एडीएम को जिंदा जलाने के लिए सात मुख्यमंत्री जिम्मेदार?
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मुंबई. महाराष्ट्र में मालेगांव के एडीएम यशवंत सोनावणे को जिंदा जलाकर मार डालने में इस इलाके में सक्रिय तेल माफिया का हाथ रहा है लेकिन इस हत्या की वजह और भी है। आईएएस अफसर की हत्या के लिए जिम्मेदार बताए जा रहे माफिया पर नकेल कसने की बार-बार चेतावनी मिलने के बावजूद सरकार ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाए।
सोनावणे को गत मंगलवार को स्थानीय तेल माफिया पोपट शिंदे ने दिनदहाड़े किरोसीन डालकर जिंदा जला दिया गया था। सोनावणे की मौत के बाद हरकत में आई सरकार के आदेश में मुंबई सहित राज्य के कई शहरों पर मिलावटखोरी के अड्डे पर छापेमारी शुक्रवार को भी जारी है। अब तक करीब 200 लोगों को हिरासत में लिया गया है और 1250 लीटर तेल जब्त किया गया है।
एक अन्य आईएएस अफसर लीना मेहंदाले ने 1995-96 में ही राज्य में पेट्रोलियम पदार्थों में मिलावटखोरों के गोरखधंधे पर विस्तृत रिपोर्ट दी थी। वह उस वक्त नासिक की डिविजनल कमिश्नर थीं। मनमाड़ और मालेगांव नासिक डिविजन का ही हिस्सा है।
हालांकि राज्य सरकार ने इस रिपोर्ट पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं की। शायद इसकी वजह यह रही कि मेहंदाले ने अपनी रिपोर्ट में कुछ बाहुबली राजनेताओं का नाम लिया था जो मिलावटखारों के इस रैकेट को शह देते थे।
पिछले साल महाराष्ट्र के एडिशनल चीफ सेक्रेट्री पद से रिटायर्ट मेहंदाले कहती हैं, ‘मैं अब उन राजनेताओं का नाम नहीं ले सकती हूं। लेकिन सभी को पता है कि मैं किन लोगों के बारे में बात कर रही हूं।’
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस मामले में शक की सुई धुले से एक पूर्व मंत्री की ओर उठती है जिनके इस इलाके में कई पेट्रोल पम्प और केरोसिन की एजेंसियां हैं।
बीते दिनों को याद करती हुई मेहंदाले कहती हैं, ‘मेरे एडिशनल कलेक्टर ने राज्य में तेल मिलावट से जुड़ी मासिक रिपोर्ट सौंपी थी जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। मैंने तेल की खपत का लेखा-जोखा तैयार करने के लिए दो वर्षों तक कुछ और लोगों को काम पर लगाया। मुझे यह देखकर हैरत हुई कि केरोसिन और पेट्रोल डीलर शायद ही कोई रिकार्ड रखते हैं इससे मिलावटखोरों के रैकेट को मदद मिलती थी।’
उन्होंने कहा, ‘मैंने इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट तैयार की और सिफारिश की कि पेट्रोल व किरोसिन एजेंसियों का ठेका उसी शख्स को नहीं फिर से नहीं दिया जाना चाहिए जो मिलावटखोरों की राह आसान बनाते हैं। जिन एजेंसियों ने अपना लेखा-जोखा तैयार नहीं किया था उनसे बकाया वसूलने की भी सिफारिश की गई।’
15 साल से अधिक समय बीत गए और इस दौरान सात मुख्यमंत्री बदले लेकिन मेहंदाले की सिफारिश पर किसी भी सीएम ने गौर नहीं किया।
'राशनिंग इंस्पेक्टर को केस दर्ज करने का अधिकार मिले'
मेहंदाले कहती हैं, ‘यह बेहद निराशाजनक है कि मेरी रिपोर्ट को दरकिनार कर दिया गया। 2008-09 में मैंने इस मसले पर महाराष्ट्र के विधि सचिव से बात की और सीआरपीसी में संशोधन की मांग की। मैंने सिफारिश की कि राशनिंग इंस्पेक्टरों को अदालत में मामले दर्ज करने का अधिकार मिलना चाहिए।’
फिलहाल, राशनिंग इंस्पेक्टर मिलावटखोरी से जुड़े मामलों की जानकारी सबसे पहले पुलिस को देते हैं और पुलिस से इस मामले में कार्रवाई की उम्मीद की जाती है। लेकिन पुलिस अपने हिसाब से काम करती है। उन्होंने कहा, ‘राज्य कैबिनेट ने मेरी सिफारिश पर गौर किया और इसे केंद्र सरकार को भेज दिया लेकिन इसके बाद क्या हुआ, पता नहीं।’
मेहंदाले ने सोनावणे की हत्या पर दुख जताया और कहा कि पुलिस को इस मामले की तह तक जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘उन्हें बड़ी मछलियों को पकड़ना चाहिए। सभी सरकारी अधिकारियों को सुरक्षा मुहैया कराना भी संभव नहीं है लेकिन इस रैकेट से जुड़े लोगों के खिलाफ कम-से-कम पुलिस को कड़ी कार्रवाई तो करनी चाहिए।’
आपकी बात
मिलावटखोरों को संरक्षण देने में राजनेताओं की भूमिका के बारे में आप क्या सोचते हैं? क्या अपराध और राजनीति का गठजोड़ इतना मजबूत हो गया है कि इसे तोड़ पाना किसी के वश में नहीं? अपनी राय नीचे कमेंट बॉक्स में लिखकर दुनियाभर के पाठकों से शेयर कर सकते हैं।
सोनावणे को गत मंगलवार को स्थानीय तेल माफिया पोपट शिंदे ने दिनदहाड़े किरोसीन डालकर जिंदा जला दिया गया था। सोनावणे की मौत के बाद हरकत में आई सरकार के आदेश में मुंबई सहित राज्य के कई शहरों पर मिलावटखोरी के अड्डे पर छापेमारी शुक्रवार को भी जारी है। अब तक करीब 200 लोगों को हिरासत में लिया गया है और 1250 लीटर तेल जब्त किया गया है।
एक अन्य आईएएस अफसर लीना मेहंदाले ने 1995-96 में ही राज्य में पेट्रोलियम पदार्थों में मिलावटखोरों के गोरखधंधे पर विस्तृत रिपोर्ट दी थी। वह उस वक्त नासिक की डिविजनल कमिश्नर थीं। मनमाड़ और मालेगांव नासिक डिविजन का ही हिस्सा है।
हालांकि राज्य सरकार ने इस रिपोर्ट पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं की। शायद इसकी वजह यह रही कि मेहंदाले ने अपनी रिपोर्ट में कुछ बाहुबली राजनेताओं का नाम लिया था जो मिलावटखारों के इस रैकेट को शह देते थे।
पिछले साल महाराष्ट्र के एडिशनल चीफ सेक्रेट्री पद से रिटायर्ट मेहंदाले कहती हैं, ‘मैं अब उन राजनेताओं का नाम नहीं ले सकती हूं। लेकिन सभी को पता है कि मैं किन लोगों के बारे में बात कर रही हूं।’
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस मामले में शक की सुई धुले से एक पूर्व मंत्री की ओर उठती है जिनके इस इलाके में कई पेट्रोल पम्प और केरोसिन की एजेंसियां हैं।
बीते दिनों को याद करती हुई मेहंदाले कहती हैं, ‘मेरे एडिशनल कलेक्टर ने राज्य में तेल मिलावट से जुड़ी मासिक रिपोर्ट सौंपी थी जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। मैंने तेल की खपत का लेखा-जोखा तैयार करने के लिए दो वर्षों तक कुछ और लोगों को काम पर लगाया। मुझे यह देखकर हैरत हुई कि केरोसिन और पेट्रोल डीलर शायद ही कोई रिकार्ड रखते हैं इससे मिलावटखोरों के रैकेट को मदद मिलती थी।’
उन्होंने कहा, ‘मैंने इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट तैयार की और सिफारिश की कि पेट्रोल व किरोसिन एजेंसियों का ठेका उसी शख्स को नहीं फिर से नहीं दिया जाना चाहिए जो मिलावटखोरों की राह आसान बनाते हैं। जिन एजेंसियों ने अपना लेखा-जोखा तैयार नहीं किया था उनसे बकाया वसूलने की भी सिफारिश की गई।’
15 साल से अधिक समय बीत गए और इस दौरान सात मुख्यमंत्री बदले लेकिन मेहंदाले की सिफारिश पर किसी भी सीएम ने गौर नहीं किया।
'राशनिंग इंस्पेक्टर को केस दर्ज करने का अधिकार मिले'
मेहंदाले कहती हैं, ‘यह बेहद निराशाजनक है कि मेरी रिपोर्ट को दरकिनार कर दिया गया। 2008-09 में मैंने इस मसले पर महाराष्ट्र के विधि सचिव से बात की और सीआरपीसी में संशोधन की मांग की। मैंने सिफारिश की कि राशनिंग इंस्पेक्टरों को अदालत में मामले दर्ज करने का अधिकार मिलना चाहिए।’
फिलहाल, राशनिंग इंस्पेक्टर मिलावटखोरी से जुड़े मामलों की जानकारी सबसे पहले पुलिस को देते हैं और पुलिस से इस मामले में कार्रवाई की उम्मीद की जाती है। लेकिन पुलिस अपने हिसाब से काम करती है। उन्होंने कहा, ‘राज्य कैबिनेट ने मेरी सिफारिश पर गौर किया और इसे केंद्र सरकार को भेज दिया लेकिन इसके बाद क्या हुआ, पता नहीं।’
मेहंदाले ने सोनावणे की हत्या पर दुख जताया और कहा कि पुलिस को इस मामले की तह तक जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘उन्हें बड़ी मछलियों को पकड़ना चाहिए। सभी सरकारी अधिकारियों को सुरक्षा मुहैया कराना भी संभव नहीं है लेकिन इस रैकेट से जुड़े लोगों के खिलाफ कम-से-कम पुलिस को कड़ी कार्रवाई तो करनी चाहिए।’
आपकी बात
मिलावटखोरों को संरक्षण देने में राजनेताओं की भूमिका के बारे में आप क्या सोचते हैं? क्या अपराध और राजनीति का गठजोड़ इतना मजबूत हो गया है कि इसे तोड़ पाना किसी के वश में नहीं? अपनी राय नीचे कमेंट बॉक्स में लिखकर दुनियाभर के पाठकों से शेयर कर सकते हैं।