नाजायज़ तालुकात, सेक्स बने क़त्ल की वजह
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देश में आपराधिक वारदात ज्यादातर मामलों में उसकी वजह लड़की या फिर महिलाएं होती है। बुजुर्गों से बचपन में यह भी सुनता आया हूं कि महाभारत भी औरतों की खातिर हुआ और रामायण के केंद्र बिंदु में भी महिला यानी सीता रही। अभी हाल ही में दिल्ली पुलिस ने अपराध पर आंकड़े जारी किए। आंकड़ों की इस रिपोर्ट में दावे किए गए कि लूट, छीना-झपटी और वाहन चोरी की घटनाओं में कमी आई है और दिल्ली पुलिस इसपर अंकुश लगा पाने में पूरी तरह से कामयाब रही है। लेकिन दिल्ली पुलिस की इस रिपोर्ट में महिलाओं से जुड़े अपराध की बात आई तो उसकी बोलती बंद हो गई। वर्ष 2011 में दिल्ली में कुल 543 हत्याएं हुई जिनमें 18 फीसदी अवैध संबंधों की वजह से हुई।
जाहिर सी बात है कि इन हत्याओं के पीछे वजह सेक्स था, भले ही वह अवैध संबंध क्यों ना हो। 17 फीसदी हत्याएं गुस्से में आकर की गई। अवैध संबंधों में हत्याओं की वजह में कहीं किसी महिला ने अपने पति की हत्या करवा दी, तो कहीं पत्नी के चरित्र पर शक की वजह से पति ने अपनी ही पत्नी को मरवा डाला। इन सबमें चिंता की बात यह है कि महिलाओं के लिए दिल्ली दिन-ब-दिन असुरक्षित होती चली जा रही है।
दिल्ली सरकार और उसके आला पुलिस अधिकारी महिलाओं के महफूज होने के तमाम दावे कर लें लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि महिलाएं दिल्ली में कतई महफूज नहीं है। दिल्ली पुलिस के इन ताजा आंकड़ों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि महिलाओं के लिए राजधानी और डरावनी हो गई है। यहां छेड़खानी और बलात्कार के मामलों में ताबड़तोड़ इजाफा हो रहा है। जारी किए गए इन आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में वर्ष 2011 में 568 बलात्कार की वारदात दर्ज की गई। बलात्कार के आंकड़ों पर गौर डालें तो साबित होता है कि दिल्ली में रोजाना औसतन दो रेप के मामले होते हैं। जबकि वर्ष 2010 में रेप के 507 मामले दर्ज किए गए थे। छेड़छाड़ के मामले में भी इस वर्ष खासा इजाफा हुआ जो चिंता की बात है। वर्ष 2010 में यह संख्या जहां 601 थी वहीं 2011 में यह बढ़कर 653 तक जा पहुंची।
दिल्ली पुलिस द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, 2010 के मुकाबले 2011 में बलात्कार की घटनाओं में 13 फीसदी का इजाफा हुआ है। छेड़खानी की घटनाओं में भी बीते वर्ष 11 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। महिलाओं को फोन कर अश्लील बातें या मैसज करने की वारदातों में तो दोगुना इजाफा हुआ है। दिल्ली में महिलाओं से जुड़े आपराधिक मामलों में वृद्धि हुई है लेकिन सच यह भी है कि ज्यादातर मामलों में इस प्रकार के अपराध को अंजाम देनेवाले अपराधी उनके जान-पहचान के या फिर पड़ोसी होते हैं। आंकड़े कहते हैं कि बलात्कार के मामले में केवल 2.5 फीसदी आरोपी ही पीड़ित से अनजान थे।
रायटर द्वारा कराए गए एक सर्वे के मुताबिक महिलाओं के लिए पांच असुरक्षित देशों में भारत भी शुमार होता है। भारत के अलावा आफगानिस्तान, कांगो, पाकिस्तान और सोमालिया में भी महिलाओं को हत्या, बलात्कार, घरेलू हिंसा, ऑनर किलिंग जैसे वारदातों से जूझना पड़ता है। विश्व बैंक के एक सर्वे के मुताबिक 15 से 44 फीसदी वर्ष की आयु वर्ग वाली महिलाओं को कैंसर, कार दुर्घटना, युद्ध और मलेरिया से अधिक खतरा बलात्कार और घरेलू हिंसा के शिकार बनने का होता है। हिंसा और अपराध समाज के दो ऐसे पहलू है जो असुरक्षा की भावना पैदा करते हैं। हिंदू धर्मग्रंथ महाभारत में यह बात सामने आती है कि जिस कुल में महिलाओं का आदर नहीं होता है उस कुल का नाश हो जाता है। अपराध पर अंकुश हर हाल में जरूरी है। मैं दक्षिण भारत के कई शहरों में घूमा हूं। वहां महिलाएं बेखौफ घूमती हैं। दिल्ली की तुलना में महिलाओं में सुरक्षा की भावना वहां ज्यादा हैं।
यह सही है कि पुलिस हर व्यक्ति को अलग-अलग सुरक्षा मुहैया करा सकती है। लेकिन समाज में रहने वाली महिलाओं और लड़कियां बेखौफ होकर कहीं भी आ-जा सकें, यह भावना पैदा करना जरूरी है और यह नामुमकिन भी नहीं है। आंकड़ों में उलझने से बेहतर है इस दिशा में थोड़ी गंभीर पहल की जाए। समय रहते यह सोचने की जरूरत है कि आखिर कैसे महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध पर काबू पाया जाए।
जाहिर सी बात है कि इन हत्याओं के पीछे वजह सेक्स था, भले ही वह अवैध संबंध क्यों ना हो। 17 फीसदी हत्याएं गुस्से में आकर की गई। अवैध संबंधों में हत्याओं की वजह में कहीं किसी महिला ने अपने पति की हत्या करवा दी, तो कहीं पत्नी के चरित्र पर शक की वजह से पति ने अपनी ही पत्नी को मरवा डाला। इन सबमें चिंता की बात यह है कि महिलाओं के लिए दिल्ली दिन-ब-दिन असुरक्षित होती चली जा रही है।
दिल्ली सरकार और उसके आला पुलिस अधिकारी महिलाओं के महफूज होने के तमाम दावे कर लें लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि महिलाएं दिल्ली में कतई महफूज नहीं है। दिल्ली पुलिस के इन ताजा आंकड़ों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि महिलाओं के लिए राजधानी और डरावनी हो गई है। यहां छेड़खानी और बलात्कार के मामलों में ताबड़तोड़ इजाफा हो रहा है। जारी किए गए इन आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में वर्ष 2011 में 568 बलात्कार की वारदात दर्ज की गई। बलात्कार के आंकड़ों पर गौर डालें तो साबित होता है कि दिल्ली में रोजाना औसतन दो रेप के मामले होते हैं। जबकि वर्ष 2010 में रेप के 507 मामले दर्ज किए गए थे। छेड़छाड़ के मामले में भी इस वर्ष खासा इजाफा हुआ जो चिंता की बात है। वर्ष 2010 में यह संख्या जहां 601 थी वहीं 2011 में यह बढ़कर 653 तक जा पहुंची।
दिल्ली पुलिस द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, 2010 के मुकाबले 2011 में बलात्कार की घटनाओं में 13 फीसदी का इजाफा हुआ है। छेड़खानी की घटनाओं में भी बीते वर्ष 11 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। महिलाओं को फोन कर अश्लील बातें या मैसज करने की वारदातों में तो दोगुना इजाफा हुआ है। दिल्ली में महिलाओं से जुड़े आपराधिक मामलों में वृद्धि हुई है लेकिन सच यह भी है कि ज्यादातर मामलों में इस प्रकार के अपराध को अंजाम देनेवाले अपराधी उनके जान-पहचान के या फिर पड़ोसी होते हैं। आंकड़े कहते हैं कि बलात्कार के मामले में केवल 2.5 फीसदी आरोपी ही पीड़ित से अनजान थे।
रायटर द्वारा कराए गए एक सर्वे के मुताबिक महिलाओं के लिए पांच असुरक्षित देशों में भारत भी शुमार होता है। भारत के अलावा आफगानिस्तान, कांगो, पाकिस्तान और सोमालिया में भी महिलाओं को हत्या, बलात्कार, घरेलू हिंसा, ऑनर किलिंग जैसे वारदातों से जूझना पड़ता है। विश्व बैंक के एक सर्वे के मुताबिक 15 से 44 फीसदी वर्ष की आयु वर्ग वाली महिलाओं को कैंसर, कार दुर्घटना, युद्ध और मलेरिया से अधिक खतरा बलात्कार और घरेलू हिंसा के शिकार बनने का होता है। हिंसा और अपराध समाज के दो ऐसे पहलू है जो असुरक्षा की भावना पैदा करते हैं। हिंदू धर्मग्रंथ महाभारत में यह बात सामने आती है कि जिस कुल में महिलाओं का आदर नहीं होता है उस कुल का नाश हो जाता है। अपराध पर अंकुश हर हाल में जरूरी है। मैं दक्षिण भारत के कई शहरों में घूमा हूं। वहां महिलाएं बेखौफ घूमती हैं। दिल्ली की तुलना में महिलाओं में सुरक्षा की भावना वहां ज्यादा हैं।
यह सही है कि पुलिस हर व्यक्ति को अलग-अलग सुरक्षा मुहैया करा सकती है। लेकिन समाज में रहने वाली महिलाओं और लड़कियां बेखौफ होकर कहीं भी आ-जा सकें, यह भावना पैदा करना जरूरी है और यह नामुमकिन भी नहीं है। आंकड़ों में उलझने से बेहतर है इस दिशा में थोड़ी गंभीर पहल की जाए। समय रहते यह सोचने की जरूरत है कि आखिर कैसे महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध पर काबू पाया जाए।