अदालत ने नहीं माना शहजाद को आतंकवादी
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दिल्ली के बटला हाउस एनकाउंटर के दौरान दोषी करार दिये गये आजमगढ़ निवासी शहजाद को भले ही दिल्ली की स्थानीय अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई हो लेकिन शहजाद को आतंकवादी करार नहीं दिया है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश राजेन्द्र कुमार शास्त्री ने बटला हाउस एनकाउण्टर में शहजाद को आतंकवाद के आरोप में नहीं बल्कि पुलिस को उसका कर्तव्य निर्वहन रोकने, हत्या और हत्या के प्रयास का दोषी पाया है जिसके कारण उसे उम्र कैद की सजा सुनाने के साथ ही 95 हजार रूपये का अर्थदंड भी लगाया गया है।
दिल्ली के ओखला स्थित बटला हाउस में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 2008 में एक कॉम्बैट आपरेशन किया था। दिल्ली पुलिस को सूचना मिली थी कि बटला हाउस के एल-18 नंबर मकान में पांच आतंकवादी छिपे हैं जिनका संबंध सितंबर में दिल्ली में हुए बम विस्फोट से था। इन पांच आतंकियों में दो पुलिस मुटभेड़ में मार गिराये गये थे जबकि शहजाद को दिल्ली पुलिस ने राजस्थान पुलिस के साथ मिलकर आजमगढ़ से पकड़ा था। उस बहुचर्चित बटला हाउस एनकाउण्टर में दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के जाबांज इंस्पेक्टर मोहनचंद्र शर्मा की गोली लगने से मौत हो गई थी जिन्हें मरणोपरांत शहीद सम्मान से नवाजा गया था।
मोहन चंद्र शर्मा की इस शहादत पर बाद के दिनों में बहुत राजनीतिक विवाद हुआ था और बटला हाउस एनकाउण्टर को फर्जी एनकाउण्टर बताने की कोशिश भी की गई थी। उस वक्त इस बात को लेकर लंबे समय तक बहस चली थी कि क्या वास्तव में मोहनचंद्र शर्मा बटला हाउस एनकाउण्टर में कथित रूप से आतंकियों की गोली के शिकार हुए थे या फिर बात कुछ और थी। इस शक के पीछे कई सवाल उठे थे उस वक्त। पहला सवाल यह था कि इंस्पेक्टर शर्मा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट कभी सार्वजनिक रूप से सामने नहीं आई। उस वक्त इंस्पेक्टर शर्मा का आपरेशन करनेवाले डॉक्टरों ने कहा था कि उन्हें गोली पेट में नहीं बल्कि पंसलियों में पीछे की ओर से लगी थी। डॉक्टरों ने श्री शर्मा के शरीर में दो गोली पाई थी, जबकि पुलिसवालों ने तीन गोली लगने की बात बताई थी।
अदालत ने आज जो फैसला दिया है उस फैसले से उन संदेहों को एक बार फिर बल मिलता है जो बटला हाउस एनकाउण्टर के बाद उठाये गये थे। अदालत ने पुलिस को भी इस बात के लिए लताड़ लगाई है कि बिना बुलेटप्रूफ जैकेट, या सैन्य साजोसामान के पुलिस के जवान ऐसे 'आतंक विरोधी अभियान' पर कैसे चले गये? अगर मोहनचंद्र शर्मा के शरीर पर एक बुलेटप्रूफ जैकेट होता तो शायद उनकी जान नहीं जाती।
अदालत के फैसले ने शहजाद को दोषी तो करार दिया है लेकिन उसे आतंकवादी करार देने से अपने आपको अलग रखा है। अदालत में दिल्ली पुलिस की ओर से मांग की गई थी कि 13 सितंबर 2008 को दिल्ली में हुए धमाकों से सीधे तौर पर शहजाद जुड़ा हुआ था लिहाजा उसे आतंकवादी करार देकर कसाब और अफजल गुरू की तर्ज पर फांसी की सजा सुनाई जाए लेकिन अदालत ने पुलिस की इस दलील से अपने आपको अलग ही रखा। अदालत के फैसले की जो खबरें सामने आ रही हैं उसमें भी यही लिखा जा रहा है कि अदालत ने शहजाद के इंडियन मुजाहीदीन से जुड़े होने की बहस में पड़ने की बजाय उसे ड्यूटी के दौरान पुलिस के रास्ते में बाधा डालने, मोहनचंद्र शर्मा की हत्या और कांस्टेबल बलवंत सिंह के घायल होने का दोषी पाया है।
लिहाजा निचली अदालत ने शहजाद को फांसी की सजा मुकर्रर करने की बजाय आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। इसके साथ ही अदालत ने शहजाद पर जो 95 हजार का अर्थदंड लगाया है उसमें से 40 हजार रूपये मृतक मोहनचंद्र शर्मा की पत्नी तथा 20 हजार रूपये घायल बलवंत सिंह के परिवार को देने का निर्देश दिया है।