कैसे जमा किया विदेश में काला धन? सरकार को देना होगा जवाब
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तहलका टुडे टीम
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने आज गुरुवार को काले धन के मामले में फिर कड़ा रुख अख्तियार किया। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को दूसरा एफिडेविट दाखिल करने के निर्देश देते हुए कहा कि वह काले धन के मामले में की गई जांच की पूरी रिपोर्ट अदालत को अगले गुरुवार तक सौंप दे। अदालत ने सरकार से कहा कि विदेशों में काला धन जमा कर रहे लोगों को बेनकाब करे। कोर्ट ने पुणे के हसन अली खान के मामले में भी सवाल उठाए।
विदेशी बैंकों में भारतीयों द्वारा जमा काले धन के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने आज फिर सुनवाई की। सुनवाई जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी की अदालत में हुई। कोर्ट ने फिर एक बार चिंता जताई कि विदेशों में जमा काला धन हथियार, ड्रग्स आदि की तस्करी का पैसा होने की आशंका है। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए कि वह काले धन के मामले में दूसरा एफिडेविट फाइल करे और इस मामले में अभी तक जो भी जांच की गई है, उसकी पूरी प्रगति रिपोर्ट पेश करे। कोर्ट ने पूछा कि काला धन जमा करने वालों के असली चेहरे कौन हैं? इस काले धन का सोर्स क्या है? अदालत ने इस मुद्दे पर फिर सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि वह इस मामले में पर्याप्त कार्रवाई नहीं कर रही है।
कोर्ट ने पुणे के सैय्यद मोहम्मद हसन अली खान पर भी सवाल उठाए और सरकार से पूछा कि इस मामले में सरकार खामोश क्यों है? अदालत ने यह भी पूछा कि वह भारत में है भी या नहीं?
पुणे का व्यावसायी सैय्यद मोहम्मद हसन अली खान लंबे समय से विवादास्पद बना हुआ है। 2009 में सरकार ने राज्यसभा में एक लिखित प्रश्न के जवाब में माना था कि हसन अली देश में सबसे बड़ा टैक्स डिफाल्टर है और उसे करीब 50,000 करोड़ रुपए का कर सरकार को चुकाना है। बीजेपी का आरोप है कि अली खान के दाउद इब्राहिम जैसे माफियाओं से संबंध हैं।
राम जेठमलानी ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर मांग की है कि विदेशों में काला धन जमा करने वालों के नाम का सरकार को खुलासा करना चाहिए।
भारत सरकार की कई देशों से है संधि
भारत सरकार ने स्विट्जरलैंड के अलावा करीब 78 दूसरे देशों से भी काले धन के मामले में या तो संधि की है या फिर बातचीत चल रही है। इस संधि में प्रावधान है कि उन देशों की सरकारें भारतीयों द्वारा जमा काले धन की रकम का खुलासा करेंगीं। इन देशों में मॉरिशस, ब्राजील, इटली, अमेरिका, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात और चैनल आईलैंड शामिल हैं।
स्विट्जरलैंड की सरकार भी काले धन के मामले में बने नियमों में कुछ फेरबदल कर रही है, जिसके बाद भारतीय सरकार को उन भारतीयों की जानकारी मिल सकेगी, जिन्होंने वहां के बैंकों में काला धन छुपाया है। लेकिन पूरी जानकारी केवल कुछ ही मामलों में दी जा सकेगी। फिर ये जानकारियां केवल कर वसूलने के लिए ही इस्तेमाल की जा सकेंगीं। और यही कारण है कि भारतीय सरकार अभी इन जानकारियों का खुलासा करने के पक्ष में नहीं है।
अमेरिका में सख्त कार्रवाई का प्रावधान
अमेरिका में विदेशों में काला धन जमा करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का प्रावधान है। वहां इसके लिए ‘यूएसएस पेट्रियाट एक्ट’ बनाया गया है। विदेशों में जमा धन का इस्तेमाल कर चोरी के अलावा आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए भी होता है। ‘यूएसएस पेट्रियाट एक्ट’ में विदेशों में रकम जमा करने वालों का खुलासा करने का प्रावधान है। इन्हीं कड़े कानूनों की वजह से अमेरिका विदेशों में धन जमा करने वालों की सूची में काफी नीचे है। इस एक्ट में उन अमेरिकी नागरिकों की संपत्ति जब्त करने का भी प्रावधान है, जो विदेशों में अवैध रूप से रकम जमा कर रहे हैं। इस एक्ट के अनुसार सरकार महाधिवक्ता या वित्त विभाग के माध्यम से इन विदेशी बैंकों से इन व्यक्तियों के रिकॉर्ड मांग सकती है।
आपका मत
जर्मनी के कुछ बैंकों द्वारा काला धन जमा करने वाले भारतीयों की जानकारी सरकार को दी गई है। जब जर्मनी से इन भारतीयों की जानकारी मिल सकती है तो सरकार स्विट्जरलैंड सहित दूसरे देशों से जानकारी क्यों नहीं निकाल सकती? विश्व के सभी देशों का काला धन मिलाकर भी भारतीयों द्वारा जमा काले धन से कम है। आखिर भारत से ही काला धन विदेशों में इतनी स्वतंत्रता से कैसे और क्यों जमा किया जाता है? इन सभी मुद्दों पर आप भी दे सकते हैं अपनी राय।
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने आज गुरुवार को काले धन के मामले में फिर कड़ा रुख अख्तियार किया। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को दूसरा एफिडेविट दाखिल करने के निर्देश देते हुए कहा कि वह काले धन के मामले में की गई जांच की पूरी रिपोर्ट अदालत को अगले गुरुवार तक सौंप दे। अदालत ने सरकार से कहा कि विदेशों में काला धन जमा कर रहे लोगों को बेनकाब करे। कोर्ट ने पुणे के हसन अली खान के मामले में भी सवाल उठाए।
विदेशी बैंकों में भारतीयों द्वारा जमा काले धन के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने आज फिर सुनवाई की। सुनवाई जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी की अदालत में हुई। कोर्ट ने फिर एक बार चिंता जताई कि विदेशों में जमा काला धन हथियार, ड्रग्स आदि की तस्करी का पैसा होने की आशंका है। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए कि वह काले धन के मामले में दूसरा एफिडेविट फाइल करे और इस मामले में अभी तक जो भी जांच की गई है, उसकी पूरी प्रगति रिपोर्ट पेश करे। कोर्ट ने पूछा कि काला धन जमा करने वालों के असली चेहरे कौन हैं? इस काले धन का सोर्स क्या है? अदालत ने इस मुद्दे पर फिर सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि वह इस मामले में पर्याप्त कार्रवाई नहीं कर रही है।
कोर्ट ने पुणे के सैय्यद मोहम्मद हसन अली खान पर भी सवाल उठाए और सरकार से पूछा कि इस मामले में सरकार खामोश क्यों है? अदालत ने यह भी पूछा कि वह भारत में है भी या नहीं?
पुणे का व्यावसायी सैय्यद मोहम्मद हसन अली खान लंबे समय से विवादास्पद बना हुआ है। 2009 में सरकार ने राज्यसभा में एक लिखित प्रश्न के जवाब में माना था कि हसन अली देश में सबसे बड़ा टैक्स डिफाल्टर है और उसे करीब 50,000 करोड़ रुपए का कर सरकार को चुकाना है। बीजेपी का आरोप है कि अली खान के दाउद इब्राहिम जैसे माफियाओं से संबंध हैं।
राम जेठमलानी ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर मांग की है कि विदेशों में काला धन जमा करने वालों के नाम का सरकार को खुलासा करना चाहिए।
भारत सरकार की कई देशों से है संधि
भारत सरकार ने स्विट्जरलैंड के अलावा करीब 78 दूसरे देशों से भी काले धन के मामले में या तो संधि की है या फिर बातचीत चल रही है। इस संधि में प्रावधान है कि उन देशों की सरकारें भारतीयों द्वारा जमा काले धन की रकम का खुलासा करेंगीं। इन देशों में मॉरिशस, ब्राजील, इटली, अमेरिका, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात और चैनल आईलैंड शामिल हैं।
स्विट्जरलैंड की सरकार भी काले धन के मामले में बने नियमों में कुछ फेरबदल कर रही है, जिसके बाद भारतीय सरकार को उन भारतीयों की जानकारी मिल सकेगी, जिन्होंने वहां के बैंकों में काला धन छुपाया है। लेकिन पूरी जानकारी केवल कुछ ही मामलों में दी जा सकेगी। फिर ये जानकारियां केवल कर वसूलने के लिए ही इस्तेमाल की जा सकेंगीं। और यही कारण है कि भारतीय सरकार अभी इन जानकारियों का खुलासा करने के पक्ष में नहीं है।
अमेरिका में सख्त कार्रवाई का प्रावधान
अमेरिका में विदेशों में काला धन जमा करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का प्रावधान है। वहां इसके लिए ‘यूएसएस पेट्रियाट एक्ट’ बनाया गया है। विदेशों में जमा धन का इस्तेमाल कर चोरी के अलावा आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए भी होता है। ‘यूएसएस पेट्रियाट एक्ट’ में विदेशों में रकम जमा करने वालों का खुलासा करने का प्रावधान है। इन्हीं कड़े कानूनों की वजह से अमेरिका विदेशों में धन जमा करने वालों की सूची में काफी नीचे है। इस एक्ट में उन अमेरिकी नागरिकों की संपत्ति जब्त करने का भी प्रावधान है, जो विदेशों में अवैध रूप से रकम जमा कर रहे हैं। इस एक्ट के अनुसार सरकार महाधिवक्ता या वित्त विभाग के माध्यम से इन विदेशी बैंकों से इन व्यक्तियों के रिकॉर्ड मांग सकती है।
आपका मत
जर्मनी के कुछ बैंकों द्वारा काला धन जमा करने वाले भारतीयों की जानकारी सरकार को दी गई है। जब जर्मनी से इन भारतीयों की जानकारी मिल सकती है तो सरकार स्विट्जरलैंड सहित दूसरे देशों से जानकारी क्यों नहीं निकाल सकती? विश्व के सभी देशों का काला धन मिलाकर भी भारतीयों द्वारा जमा काले धन से कम है। आखिर भारत से ही काला धन विदेशों में इतनी स्वतंत्रता से कैसे और क्यों जमा किया जाता है? इन सभी मुद्दों पर आप भी दे सकते हैं अपनी राय।