उत्तर प्रदेश चुनाव: नाक की लड़ाई,छठे चरण में 60% मतदान
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उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के छठे चरण का मतदान समाप्त हो गया है. इस चरण में 13 ज़िलों की 68 सीटों पर मतदान हुआ. राज्य के उप मुख्य निर्वाचन अधिकारी के मुताबिक़ इस चरण में 60% फ़ीसदी मतदान हुआ है.
संवाददाता जब ग्रेटर नोएडा के कासना गाँव में पहुँचे, तो श्री अमीचंद इंटर कालेज मतदान केंद्र पर सुबह से भीड़ थी.
इस इलाके में दलित मजदूर और गूजर मतदाता बहुसंख्यक हैं. ये खुलकर बहुजन समाज पार्टी के हाथी निशाना पर वोट देने की बात कर रहें थे.
रोजाना बेलदारी के कम में मजदूरी करने वाले दलित अपने गाँव में खडंजा लगने से संतुष्ट थे. मगर पढ़े लिखे गूजर युवक चाहते थे कि उनके लिए अच्छी नौकरियाँ हों और जो कंपनियाँ यहाँ रही हैं, उनमें उनकी भी हिस्सेदारी हो.
कासना जेवर विधान सभा क्षेत्र में है. भट्टा-पारसौल गाँव भी इसी क्षेत्र में है. कासना में जो लोग वोट डालने आए, उनमे लगभग अस्सी साल की एक बुजुर्ग दलित महिला सुमित्रा थी, जिनकी आँखों की रौशनी चली गयी है. सुमित्रा के एक बेटे की हाल ही में दुर्घटना मे मौत हो गई थी.
सुमित्रा के परिवार में बेटा बहू मिलाकर 12 वोट हैं और वह अपने पोते की बहू समेत पूरे परिवार को साथ लेकर ऑटो रिक्शा में वोट डालने आईं थी.
उधर दादरी विधान सभा क्षेत्र के तुगलपुर विद्यालय मतदान केंद्र में शुरू में कम वोट पड़े.
सोलहवीं विधान सभा के चुनाव के लिए छठें दौर में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिन इलाकों में मंगलवार को मतदान हुआ, वह आर्थिक दृष्टि से सबसे संपन्न और चुनाव प्रबंधन के लिहाज से सबसे मुश्किल और संवेदनशील माना जाता है.
नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद, मेरठ, हापुड़, बुलंदशहर, खुर्जा, अलीगढ़, आगरा, मथुरा और सहारनपुर उद्योग, व्यापार और पर्यटन के केंद्र हैं.
औद्योगिक प्रदूषण के कारण गंगा, यमुना और उनकी दूसरी सहायक नदियाँ प्रदूषण के कारण रोगों का कारण बन रही हैं.
गंगा और यमुना के बीच का यह दोआब क्षेत्र गन्ना, आलू, फल और सब्जियों के उत्पादन का केंद्र रहा है.
लेकिन दिल्ली के करीब होने से यहाँ तेजी से शहरीकरण हो रहा है.
इसके चलते उपजाऊ जमीनों का जोर जबरदस्ती से अधिग्रहण और उस प्रक्रिया में भ्रष्टाचार किसानों के बीच सबसे बड़ा मुद्दा है.
आगरा , मेरठ , अलीगढ़ और सहारनपुर मंडलों के कई इलाके साम्प्रदायिक दृष्टि से नाजुक रहें है. इस्लामी दुनिया में मशहूर देवबंद इसी क्षेत्र में है.
नेताओं के लिहाजा से देखें तो मुख्यमंत्री मायावती का गांव बादलपुर और कर्मक्षेत्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश है.
दलित समुदाय आबादी के लिहाज से तो यहाँ ज्यादा है ही आर्थिक दृष्टि से भी मजबूत है. पिछले चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को यहाँ सबसे ज्यादा यानी 68 में से 35 सीटों पर सफलता मिली थी.
लेकिन इस बार मायावती कड़ी चुनौती का सामना कर रही हैं.
लोगों का ध्यान अपनी सरकार से हटाने के लिए मायावती ने उत्तर प्रदेश के विभाजन का प्रस्ताव रखा है लकिन यह बड़ा चुनावी मुद्दा नहीं बना, हालांकि लोकदल भी हरित प्रदेश की मांग उठाता रहा है.
कांग्रेस महा सचिव राहुल गांधी ने भट्टा पारसौल और टप्पल के किसानों को अपना सक्रिय समर्थन देकर मुख्यमंत्री मायावती के लिए सबसे ज्यादा मुसीबतें खड़ी कीं.
किसानों के बीच अपने काम को राजनीतिक ताकत में बदलने राहुल गांधी ने एक ओर तो लोक दल से गठबंधन किया दूसरी तरफ रशीद मसूद जैसे नेता को समाजवादी पार्टी से तोड़कर एक मजबूत विकल्प देने की कोशिश की है जो इस चुनाव में कसौटी पर है.
वर्ष 2007 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को इन 13 जिलों की 68 सीटों में से केवल दो पर सफलता मिली थी.
केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री और लोक अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह को अपने पिता पूर्व प्रधान मंत्री चौधरी चरण सिंह की सियासत विरासत में मिली है.
उनकी पार्टी को पिछली बार दस सीटें मिलीं थीं.
अजित सिंह के बेटे चौधरी जयंत सिंह लोक सभा सदस्य हैं , पर वह विधानसभा का भी चुनाव लड़ रहें हैं ताकि लखनऊ की राजनीति कर सकें.
अलावा पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह यहीं से हैं. कल्याण सिंह अपने बेटे और बहू को विधान सभा मे भेजने के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं. उनके बेटे राजवीर सिंह पिछली माया लहर में डिबाई से चुनाव हार गए थे. भारतीय जनता पार्टी ने उनके प्रभाव क्षेत्र को कम करने के लिए मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को लगाया है.
भारतीय भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह रहने वाले भले पूरब के हैं पर सांसद यही गाजियाबाद से बने हैं.
भारतीय जनता पार्टी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश से सबसे ज्यादा उम्मीदें हैं. पिछली बार उसे यहाँ 68 में से 12 सीटें मिलीं थीं.
मायावती के मुकाबले सत्ता के सबसे प्रबल दावेदार समझे जा रहें मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी को पिछली बार यहाँ केवल तीन सीटें मिलीं थीं.
यहाँ अपने प्रभाव बढाने के लिए मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव ने कड़ी मेहनत की है. समाजवादी पार्टी को मुस्लिम समुदाय से काफी समर्थन मिल रहा है. सपा ने उम्मीदवारों के चयन में स्थानीय जातीय समीकरण का विशेष ध्यान रखा है.
माना जाता है कि इस बार बहुजन समाज पार्टी को जो नुकसान होगा उसका लाभ किसी एक पार्टी को मिलने के बजाय थोड़ा थोड़ा फायदा सबको मिल सकता है.
संवाददाता जब ग्रेटर नोएडा के कासना गाँव में पहुँचे, तो श्री अमीचंद इंटर कालेज मतदान केंद्र पर सुबह से भीड़ थी.
इस इलाके में दलित मजदूर और गूजर मतदाता बहुसंख्यक हैं. ये खुलकर बहुजन समाज पार्टी के हाथी निशाना पर वोट देने की बात कर रहें थे.
रोजाना बेलदारी के कम में मजदूरी करने वाले दलित अपने गाँव में खडंजा लगने से संतुष्ट थे. मगर पढ़े लिखे गूजर युवक चाहते थे कि उनके लिए अच्छी नौकरियाँ हों और जो कंपनियाँ यहाँ रही हैं, उनमें उनकी भी हिस्सेदारी हो.
कासना जेवर विधान सभा क्षेत्र में है. भट्टा-पारसौल गाँव भी इसी क्षेत्र में है. कासना में जो लोग वोट डालने आए, उनमे लगभग अस्सी साल की एक बुजुर्ग दलित महिला सुमित्रा थी, जिनकी आँखों की रौशनी चली गयी है. सुमित्रा के एक बेटे की हाल ही में दुर्घटना मे मौत हो गई थी.
उधर दादरी विधान सभा क्षेत्र के तुगलपुर विद्यालय मतदान केंद्र में शुरू में कम वोट पड़े.
सोलहवीं विधान सभा के चुनाव के लिए छठें दौर में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिन इलाकों में मंगलवार को मतदान हुआ, वह आर्थिक दृष्टि से सबसे संपन्न और चुनाव प्रबंधन के लिहाज से सबसे मुश्किल और संवेदनशील माना जाता है.
नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद, मेरठ, हापुड़, बुलंदशहर, खुर्जा, अलीगढ़, आगरा, मथुरा और सहारनपुर उद्योग, व्यापार और पर्यटन के केंद्र हैं.
औद्योगिक प्रदूषण के कारण गंगा, यमुना और उनकी दूसरी सहायक नदियाँ प्रदूषण के कारण रोगों का कारण बन रही हैं.
गंगा और यमुना के बीच का यह दोआब क्षेत्र गन्ना, आलू, फल और सब्जियों के उत्पादन का केंद्र रहा है.
लेकिन दिल्ली के करीब होने से यहाँ तेजी से शहरीकरण हो रहा है.
इसके चलते उपजाऊ जमीनों का जोर जबरदस्ती से अधिग्रहण और उस प्रक्रिया में भ्रष्टाचार किसानों के बीच सबसे बड़ा मुद्दा है.
मुख्यमंत्री का इलाका
नोएडा से आगरा तक करीब दो सौ किलोमीटर का इलाका इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जो मायावती सरकार और किसानों के बीच खूनी टकराव का कारण बना. भट्टा परसौल, टप्पल और छलेसर इस संघर्ष के केंद्र रहें जहाँ चौदह किसान फायरिंग में मारे गए, सैकड़ों लोग घायल हुए या जेल गए.नेताओं के लिहाजा से देखें तो मुख्यमंत्री मायावती का गांव बादलपुर और कर्मक्षेत्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश है.
दलित समुदाय आबादी के लिहाज से तो यहाँ ज्यादा है ही आर्थिक दृष्टि से भी मजबूत है. पिछले चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को यहाँ सबसे ज्यादा यानी 68 में से 35 सीटों पर सफलता मिली थी.
लेकिन इस बार मायावती कड़ी चुनौती का सामना कर रही हैं.
लोगों का ध्यान अपनी सरकार से हटाने के लिए मायावती ने उत्तर प्रदेश के विभाजन का प्रस्ताव रखा है लकिन यह बड़ा चुनावी मुद्दा नहीं बना, हालांकि लोकदल भी हरित प्रदेश की मांग उठाता रहा है.
कांग्रेस महा सचिव राहुल गांधी ने भट्टा पारसौल और टप्पल के किसानों को अपना सक्रिय समर्थन देकर मुख्यमंत्री मायावती के लिए सबसे ज्यादा मुसीबतें खड़ी कीं.
किसानों के बीच अपने काम को राजनीतिक ताकत में बदलने राहुल गांधी ने एक ओर तो लोक दल से गठबंधन किया दूसरी तरफ रशीद मसूद जैसे नेता को समाजवादी पार्टी से तोड़कर एक मजबूत विकल्प देने की कोशिश की है जो इस चुनाव में कसौटी पर है.
वर्ष 2007 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को इन 13 जिलों की 68 सीटों में से केवल दो पर सफलता मिली थी.
नाक की लड़ाई
उनकी पार्टी को पिछली बार दस सीटें मिलीं थीं.
अजित सिंह के बेटे चौधरी जयंत सिंह लोक सभा सदस्य हैं , पर वह विधानसभा का भी चुनाव लड़ रहें हैं ताकि लखनऊ की राजनीति कर सकें.
अलावा पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह यहीं से हैं. कल्याण सिंह अपने बेटे और बहू को विधान सभा मे भेजने के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं. उनके बेटे राजवीर सिंह पिछली माया लहर में डिबाई से चुनाव हार गए थे. भारतीय जनता पार्टी ने उनके प्रभाव क्षेत्र को कम करने के लिए मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को लगाया है.
भारतीय भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह रहने वाले भले पूरब के हैं पर सांसद यही गाजियाबाद से बने हैं.
भारतीय जनता पार्टी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश से सबसे ज्यादा उम्मीदें हैं. पिछली बार उसे यहाँ 68 में से 12 सीटें मिलीं थीं.
मायावती के मुकाबले सत्ता के सबसे प्रबल दावेदार समझे जा रहें मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी को पिछली बार यहाँ केवल तीन सीटें मिलीं थीं.
यहाँ अपने प्रभाव बढाने के लिए मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव ने कड़ी मेहनत की है. समाजवादी पार्टी को मुस्लिम समुदाय से काफी समर्थन मिल रहा है. सपा ने उम्मीदवारों के चयन में स्थानीय जातीय समीकरण का विशेष ध्यान रखा है.
माना जाता है कि इस बार बहुजन समाज पार्टी को जो नुकसान होगा उसका लाभ किसी एक पार्टी को मिलने के बजाय थोड़ा थोड़ा फायदा सबको मिल सकता है.