पानी में डूबी जमीन के लिए पानी में डूबे लोग

विरोध के कई तरीके सभी ने देखे होंगे लेकिन बांध के कारण अपनी डूबी जमीन के लिए लोग खुद गर्दन तक पानी में डूब कर विरोध कर रहे हैं। ऐसा विरोध बहुत कम देखने को मिलता है। खंडवा जिले के लगभग 90 लोग अपनी जमीन के बदले जमीन और पुनर्वास के लिए पिछले 13 दिनों से गर्दन भर पानी में विरोध कर रहे हैं।
उनकी कहना है कि सरकार ने निचले इलाकों के लोगों के पुनर्वास के बिना ही नर्मदा नदी पर बने ओंकारेश्वर बांध में पानी 189 मीटर से बढ़ाकर 193 मीटर कर दिया है। इससे उनके जीने का साधन उनकी जमीन पानी में डूब गई है। उन्होंने यह भी भी मांग की है कि बांध के पानी को कम किया जाए। विरोध में बैठे घोघाल गांव और बरखलिया गांव के लोगों ने इसे अंतिम संघर्ष बताते हुए कहा कि सरकार जब तक उनकी मांगों को नहीं मानती वे नहीं उठेंगे।
सुप्रीम कोर्ट का साफ निर्देश है कि बांध का जलस्तर बढ़ाए जाने से पहले प्रभावितों के पुर्नवास व भूमि के बदले भूमि देने की व्यवस्था की जाए, मगर न तो मध्य प्रदेश सरकार और न ही नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण इस पर अमल कर रही है। ओंकारेश्वर बांध की ही तरह हरदा में इंदिरा सागर बांध का जलस्तर बढ़ाने से खरदना समेत कई गांवों पर डूबने का खतरा बढ़ गया है।
जो लोग विरोध कर रहे हैं। वे वह लोग जिनकी जमीन पानी का स्तर बढ़ने के कारण डूब चुकी है। खबर यह भी है कि इस लोगों के लिए कोई मुआवजा नीति नहीं है। नर्मदा बचाओं आंदोलन जिसके अंतर्गत विरोध हो रहा है ने मांग की है कि पिरियोजना के कारण जिन लोगों ने अपनी जमीन खोई हैं उन्हें जमीन के बदले जमीन दी जाए।
घोघल आवन, बिलावा, बाड़ा कैलावा, सुकाया, कमनखेड़ा के साथ दूसरे गांव के लोग भी अपनी जमीन के डूबने का विरोध कर रहे हैं। जिसका मुख्य का कारण है बांध में पानी का बढ़ना। गांववालों का दावा है कि एक हजार एकड़ जमीन पहले ही डूब चुकी है। अगर ओंकारेश्वर बांध में और अधिक पानी बढ़ाया गया तो 60 गांवों के डूबने का खतरा है। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार को हमारी जहा भी फिक्र नहीं हैं। जब तक वे यहां आकर हाताल नहीं देखेंगे उन्हें हमारी स्थिति का पता कैसे चलेगा। अपनी 9 एकड़ जमीन में से 5 एकड़ जमीन खो चुके गिरजाबाई का कहना है कि खेत हमारे जीने का साधन हैं। हम अपने खेते के साथ और मरेंगे भी उसी के साथ।
खंडवा के जिलाधिकारी नीरज दूबे का कहना है कि कि विरोध करने वालों की मुख्य मांग है कि उन्हें मुआवजा, पुनर्वास और जमीन के बदले जमीन दी जाए। उन्होंने बताया कि वे लगातार गांव वोलों से इस मसले पर बात कर रहे हैं। इससे पहले सरकार ने शिकायतों के निपटारे के लिए के समिति बनाई थी। सरकार का कहना है सभी मसलों को सुलझा लिया गया है। नीमाद से बीजेपी विधायक लोकेन्द्र सिंह तोमर का इस मसले पर कहना है कि जो लोग इंदिरा और ओकांरेश्वर बांध बनने से विस्थापित हुए हैं उन लोगों को मुआवजा दिया जा चुका है। बस जो थोड़ी बहुत दिक्कत पुनर्वास में आ रही है।
ओंकारेश्वर परियोजना नर्मदा नदी पर बने कुछ बड़ी परियोजनाओं में से एक है। जिसको नर्मदा हाईड्रोइलेक्ट्रीक डेवलपमेंट कॉपोरेशन ने बनाया है। जो मध्यप्रदेश सरकार और नेशनेल हाईड्रोइलेक्ट्रीक पावर का संयुक्त उद्यम है। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष रजनीश वैश का कहना है कि ओकांरेश्वर परियोजना से लगभग 6290 परिवार प्रभावित हुए थे। उन्होंने बताया कि उनके अचल संपत्ति के लिए उन्हें 8,668.68 लाख रुपए दिए गए। इसके साथ ही 2,019.36 लाख रुपए विशेष पुर्नवास अनुदान और 3,116.17 लाख रुपए पुर्नवास और परिवहन अनुदान दिया गया।

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