बिना सरकारी मदद नहीं चलता शिया वक्फ बोर्ड
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लखनऊ प्रदेश में करोड़ो रुपयों की वक्फ सम्पत्तियों वाला उत्तर प्रदेश शिया सेण्ट्रल वक्फ बोर्ड बिना सरकारी मदद के नहीं चलता। वक्फ बोर्ड कर्मियों का 18 महीनों का वेतन बोर्ड पर बकाया है। यह हाल अभी नहीं बल्कि पिछले कई सालों से है। रमजान के दौरान वक्फ सम्पत्तियों से अंशदान प्राप्त कर बोर्डकर्मियों को वेतन का भुगतान किया गया। वक्फ कर्मियों के वेतन को लेकर बोर्ड यूनियन ने प्रदेश सरकार को मांग पत्र दिया था, जिस पर प्रशासक से जवाब मांगा गया।
वेतन संकट को लेकर बोर्ड कर्मी आन्दोलन भी चला चुके हैं, लेकिन कुछ महीनों के बाद पुन: संकट हो जाता है। बोर्ड के प्रशासनिक अधिकारी गुलाम सैयदेन ने बताया कि पूर्ववर्ती बसपा सरकार में मिले अनुदान से कर्मियों को कुछ महीनों का वेतन भुगतान किया गया था। उसके बाद से प्रदेश सरकार की ओर से कोई अनुदान नहीं दिया गया। प्रदेश में कुल 8 हजार शिया वक्फ सम्पत्तियों से प्रतविर्ष लगभग 10 लाख रूपये का अंशदान प्राप्त होता है। बोर्ड में कार्यरत कुल 17 कर्मचारियों का एक महीने का वेतन 4.5 लाख रूपये होती है, जिसके अनुसार बोर्ड कर्मियों के वेतन का एक वर्ष का खर्च 54 लाख रूपये होता है, जबकि वक्फ सम्पत्तियों से कुल 10 लाख रूपये का अंशदान प्राप्त होता है।
ऐसे में बिना सरकारी मदद के बोर्ड के भली प्रकार से संचालित होने की बात सोचना भी बेमानी है। क्या कहते हैं प्रशासकशिया वक्फ बोर्ड के प्रशासक सैयद मंजर शाहिद अब्बास रिजवी का कहना है कि वेतन संकट के लिए वक्फ सम्पत्तियों का कम किराया जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि बाजार भाव के अनुसार अगर वक्फ सम्पत्तियों का किराया वसूला जाए तो बोर्ड कर्मियों के वेतन का संकट न रहे। लेकिन मुतवल्लियों की हीलाहवाली के चलते बड़ी-बड़ी और प्राइम लोकेशन पर स्थित वक्फ सम्पत्तियों का बेहद कम किराया वसूला जा रहा है।
किराये को लेकर बन रहा कानूनवक्फ सम्पत्तियों पर अवैध कब्जों और अतिक्रमण को लेकर कानून बनाने की बात प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मोहम्मद आजम खां कई बार कह चुके हैं। इस कानून के साथ ही वक्फ सम्पत्तियों के किराये को लेकर भी कानून बनाए जाने की चर्चा है, जिसके बाद से वक्फ सम्पत्तियों के किराये में मार्केट दर के अनुसार किराया वसूला जाएगा। कानून बनने के बाद उसका कड़ाई से पालन कराया जाएगा।