उदारवादी अर्थव्यवस्था, लोकतंत्र सेक्स और सेंसेक्स के बीच आम आदमी फंसा
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तहलका टुडे टीम
नई दिल्ली। विशेषज्ञों की मानें, तो विश्व की सबसे लोकप्रिय शासन प्रणाली लोकतंत्र अपने मूल लक्ष्य से भटक गई है और इस समय सांप्रदायिकता, धनबल, जातिवाद, बाहुबल, क्षेत्रवाद, भ्रष्टाचार जैसी चुनौतियों से जूझ रही है।
भारतीय राजनीति को बहुत करीब से देखने वाले राजनीतिक विश्लेषक गोविंदाचार्य का मानना है कि आज लोकतंत्र 'जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा' शासन से बदलकर 'उद्योगपतियों का, उद्योगपतियों के लिए, उद्योगपतियों द्वारा' हो गया है।
गोविंदाचार्य ने कहा कि पूरी दुनिया में एक व्यक्ति एक वोट का लोकतंत्र है जो सत्तावाद, बाह्य बल और धन बल के प्रभाव से गुजर रहा है। इसलिए लोकतंत्र विश्वभर में विकृत होकर उद्योग घरानों से संचालित होने लगा है। वह चाहे अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा हो या ब्रितानी प्रधानमंत्री डेविड कैमरून।
उन्होंने कहा कि भारत भी इस विकृति से अछूता नहीं है। यहां भी सत्ता समाज के कमजोर लोगों के लिए संचालित होने की बजाय बडे़ उद्योग घरानों के लिए हो रही है। गरीबों के विषय में सोचने वाले को अराजकतावादी करार दिया जाता है। यह हर देश में हो रहा है जिससे पूरी दुनिया में लोकतंत्र खतरे में पड़ गया है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी [सीपीआई] के प्रवक्ता अतुल अंजान ने कहा कि उदारवादी अर्थव्यवस्था वाले लोकतंत्र सेक्स और सेंसेक्स के बीच आम आदमी को फंसाए रखते हैं।
अंजान ने कहा कि दुनिया में अगर कहीं लोकतंत्र है, तो वह केवल भारत में। अन्य देशों में धनतंत्र है। कोई भी लोकतंत्र बहुदलीय शासन प्रणाली के बिना नहीं हो सकता है।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर तुलसी राम देश का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि भारतीय लोकतंत्र जातिवाद, संप्रदायवाद और क्षेत्रवाद जैसी तीन बड़ी समस्याओं से जूझ रहा है।
गोविंदाचार्य का मानना है कि लोगों की भागीदारी और जन आंदोलनों के जरिए लोकतंत्र की कमियों को दूर किया जा सकता है। जबकि अंजान भारतीय राजनीति में 'धन पशुओं' को आने से रोकने और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने पर बल देते हैं।
लोकतंत्र की इन्हीं कमियों को दूर करने तथा इसकी अच्छाइयों के विषय में लोगों को जागरूक बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2007 में 15 सितंबर के दिन अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनाए जाने की शुरुआत की थी