दो मुहें सांप है -मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ?

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तहलका टुडे टीम
नई दिल्ली, विकिलीक्स का एक और खुलासा सामने आया है। यह गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में है। इस केबल से नरेंद्र मोदी के मामले में अमेरिकी दुविधा सामने आई है कि क्या गुजरात दंगों के कारण नरेंद्र मोदी की उपेक्षा की जानी चाहिए या देश की राजनीति में उनकी भावी भूमिका के बारे में सोचते हुए उनसे अभी से संपर्क बनाना शुरू कर देना चाहिए। केबल में मोदी को एक ऐसे नेता के रूप में चित्रित किया गया है जो भय और धमकियों के सहारे शासन करता है और अपनी ही पार्टी के उच्चाधिकारियों को भी नीचा दिखाने से नहीं चूकता।
अंग्रेजी दैनिक 'द हिंदू' में छपी खबर के मुताबिक 2 नवंबर 2006 को अमेरिकी महावाणिज्य दूत, माइकल एस. ओवन ने एक केबल में लिखा - 'हालांकि अमेरिका ने गुजरात दंगों में मोदी की सक्रिय भूमिका के कारण 2005 में उनको वीज़ा देने से इनकार कर दिया था लेकिन मोदी की लगातार उपेक्षा करना अमेरिकी हितों के खिलाफ होगा क्योंकि अगर आनेवाले सालों में मोदी को देश की राष्ट्रीय राजनीति में प्रमुख रोल मिला तो अमेरिका को उनसे संपर्क बनाना ही होगा। इसलिए बाद में दुनिया के सामने झेंपने से अच्छा है कि हम अभी से नरेंद्र मोदी से अच्छे रिश्ते बनाना शुरू कर दें।'
ओवन ने बीजेपी और आरएसएस के कई नेताओं से बातचीत करके यह निष्कर्ष निकाला कि मोदी आज नहीं तो कल, देश की केंद्रीय राजनीति में आएंगे ही, इसलिए अमेरिका को अभी से उनसे अच्छे रिश्ते बनाना शुरू कर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि अमेरिका को मोदी से बातचीत करनी चाहिए और हम इस दौरान उनसे मानवाधिकार हनन और 2002 के दंगों के मुद्दों पर भी अपनी बात रख पाएंगे।
ओवन ने इस केबल में मोदी की इमेज के बारे में भी काफी-कुछ लिखा है। ओवन के मुताबिक 'मोदी जनता के बीच खुद को एक ईमानदार और प्रभावशाली प्रशासक व कड़क राजनेता के रूप में स्थापित करने में कामयाब रहे हैं जो बहुसंख्यक हिंदुओं के हितों का खास ख्याल रखता है।' ओवन ने यह भी कहा है कि 'मोदी के दो रूप हैं। सार्वजनिक तौर पर मोदी की इमेज एक लुभावने और पसंद किए जाने लायक नेता की है लेकिन निजी जीवन में वह एकाकी और अविश्वासी इंसान हैं। वह एक छोटी-सी सलाहकार मंडली की सहायता से शासन करते हैं। यह मंडली मुख्यमंत्री और उनके कैबिनेट व पार्टी के बीच पुल का करती है। मोदी सबके साथ मिलजुलकर और आम सहमति के आधार पर काम करने के बजाय डर और धमकियों के सहारे शासन करने में विश्वास करते हैं। विरोधियों के साथ वह काफी रूखा व्यवहार करते हैं और अक्सर पार्टी के उच्च पदाधिकारियों को भी नीचा दिखाने से नहीं चूकते।' अंग्रेजी दैनिक 'द हिंदू' में छपी खबर के मुताबिक 2 नवंबर 2006 को अमेरिकी महावाणिज्य दूत, माइकल एस. ओवन ने एक केबल में लिखा - 'हालांकि अमेरिका ने गुजरात दंगों में मोदी की सक्रिय भूमिका के कारण 2005 में उनको वीज़ा देने से इनकार कर दिया था लेकिन मोदी की लगातार उपेक्षा करना अमेरिकी हितों के खिलाफ होगा क्योंकि अगर आनेवाले सालों में मोदी को देश की राष्ट्रीय राजनीति में प्रमुख रोल मिला तो अमेरिका को उनसे संपर्क बनाना ही होगा। इसलिए बाद में दुनिया के सामने झेंपने से अच्छा है कि हम अभी से नरेंद्र मोदी से अच्छे रिश्ते बनाना शुरू कर दें।'
ओवन ने बीजेपी और आरएसएस के कई नेताओं से बातचीत करके यह निष्कर्ष निकाला कि मोदी आज नहीं तो कल, देश की केंद्रीय राजनीति में आएंगे ही, इसलिए अमेरिका को अभी से उनसे अच्छे रिश्ते बनाना शुरू कर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि अमेरिका को मोदी से बातचीत करनी चाहिए और हम इस दौरान उनसे मानवाधिकार हनन और 2002 के दंगों के मुद्दों पर भी अपनी बात रख पाएंगे।