुछ दिन पहले की बात है। मुलायम सिंह यादव पत्रकार वार्ता के पहले पत्रकारों से हंसी मजाक कर रहे थे। बोलते-बोलते कह गये। ये मुख्यमंत्री तो मिलने का वक्त ही नहीं देतीं। कई बार कहा मिलना चाहता हूं। पर समय ही नहीं दिया। पत्रकार हंस पडें तो मुलायम थोड़ा झेंप से गये।
पर मुलायम का ये कबूलनाम हकीकत है इस प्रदेश की राजनीति का जहां माया बनाम मुलायम संघर्ष में छल का भी प्रयोग हो रहा है, दल का भी प्रयोग हो रहा है और यदा कदा बल का भी। दरअसल ये जंग महज सियासी जंग नहीं है। आपको याद होगा। वो घटनाक्रम, जब एक तरफ प्रदेश भर के थानों में आनन-फानन मुलायम के खिलाफ मुकदमे दर्ज हो रहे थे तो दूसरी तरफ हैरान परेशान मुलायम वक्त रहते पहुंच जाना चाहते थे गाजियाबाद से दिल्ली। कहीं उनको गिरफ्तार ना कर लिया जाये।
मायावती इस बार सत्ता संघर्ष में आई तो भी उनका नारा था कि सरकार बनते ही मुलायम को जेल भेजूंगी। हालांकि अब सत्ता पाने के बाद वो कहती हैं कि बदले की भावना से काम नहीं करती वर्ना मुलायम जेल में होते। पर सच्चाई ये है कि मुलायम बनाम माया के संघर्ष में पिस रहा है प्रदेश। मुलायम ने लखनऊ शहर को लोहियामय किया तो मायावती ने आते ही लखनऊ को कर डाला माया मय। अंबेडरकर के अलावा कांशीराम की तो मूर्तियां लगी हीं, खुद मुख्यमंत्री ने भी अपनी मूर्तियां लगवा डालीं।
मुलायम अभी से अगले चुनाव का नारा तैयार करे बैठे हैं। 'सरकार में आया तो गिरवा दूंगा मूर्तियां '। साफ है दोनों ही नेताओं की राजनीति रह गयी है एक दूसरे तक सीमित। दरअसल गेस्ट हाउस कांड के बाद से दोनों दलों के बीच की राजनीतिक लड़ाई बदल चुकी है वरदहस्त के संघर्ष में। और इस संघर्ष में सब कुछ इस्तेमाल हो रहा है। अपनी पिछली सरकार में मुलायम के सामने बीएसपी कहीं नजर नहीं आई। ना तो हाउस के अंदर न ही प्रदेश की सड़कों पर। मुलायम ने अपने अंदाज में सरकार चलाई। पर अब बारी है मायावती की। और मायावती भी जुटी हैं उसी अंदाज में।
नजीर के तौर पर मायावती सरकार ने अभी हाल में एक फैसला कर पुलिस की पूरी संरचना ही बदल डाली। जिलों की कमान नए आईपीएस अफसरों यानी की एसएसपी से छीन कर दे दी गयी डीआईजी यानी घिसे घिसाये ऐसे अधिकारियों को। अंदरखाने की मानें तो सरकार चाहती थी जिलों की कमान ऐसे अफसरों के हाथ में हो, जो सरकार का इशारा बखूबी समझ सकें। नए अधिकारियों के साथ दिक्कत ये थी कि वो सरकार के साथ वफादारी निभाना नहीं जानते थे। और इससे पहले तक ज्यादातर जिलों की इन नए खून वाले अधिकारियों के ही हाथ में थी। लिहाजा हो गया बदलाव।
विरोधियों की मानें ये सारी तैयारी चुनाव के मद्देनजर की जा रही है। प्रशासनिक स्तर पर चुनाव से पहले अभी और फेरबदल होने की खबरें आ रही है। सूत्रों की मानें तो अधिकारियों को समीक्षा बैठकों के बहाने उन्हें बुला कर ये बताया जा रहा है कि चुनाव आयोग तोप नहीं है। चुनाव के बाद भी सरकार रहेगी और फिर देखेगी किसने क्या किया।
राजनैतिक स्तर पर भी चुन-चुन कर चोट पहुंचाने पर आमादा है बीएसपी। मानो मुलायम से एक-एक पल का बदला लेने पर आमादा हो। जिन बाहुबलियों के सहारे मुलायम कभी लाव लश्कर लिये घूमा करते थे, वो आज हाथी पर सवारी कर रहे हैं। मायावती ने चुन-चुन कर मुख्तार, अफजाल, अतीक, अन्ना शुक्ला, हरिशंकर तिवारी जैसे बाहुबलियों को तो मुलायम से अलग किया ही, उन्हें सोशल इंजीनियरिंग का कार्यकर्ता भी बना डाला।
मुलायम जिन बाहुबलियों को कभी कानून का सताया सोशलिस्ट बताते थे अब उन्हीं को अपराधी साबित करने में जुटे हैं। ये वही मुलायम थे जिनके जमाने में शैलेंद्र सिंह जैसे ईमानदार डिप्टी एसपी को मुख्तार के चलते नौकरी तक छोड़नी पड़ी थी। अब मुलायम का समूचा कुनबा जुटा है मुख्तार को डॉन बताने में। प्रदेश का दुर्भाग्य यही है। एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिये पार्टियों को इन बाहुबलियों की दरकार है और इसी का फायदा उठाते आ रहे हैं ये बाहुबली। जिसकी सत्ता उसके नौरत्न। फिर आम आदमी की फिक्र किसे है।
मायावती जी की मानें तो इन सारे बाहुबलियों को पार्टी में शामिल कर उन्होंने सुधरने का मौका दिया है। सवाल ये है कि क्या शरीफों की कमी है देश और प्रदेश में। कि बहन जी को सहारा लेना पड़ रहा है इन बिगड़े हुओं का...
शुक्रिया IBN7
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