'मौलाना-अमर-प्रेम' की वजह आजम तो नहीं?
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तहलका टुडे टीम
लखनऊ -बकौल नरेश अग्रवाल,' राजनीति में कुछ भी हो सकता है।' 'कुछ भी' होने में ही एक ही मंच पर समाजवादी पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह का एक मंच पर आना भी शामिल हैं। मुलायम सिंह के बगलगीर आजम खां का एकाएक हाशिये पर चला जाना भी इसी 'कुछ भी' में शामिल है।
2012 विधानसभा चुनावों के बाद से आजम खां मुलायम सिंह यादव के नूर-ए-नजर रहे। अखिलेश यादव की सरकार में में सबसे ताकतवर मंत्री रहे। आजम के भरोसे पर ही मुलायम ने यादव-मुश्लिम गठजोड़ के जरिए लोकसभा चुनाव जीतने का सपना देखा था।
अब वही मुलायम मौलाना कल्बे जव्वाद और अमर सिंह पर भरोसा करते नजर आ रहे हैं। विश्लेषकों की माने तो मुलायम के नए भरोसे की वजह भी आजम ही हैं।
रविवार को मुलायम ने शिया धर्म गुरु मौलाना कल्बे जव्वाद से मुलाकात की थी। मौलाना जव्वाद उत्तर प्रदेश में शिया वक्फ बोर्ड के चुनावों का विरोध कर रहे थे।
सोमवार को चुनाव के लिए नामांकन किया जाना था, लेकिन अंतिम समय में चुनाव स्थगित कर दिए गए। प्रदेश की काबीना में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री आजम चुनावों के पक्ष में थे। अपनी ही सरकार का ये फैसला उन्हें नागवार लगा।
मुलायम, कल्बे जव्वाद की मुलाकात और शिया वक्फ बोर्ड के चुनाव को रद्द करना, दोनों घटनाओं ने आजम को बहुत नाराज किया।
आजम सरकार से इतने नाराज हुए कि मंगलवार को आयोजित उर्दू अकेडमी के कार्यक्रम में वह नहीं पहंचे, जबकि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव वहां उनका इंतजार करते रहे।
आजम ने कार्यक्रम में न आने को बहाना ये बनाया कि ट्रेन छूटने के कारण वाराणसी से समय पर लखनऊ नहीं लौट सके। दिलचस्प बात ये रही कि कार्यक्रम की रूपरेखा उन्होंने ही तैयार की थी, लेकिन खुद ही नदारद हो गए।
मानो वक्फ बोर्ड के चुनाव रद्द कर सरकार ने आजम कम नाराज किया था, मुलायम ने 'दुश्मन' अमर सिंह को फोन कर उन्हें और नाराज कर दिया। अमर सिंह आजम खां के पुराने दुश्मनों में हैं।
�2009 लोकसभा चुनावों में अमर के लिए ही मुलायम ने आजम से दुश्मनी मोल ले ली थी। सपा में अमर का कद जैसे बढ़त गया था, आजम हाशिये पर फिसलते गए।
लेकिन 2010 में फिरोजाबाद लोकसभा सीट पर अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव की हार के बाद मुलायम के परिवार और अमर के बीच तल्खी आ गई।
उस तल्खी ने ही मुलायम के अमर-प्रेम का अंत भी कर दिया। अमर को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। बीते चार सालों में उन्होंने सियासत में दोबारा पैर जमाने के लिए कई कोशिशें की लेकिन हर बार नाकाम रहे।
हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल के टिकट पर चुनाव भी लड़ा, लेकिन जमानत भी नहीं बचा सके। ऐसे हालात में जब अमर के लिए राजनीति के सभी दरवाजे बंद दिख रहे थे, मुलायम ने उन्हें फोन कर संजीवनी दे दी।
लेकिन मुलायम ने ये किया आजम को और अधिक नाराज करके। सवाल ये उठता है कि अब आजम क्या करेंगे?
लखनऊ -बकौल नरेश अग्रवाल,' राजनीति में कुछ भी हो सकता है।' 'कुछ भी' होने में ही एक ही मंच पर समाजवादी पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह का एक मंच पर आना भी शामिल हैं। मुलायम सिंह के बगलगीर आजम खां का एकाएक हाशिये पर चला जाना भी इसी 'कुछ भी' में शामिल है।
2012 विधानसभा चुनावों के बाद से आजम खां मुलायम सिंह यादव के नूर-ए-नजर रहे। अखिलेश यादव की सरकार में में सबसे ताकतवर मंत्री रहे। आजम के भरोसे पर ही मुलायम ने यादव-मुश्लिम गठजोड़ के जरिए लोकसभा चुनाव जीतने का सपना देखा था।
अब वही मुलायम मौलाना कल्बे जव्वाद और अमर सिंह पर भरोसा करते नजर आ रहे हैं। विश्लेषकों की माने तो मुलायम के नए भरोसे की वजह भी आजम ही हैं।
रविवार को मुलायम ने शिया धर्म गुरु मौलाना कल्बे जव्वाद से मुलाकात की थी। मौलाना जव्वाद उत्तर प्रदेश में शिया वक्फ बोर्ड के चुनावों का विरोध कर रहे थे।
सोमवार को चुनाव के लिए नामांकन किया जाना था, लेकिन अंतिम समय में चुनाव स्थगित कर दिए गए। प्रदेश की काबीना में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री आजम चुनावों के पक्ष में थे। अपनी ही सरकार का ये फैसला उन्हें नागवार लगा।
मुलायम, कल्बे जव्वाद की मुलाकात और शिया वक्फ बोर्ड के चुनाव को रद्द करना, दोनों घटनाओं ने आजम को बहुत नाराज किया।
आजम सरकार से इतने नाराज हुए कि मंगलवार को आयोजित उर्दू अकेडमी के कार्यक्रम में वह नहीं पहंचे, जबकि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव वहां उनका इंतजार करते रहे।
आजम ने कार्यक्रम में न आने को बहाना ये बनाया कि ट्रेन छूटने के कारण वाराणसी से समय पर लखनऊ नहीं लौट सके। दिलचस्प बात ये रही कि कार्यक्रम की रूपरेखा उन्होंने ही तैयार की थी, लेकिन खुद ही नदारद हो गए।
मानो वक्फ बोर्ड के चुनाव रद्द कर सरकार ने आजम कम नाराज किया था, मुलायम ने 'दुश्मन' अमर सिंह को फोन कर उन्हें और नाराज कर दिया। अमर सिंह आजम खां के पुराने दुश्मनों में हैं।
�2009 लोकसभा चुनावों में अमर के लिए ही मुलायम ने आजम से दुश्मनी मोल ले ली थी। सपा में अमर का कद जैसे बढ़त गया था, आजम हाशिये पर फिसलते गए।
लेकिन 2010 में फिरोजाबाद लोकसभा सीट पर अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव की हार के बाद मुलायम के परिवार और अमर के बीच तल्खी आ गई।
उस तल्खी ने ही मुलायम के अमर-प्रेम का अंत भी कर दिया। अमर को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। बीते चार सालों में उन्होंने सियासत में दोबारा पैर जमाने के लिए कई कोशिशें की लेकिन हर बार नाकाम रहे।
हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल के टिकट पर चुनाव भी लड़ा, लेकिन जमानत भी नहीं बचा सके। ऐसे हालात में जब अमर के लिए राजनीति के सभी दरवाजे बंद दिख रहे थे, मुलायम ने उन्हें फोन कर संजीवनी दे दी।
लेकिन मुलायम ने ये किया आजम को और अधिक नाराज करके। सवाल ये उठता है कि अब आजम क्या करेंगे?