मुसलमान के मन में ज़हर न घोलें


संविधान सभा की आखिरी बैठक के बाद बाबा साहब अंबेडकर ने जो कहा वही आज की सच्चाई है। उन्होंने कहा था- अभी तक इस देश में जो हुआ, अच्छा या बुरा, उसके लिए हम अंग्रेजों के शासन को जिम्मेवार ठहराते रहे हैं किन्तु अब आज़ाद होने के बाद हमारा अपना संविधान लागू होगा। इसके बाद देश में जो होगा उसके लिए हमें ही जिम्मेवारी लेनी पड़ेगी।
अब थोड़ा सा अंधेरा पक्ष देखें। हमारी आज़ादी के वक्त जो दिक्कतें तिल के रूप में थीं वो पहाड़ बन गई हैं। आज़ादी के समय भारत का विभाजन हुआ। विभाजन को हमने समाधान माना। एक देश पाकिस्तान, एक देश हिन्दुस्तान...दोनों सुख से अलग-अलग रह लेंगे ऐसा माना। किन्तु फिर ईद पर होली पर भारत में आनंद के साथ तनाव की मिलावट क्यों रहती है। जो मुसलमान इस देश में रह गये वो पुलिस या सेना के भरोसे पर नहीं। पाकिस्तान के मुसलमान के बदले हिन्दुस्तान का हिन्दू पड़ोसी उन्हें ज़्यादा भरोसेमंद लगा। तो फिर भारत में दंगे क्यों होते हैं? नेता इसका फ़ायदा उठा लेते हैं ऐसा बहुत लोगों का मानना है। ऐसा मानने वाले सभी देशवासियों से मेरा अनुरोध है कि वर्तमान में भारत की मूल समस्या गरीबी और भ्रष्टाचार है।आप 15 फ़ीसदी मलाईदार लोगों की चमकदार ज़िन्दगी देखकर ये भ्रम न पाल लेना कि लोग भूख से नहीं मरते हैं। पीने का पानी, अस्पताल की दवाई, स्कूल में ठीक से पढ़ाई...इन सबका अभाव है। भारत के गरीब, स्त्री या पुरुष चाहे वो किसी भी वर्ग के क्यों न हों, मानव अधिकारों से वंचित हैं।
मैं केन्द्र में कैबिनेट मिनिस्टर रही हूं। महत्वपूर्ण विभाग मेरे पास रहे। फिर मैं मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री भी रही। मैं दावा करती हूं कि हमारे देश में गरीबी साधन और संपन्नता के अभाव के कारण नहीं है। भ्रष्टाचार, अव्यवस्था तथा प्रशासनिक अड़चनें, सबसे बड़ी बात स्वदेशी ताकत की अनदेखी। यह मेरी नजर में गरीबी और बेरोजगारी के मूल कारण हैं।
नक्सलवाद और आतंकवाद भारत को निगलने के लिए मुंह बाये खड़े हैं। पंजाब में आतंकवाद का खात्मा करके, मध्य प्रदेश में नक्सलवाद का खात्मा करके हमारी सेना और पुलिस बलों ने साबित कर दिया कि बाहुबल आत्मबल में हम किसी से कम नहीं। हम कम पड़ते हैं अपनी राजनैतिक इच्छा शक्ति के सामने। मैं कहना क्या चाहती हूं। नक्सलवाद और आतंकवाद भयावह चुनौतियां हैं लेकिन इतनी बलवान नहीं कि हम उनका मुकाबला न कर सकें। हम कर सकते हैं। बड़ी चुनौती है गरीबी औऱ भुखमरी, बढ़ती बेरोजगारी, बड़े-बड़े खड़े हुए मल्टीप्लेक्स और उनके सामने अंधेरे में डूबी झुग्गी झोपड़ियां। मेरा उन  से निवेदन है जो कहते हैं कि नेताओं ने सांप्रदायिकता को जीवंत रखा है। ताकि कोई बाबरी मस्जिद के नाम पर तो कोई राम मंदिर के नाम पर वोट मांगे और इन बुनियादी समस्याओं की अनदेखी हो जाने दे।
मुझे तो लगता है जैसे मानो भारत अपनी पूरी ताकत के साथ दुनिया के सामने खड़ा न हो सके इसलिए कुछ लोगों ने एक गहरे षड्यंत्र के तहत... सांप्रदायिकता बनाम धर्म निरपेक्षता...इसको लगभग हर चुनाव में बुद्धिजीवी, नेता औऱ मतदाता कहीं न कहीं मूल मुद्दा मान बैठते हैं। इसके प्रभाव में आ जाते हैं।
तो ऐसे में क्या करें। मुझे तो ये सूझता है कि इस समस्या का निदान हो ही जाने दीजिये। भारत में हिन्दू, मुसलमान के लिए दो अलग कानून की जगह एक कानून हो। अयोध्या, मथुरा और काशी की समस्याओं का मंदिर बनाकर तुरंत समाधान हो। इनको इतना बड़ा मुद्दा मत बनने दीजिये। और इन मुद्दों को जीवंत मत रहने दीजिये। इनका फौरन समाधान कीजिये। औऱ लाइये देश की राजनीति को बुनियादी समस्याओं की तरफ। मुसलमान के मन में ज़हर मत घोलिये। राम हिन्दू के भगवान हैं। गाय उसकी मां है। गंगा मोक्ष प्रदायिनी है। तो मुसलमान के लिए राम महापुरुष हों। गऊ दूध देने के नाते मां हो औऱ गंगा खेत को सींचने वाली अन्नपूर्णा हो। इसमें इस्लाम कहां बाधक होता है। इन चीज़ों पर इतनी लंबी बहस क्यों इसमें बासठ साल क्यों बिता दिये। हिन्दू का नज़रिया इस्लाम के नज़रिये से अलग हो सकता है किन्तु सामंजस्य बनाने में इस्लाम बाधक कहां है? दूध और शक्कर जैसे रिश्ते होने दीजिये।
मैं तो अपनी पार्टी की तरफ से भारत के मुस्लिम समुदाय से अनुरोध करती हूं कि आगे बढ़िये . भारत की राजनीति को लाइये बुनियादी समस्याओं की ओर। भ्रष्टाचार, भुखमरी, अमीर गरीब की बढ़ती खाई, बेरोजगारी। इसके शिकार तो हिन्दू, मुसलमान दोनों हो रहे हैं। देश के लगभग सत्तर फ़ीसदी लोग मानवीय सुविधाओं से वंचित हैं। इसमें सभी वर्ग, सभी समुदाय हैं। रोटी के नाम पर सब एक हों। ऐसी हमारी पार्टी की अपील है। इसलिए हमने भारत का इक्कीसवीं सदी का नारा दिया है। जिसमें इक्कीसवीं सदी का रोडमेप है।
जब मिलेंगे रोटी राम ... तभी बनेंगे पूरे काम। 

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