गुजरात: कहां तक पहुंची इंसाफ़ की लड़ाई?
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गुजरात में 2002 में हुए दंगों के पीड़ितों का इंसाफ़ के लिए संघर्ष दस वर्ष बाद भी जारी है.
कुछ मामलों में लोगों को इंसाफ़ ज़रूर मिला है और दोषियों को सज़ा भी सुनाई गई है लेकिन वे दंगे इतने भयावह थे और पीड़ितों की संख्या इतनी ज़्यादा है कि इंसाफ़ की ये लड़ाई कब तक चलती रहेगी, कुछ कहना मुश्किल है.लेकिन दंगों के दस साल बाद कहां तक पहुंची है इंसाफ़ की लड़ाई. यही जानने की कोशिश की गई है इस रिपोर्ट में.
अयोध्या से गुजरात जा रही साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में गुजरात के गोधरा के पास हुए हादसे में 58 लोग मारे गए थे जिनमें ज्यादातर हिंदू कारसेवक थे.
इसके बाद गुजरात में भड़के दंगों में आधिकारिक तौर पर लगभग 1200 लोग मारे गए थे और लगभग एक लाख 70 हज़ार लोग बेघर हो गए थे.
इन दंगों में मरने वाले ज़्यादातर मुसलमान थे.
भारत के तत्कालीन गृह राज्य मंत्री श्रीप्रकाश जयसवाल ने 11 मई 2005 को गुजरात दंगों में मारे गए लोगों की संख्या के बारे में राज्य सभा में पूछे गए एक सवाल का लिखित जवाब दिया था.
उनके जवाब के अनुसार दंगों में कुल 790 मुसलमान और 254 हिंदू मारे गए थे और कुल 223 लोग उस समय तक लापता बताए गए थे जिन्हें बाद में मरा हुआ मान लिया गया था.
इस तरह से भारत सरकार की ओर से दिए गए आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़ गुजरात दंगों में कुल 1267 लोग मारे गए थे.
हालाकि कुछ ग़ैर-सरकारी संगठन और स्थानीय लोगों के अनुसार दंगों में दो हज़ार से भी ज़्यादा लोग मारे गए थे.
लेकिन अगर इंसाफ़ मिलने की बात की जाए तो इन दस वर्षो में अब तक केवल गोधरा कांड, बेस्ट बेकरी, बिल्क़ीस बानो और सरदारपुरा मामले में निचली अदालत ने फ़ैसला सुनाया है जिनमें कुल मिलाकर 83 लोगों को सज़ा सुनाई गई है.
दंगों से जुड़े कुछ प्रमख मामले और मुआवज़े के लिए संघर्ष
- बेस्ट बेकरी मामला
- बिल्क़ीस बानो मामला
- एसआईटी के तहत मामले
- ज़किया जाफ़री केस
- दंगों के अन्य मामले
- मुआवज़े के लिए संघर्ष
वडोदरा के निकट स्थित बेस्ट बेकरी में एक फ़रवरी 2002 को 14 लोगों को जलाकर मार दिया गया था.
बेस्ट बेकरी ज़ाहिरा शेख़ के परिवार वालों का था और मरने वालों में उनके परिवार वाले और बेकरी में काम करने वाले कुछ कारीगर थे. ज़ाहिरा इस मुक़दमे की प्रमुख गवाह थी.
इस मामले में सभी 21 अभियुक्तों को जून 2003 में आए फ़ैसले में निचली अदालत ने बरी कर दिया गया था.
कारण ये था कि गवाहों ने अदालत में अपने बयान बदल डाले थे.
निचली अदालत के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ गुजरात सरकार हाई कोर्ट भी गई थी लेकिन हाई कोर्ट ने दिसंबर 2003 में दिए गए अपने फ़ैसले में निचली अदालत के फ़ैसले को सही ठहराया था.
बाद में मानवाधिकार संगठनों की मदद से ज़ाहिरा शेख़ ने इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील की और अप्रैल 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने बेस्ट बेकरी केस की दोबारा जांच और सुनवाई गुजरात से बाहर महाराष्ट्र में कराने का आदेश दिया.
मुंबई हाईकोर्ट की निगरानी में गठित मज़गांव सेशन कोर्ट ने फ़रवरी 2006 में फ़ैसला सुनाते हुए इस मामले के 21 अभियुक्तों में से नौ को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी.
अदालत ने आठ लोगों को बरी कर दिया था जबकि चार लोगों को अभी तक गिरफ़्तार नहीं किया जा सका है.
तमाम नौ दोषी लोग इस समय कोल्हापुर सेंट्रल जेल में अपनी सज़ा काट रहें हैं लेकिन फ़रवरी 2012 में मुबंई हाई कोर्ट ने उनमें से एक मुजरिम जगदीश राजपूत को ख़राब स्वास्थ के कारण ज़मानत पर रिहा करने का आदेश दिया है.
उन तमाम लोगों ने निचली अदालत के फ़ैसले के ख़िलाफ़ मुंबई हाई कोर्ट में अपील दायर की है जिसकी पांच मार्च 2012 से रोज़ाना सुनवाई होगी.
लेकिन इस पूरे मामले में मुख्य गवाह ज़ाहिरा शेख़ को अदालत ने अपना बयान बार-बार बदलने का दोषी क़रार दिया था और उन्हें एक साल क़ैद की सज़ा सुनाई थी और 50 हज़ार रुपए का जुर्माना भी अदा करने का कहा था.