महबूबा से केंद्र को आस, उमर के लिए फांस

तहलका टुडे टीम 
नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर में अशांति के लिए चौतरफा हमले झेल रही केंद्र सरकार सर्वदलीय बैठक के बाद थोड़ी राहत की सांस जरूर ले सकती है। लेकिन अब उमर सरकार की शासन क्षमता एक मुद्दा जरूर बन गई है।
राज्य सरकार को विश्वास के संकट का मुद्दा उठाने की शर्त पर ही सर्वदलीय बैठक में शामिल हुई पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने बिना उमर का नाम लिए ही मौजूदा सरकार को अपरिपक्व और अक्षम करार दे डाला। यही नहीं, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी बातों के बजाय नतीजों पर जोर देकर यह संकेत जरूर दिए कि शांति बहाली के प्रयासों में अब सिर्फ उमर सरकार को हर मोर्चे पर बचाने की नीति से केंद्र कुछ समझौते जरूर करेगा।
सर्वदलीय बैठक में राज्य सरकार पर मुफ्ती का हमला और सोनिया की 'बातें नहीं नतीजे' की नसीहत उमर के लिए भले ही कड़ा संदेश माना जा रहा हो, लेकिन केंद्र के रणनीतिकार मान रहे हैं कि अंतत: यह घटनाक्रम घाटी में उबल रहा गुस्सा शांत करने में मददगार साबित होगा। पीडीपी प्रमुख ने यूं तो एएफएसपीए को खत्म करने और सेना को भी कुछ इलाकों से हटाने जैसी मांगें रखीं, लेकिन वास्तव में पूरी तरह निशाने पर उमर सरकार ही रही। अब तक उमर सरकार को बचाती आ रही केंद्र सरकार ने जब हालात बिल्कुल बेकाबू होते देखे तो उसे अपनी नीति में ऊपरी तौर पर थोड़ा बदलाव करना ही पड़ा। केंद्र यह कीमत इसलिए भी चुकाने को राजी हुआ, क्योंकि पीडीपी व सभी राजनीतिक दलों को इस मसले पर एक साथ लाकर वह घाटी में यह संदेश देने में कामयाब रहा कि कश्मीर का मुद्दा स्थानीय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय मसला है।
सरकार के सूत्र साफ कहते हैं कि वह चाहे भाजपा हो या फिर पीडीपी अब कोई भी सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल होने के बाद अपनी जिम्मेदारी से भी इंकार नहीं कर सकेगा। एक बार शांति बहाली की प्रक्रिया में शामिल होने के बाद भाजपा और पीडीपी के तेवरों में इस बात का थोड़ा असर दिखा भी। उमर के इस्तीफे की मांग कर रहे मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने इस बैठक के भीतर इस मुद्दे को नहीं छुआ। इसके अलावा महबूबा ने भी उमर का नाम लिए बगैर जम्मू-कश्मीर सरकार की बखिया उधेड़ी।
असल मुद्दा सुशासन का
महबूबा ने कुल मिलाकर यह साबित किया कि असल मुद्दा सिर्फ सुशासन का है। उन्होंने कहा कि कश्मीर की कई समस्याएं हैं, जिन्हें मौजूदा प्रशासन की अपरिपक्वता ने बढ़ा दिया है। उन्होंने कहा कि 'जबसे नई सरकार आई है तबसे स्थिति और बिगड़ी है। हमारी सरकार थी तो हम जनता से मिलते थे। उनकी तकलीफें सुनते थे। उपचार भी होता था। नई सरकार में कोई सुनवाई नहीं होती। मुख्यमंत्री किसी से मिलते नहीं। जनता दुख-दर्द कहां सुनाए.?'
तो हालात और बिगड़ जाएंगे
नेशनल कांफ्रेंस बचाव की मुद्रा में नजर आई। नेकां की तरफ से मुहम्मद शफी ने माना कि हालात खराब हैं, लेकिन चेताया कि सरकार को अस्थिर करने का कोई भी कदम हालात और बिगाड़ देगा। वहीं, फारूक अब्दुल्ला ने बैठक के बाद जम्मू-कश्मीर में विश्वास का संकट होने की बात से इंकार किया।

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