सुप्रीम कोर्ट-सिर्फ दहेज मांगना ही अपराध नहीं

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी व्यक्ति को केवल दहेज की मांग के आधार पर ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता जब तक कि इसके लिए मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना न दी गई हो और जिसके चलते मौत हुई हो।
जस्टिस आरएम लोढ़ा और एके पटनायक की बेंच ने एक फैसले में कहा है कि अभियोजन को इस संबंध में पुख्ता सबूत पेश करने होंगे कि पीड़ित की मौत से पहले आरोपी ने मांग के सिलसिले में उसे प्रताड़ित किया था।
क्या है मामला 
राजस्थान के अलवर में 8 मार्च 1993 को संतोष नामक महिला की दहेज के कारण मौत के मामले में हाईकोर्ट ने उसके पति अमर सिंह को उम्र कैद की सजा सुनाई थी, वहीं उसकी सास गोरधनी और एक अन्य रिश्तेदार जगदीश को दोषमुक्त करार देते हुए बरी कर दिया था। अमर सिंह ने अपनी सजा को और राज्य सरकार ने दो को बरी करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इसके पूर्व सेशंस कोर्ट ने तीनों को दहेज मृत्यु संबंधी 304बी और प्रताड़ना संबंधी 498ए के तहत दोषी करार दिया था।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने
बेंच ने कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों से पता चलता है कि अमर सिंह के लिए स्कूटर की खातिर 25000 रुपए का दहेज मांगने में जगदीश और गोरधनी की भी भूमिका थी लेकिन भादवि की धारा 498ए या 304 बी के तहत दहेज मांगना अपने आप में कोई अपराध नहीं है। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि दोनों धाराओं में महिला को पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा प्रताड़ित किया जाना दंडनीय है।
बेंच के मुताबिक अमर सिंह के खिलाफ सबूत थे, जिससे पता चलता था कि वह पत्नी संतोष को प्रताड़ित करता था। लेकिन जगदीश और गोरधनी के खिलाफ ऐसे कोई सबूत नहीं थे। शीर्ष अदालत ने अमर सिंह की उम्र कैद को दस साल की कैद में बदल दिया।
अपने एक फैसले का हवाला देते हुए बेंच ने कहा कि दहेज मौत के मामलों में पति के अलावा दूसरे संबंधियों पर लगाए गए आरोप संदेह से परे होना चाहिए। केवल कल्पनाओं के आधार पर उन्हें दोषी नहीं ठहराया जा सकता

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