बीजेपी का नया नारा, जय श्री बेईमान!
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प्रभाष झा
राजनीति के हमाम में सभी नंगे हैं। यह बात हम सालों से सुनते-पढ़ते और देखते आए हैं। यूपी चुनाव ने हमें एक बार फिर नेताओं और पार्टियों के दोमुंहेपन को देखने और समझने का 'सुअवसर' दिया है। राजनीतिक समीकरणों को साधने के नाम पर सभी पार्टियां जो कर रही हैं, उससे साफ है कि उनके लिए चाल, चरित्र और चेहरे का कोई मोल नहीं है। उन्हें हर हाल में मैजिक नंबर चाहिए। इसके लिए वह पतन और बेहयाई की कोई भी इबारत लिखने के लिए तैयार हैं। राजनीति को साफ-सुथरा बनाने के मामले में सभी दल हाथी के दांत दिखाने के अलग और खाने के अलग वाली कहावत को चरितार्थ करने में लगे हुए हैं।साढ़े चार साल तक करीब 3 दर्जन विधायक-मंत्रियों के करप्शन की अनदेखी के लिए मायावती ने गांधारी की तरह आंखों पर पट्टी बांध रखी थी। अब चुनाव आने के साथ ही लगा कि उनकी उपयोगिता खत्म हो गई है, तो उन्हें निकाल बाहर किया। लेकिन आश्चर्यजनक तो यह है कि जो विपक्ष पानी पी-पीकर इन विधायक-मंत्रियों को इतने समय से भ्रष्टाचार की गंगोत्री बताकर कोस रहा था, अब बांहें फैलाकर उन्हें गले लगा रहा है। भारतीय राजनीति की इस बेईमान चाल को देखिए, मायावती के करप्शन की दुहाई देकर विपक्ष की सभी पार्टियां सत्ता पर काबिज होना चाहती हैं और बीएसपी के दागियों का खेवनहार भी बनती जा रहीं है।
एनआरएचएम घोटाले के प्रतीक बन चुके बाबू सिंह कुशवाहा को 'पार्टी विद डिफरेंस' कही जाने वाली बीजेपी ने जिस तरह से अपने यहां एंट्री दी है, उसके चलते पूरी पार्टी की साख ही दांव पर लग गई है। यह यूपी की सियासत में खत्म होती नैतिकता का एक उदाहरण भर है। यह अलग बात है कि कुशवाहा मामले में आलोचना झेलने के बाद बीजेपी अपना फैसला बदल दे। अवधेश वर्मा पंचायत चुनाव में अपने परिवार के लोगों को जिताने के लिए विरोधियों का अपहरण कराने से भी नहीं हिचके थे। बीजेपी ने उनके खिलाफ आंदोलन करते हुए कहा था कि यूपी में कानून का राज खत्म हो गया है। अब उसी अवधेश वर्मा के सहारे राम राज लाने का नारा लगा रही है। जाहिर है मंत्री बादशाह सिंह और दद्दन मिश्र की करनी को भी बीजेपी याद नहीं करना चाहेगी, क्योंकि वे अब पार्टी उम्मीदवार हैं।
संडास की तरब बदबू फैलाने वाली इस सियासत में कोई भी पार्टी बीजेपी से पीछे नहीं रहना चाहती। एक छात्रा को किडनैप और रेप के आरोप में डिबाई से बीएसपी विधायक भगवान शंकर शर्मा उर्फ गुड्डू पंडित जेल तक जा चुके हैं। गुड्डू पंडित अब समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुके हैं और उन्हें उम्मीदवार भी घोषित कर दिया है। फैजाबाद के शशि कांड को राजनीति में रुचि नहीं रखने वाले लोग शायद भूल गए होंगे। एसपी ने इस मामले में सदन से लेकर सड़क तक ऐसा हंगामा मचाया था कि आनंद सेन को इस्तीफा देना पड़ा था। आनंद सेन को उम्रकैद हो चुकी है। विडंबना देखिए उसी आनंद सेन से अब एसपी को कोई परहेज नहीं है। वह उम्मीदवार नहीं बन सकते तो उनके पिता मित्रसेन यादव पार्टी के उम्मीदवार हैं।
मुजफ्फरनगर में दिल्ली की लड़कियों की किडनैपिंग और छेड़छाड़ से नैशनल मीडिया में सुर्खियों में आने वाले बीएसपी विधायक शाहनवाज राणा को चौधरी अजित सिंह की पार्टी आरएलडी हर हाल में गिरफ्तार देखना चाहती थी, लेकिन अब जाट क्षत्रप उसी के लिए वोट मांगते नजर आएंगे। पैगंबर का कार्टून बनाने वाले कार्टूनिस्ट का सिर कलम करने पर इनाम की घोषणा करने वाले हाजी याकूब कुरैशी को सिखों के बारे में आपत्तजनक टिप्पणी करने के बाद बीएसपी ने हटा दिया था, लेकिन आरएलडी ने उन्हें पनाह दे दी है।
ये तो कुछ उदाहरण भर हैं। बीएसपी के जितने भी मंत्रियों को अब तक बर्खास्त किया गया है, वे सभी विपक्ष की अलग-अलग पार्टियों से संपर्क में हैं। देर-सबेर इन सभी को किसी न किसी पार्टी से टिकट मिल जाना तय है। पार्टियों की कथनी-करनी का यही अंतर आम आदमी का राजनीति से भरोसा कम करता है।
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