इंटरनेट ने बदल दिया जर्मनी का अखबार उद्योग
https://tehalkatodayindia.blogspot.com/2010/09/blog-post_1261.html
बर्लिन। खबरों की इंटरनेट पर मुफ्त और आसान उपलब्धता का अन्य पश्चिमी देशों की ही तरह जर्मनी के अखबार उद्योग पर भी असर पड़ा है और प्रतिबद्ध पाठकों की गिरती संख्या से चिंतित वहां के अखबार बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं।
जर्मन फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट से उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, जर्मनी में फिलवक्त 350 अखबार और तीन हजार पत्रिकाएं निकलती हैं। इनमें से अधिकतर का प्रकाशन जर्मन भाषा में ही होता है लेकिन हाल ही के वर्षों में अंग्रेजी अखबारों और पत्रिकाओं के प्रकाशन में भी इजाफा देखा गया है।
जर्मन मीडिया जगत से जुड़े लोगों का मानना है कि प्रेस स्वतंत्रता के मामले में 190 से अधिक राष्ट्रों की सूची में जर्मनी का 17वें स्थान पर होना देश की अच्छी स्थिति बयान करता है। अहम बात यह है कि इस अच्छे रिकार्ड के पीछे मुख्य वजह जर्मनी के अखबार ही हैं, जिनके पाठकों की संख्या कम हो रही है।
जर्मनी के अग्रणी अखबार फ्रेंकफर्टर एल्जेमीन के आर्थिक संपादकीय विभाग के प्रमुख डॉ. मेनफ्रेड शेफर्स ने बताया कि इंटरनेट पत्रकारिता ने जर्मनी के अखबारों को तेजी से बदलने को मजबूर कर दिया है।
शुरुआत में इंटरनेट पर आपको सिर्फ राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय महत्व की ही खबरें दिखाई देती थीं। लेकिन अब इंटरनेट पर स्थानीय खबरें भी नजर आने लगी हैं। उन्होंने कहा कि जर्मनी के अखबार आमूलचूल परिवर्तन के दौर से गुजर रहे हैं। पचास के दशक से बीते कुछ वर्षों तक यहां कोई भी अखबार पहले पृष्ठ पर विज्ञापन या चित्र का प्रकाशन नहीं करता था। लेकिन अब पहले पृष्ठ पर आकर्षक चित्रों का प्रकाशन करने की शुरुआत हुई है।डॉ. शेफर्स के मुताबिक जर्मनी के अखबारों ने अब युवाओं पर ध्यान केंद्रित किया है। पारंपरिक पाठकों के साथ ही उन युवाओं को जोड़ने के लिए भी कोशिशें हो रही हैं जो इंटरनेट के बाद मोबाइल के जरिए खबरों से रूबरू होना चाहते हैं।
जर्मन फेडरेशन आफ जर्नलिस्ट की प्रवक्ता इवा वेसवेज बताती हैं कि प्रेस स्वतंत्रता के मामले में हमें अच्छे रिकार्ड का काफी कुछ श्रेय जर्मन अखबारों को जाता है लेकिन चिंता की बात यह है कि इंटरनेट पर खबरों की नि:शुल्क उपलब्धता का पिछले कुछ वर्षो में अखबारों की बिक्री पर गहरा असर पड़ा है।
इवा बताती हैं कि भविष्य को देखते हुए अखबारों को अब बदलाव करने की जरूरत है। यह अखबारों की संरचना से जुड़ा संकट है। पाठक अब अखबारों को खरीदकर पढ़ने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखते। इसके बजाय वे इंटरनेट पर खबरें पढ़ना पसंद करते हैं।
उन्होंने कहा कि इस संकट को देखते हुए जर्मनी के अखबारों के बीच आम सहमति निर्मित करने की कोशिश की गई है। अखबार अब पाठकों के साथ ज्यादा पारस्परिक संवाद साध रहे हैं और पाठकों की आलोचनात्मक टिप्पणियां छापने से उन्हें गुरेज नहीं है।
इवा के मुताबिक, अखबार जगत ने यह मान लिया है कि पाठकों को जोड़े रखने के लिए व्यापक कवरेज वाली खबरों का प्रकाशन जरूरी है।
जर्मनी में अखबारों को 60 फीसदी आमदनी प्रतियों की बिक्री से होती है, जबकि 40 फीसदी आय विज्ञापनों से होती है, जबकि भारत में स्थिति इसके एकदम उलट है।
जर्मन फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट से उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, जर्मनी में फिलवक्त 350 अखबार और तीन हजार पत्रिकाएं निकलती हैं। इनमें से अधिकतर का प्रकाशन जर्मन भाषा में ही होता है लेकिन हाल ही के वर्षों में अंग्रेजी अखबारों और पत्रिकाओं के प्रकाशन में भी इजाफा देखा गया है।
जर्मन मीडिया जगत से जुड़े लोगों का मानना है कि प्रेस स्वतंत्रता के मामले में 190 से अधिक राष्ट्रों की सूची में जर्मनी का 17वें स्थान पर होना देश की अच्छी स्थिति बयान करता है। अहम बात यह है कि इस अच्छे रिकार्ड के पीछे मुख्य वजह जर्मनी के अखबार ही हैं, जिनके पाठकों की संख्या कम हो रही है।
जर्मनी के अग्रणी अखबार फ्रेंकफर्टर एल्जेमीन के आर्थिक संपादकीय विभाग के प्रमुख डॉ. मेनफ्रेड शेफर्स ने बताया कि इंटरनेट पत्रकारिता ने जर्मनी के अखबारों को तेजी से बदलने को मजबूर कर दिया है।
शुरुआत में इंटरनेट पर आपको सिर्फ राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय महत्व की ही खबरें दिखाई देती थीं। लेकिन अब इंटरनेट पर स्थानीय खबरें भी नजर आने लगी हैं। उन्होंने कहा कि जर्मनी के अखबार आमूलचूल परिवर्तन के दौर से गुजर रहे हैं। पचास के दशक से बीते कुछ वर्षों तक यहां कोई भी अखबार पहले पृष्ठ पर विज्ञापन या चित्र का प्रकाशन नहीं करता था। लेकिन अब पहले पृष्ठ पर आकर्षक चित्रों का प्रकाशन करने की शुरुआत हुई है।डॉ. शेफर्स के मुताबिक जर्मनी के अखबारों ने अब युवाओं पर ध्यान केंद्रित किया है। पारंपरिक पाठकों के साथ ही उन युवाओं को जोड़ने के लिए भी कोशिशें हो रही हैं जो इंटरनेट के बाद मोबाइल के जरिए खबरों से रूबरू होना चाहते हैं।
जर्मन फेडरेशन आफ जर्नलिस्ट की प्रवक्ता इवा वेसवेज बताती हैं कि प्रेस स्वतंत्रता के मामले में हमें अच्छे रिकार्ड का काफी कुछ श्रेय जर्मन अखबारों को जाता है लेकिन चिंता की बात यह है कि इंटरनेट पर खबरों की नि:शुल्क उपलब्धता का पिछले कुछ वर्षो में अखबारों की बिक्री पर गहरा असर पड़ा है।
इवा बताती हैं कि भविष्य को देखते हुए अखबारों को अब बदलाव करने की जरूरत है। यह अखबारों की संरचना से जुड़ा संकट है। पाठक अब अखबारों को खरीदकर पढ़ने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखते। इसके बजाय वे इंटरनेट पर खबरें पढ़ना पसंद करते हैं।
उन्होंने कहा कि इस संकट को देखते हुए जर्मनी के अखबारों के बीच आम सहमति निर्मित करने की कोशिश की गई है। अखबार अब पाठकों के साथ ज्यादा पारस्परिक संवाद साध रहे हैं और पाठकों की आलोचनात्मक टिप्पणियां छापने से उन्हें गुरेज नहीं है।
इवा के मुताबिक, अखबार जगत ने यह मान लिया है कि पाठकों को जोड़े रखने के लिए व्यापक कवरेज वाली खबरों का प्रकाशन जरूरी है।
जर्मनी में अखबारों को 60 फीसदी आमदनी प्रतियों की बिक्री से होती है, जबकि 40 फीसदी आय विज्ञापनों से होती है, जबकि भारत में स्थिति इसके एकदम उलट है।