अरविंद लैक्सिकन की मानक हिंदी वर्तनी

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अरविंद कुमार
अरविंद
लैक्सिकन इंटरनैट पर शब्दोँ का महाभंडार है, और उस की वैबसाइट पर अनेक
प्रकार की रोचक पाठ्य सामग्री भी मिलती है. उस पर उपलब्ध कोश से लाभ उठाने
के लिए इस साइट पर आप को ढेरोँ हिंदी इंग्लिश पर्याय ज़रूर मिलेँगे. साथ ही
आप किसी भी शब्द पर क्लिस कर के, उस शब्द के भिन्न अर्थ भी देख पाएँगे,
हिंदी या इंग्लिश भाषाओँ मेँ लिखने के लिए, हिंदी या इंग्लिश भाषाएँ सीखने,
उन की समृद्ध शब्द संपदा मेँ पैठने के लिए, उन के शिक्षण और प्रशिक्षण के
लिए आप, आप के मित्र अरविंद लैक्सिकन के निश्शुल्क संस्करण को बेहद उपयोगी
पाएँगे. यह दोनोँ भाषाओँ की शब्दावली का संसार मेँ विशालतम संकलन है.
रजिस्टर करने के लिए अपना नाम रोमन लिपि के लोअरकेस अक्षरोँ मेँ दो शब्दोँ
के बीच कोई ख़ाली जगह छोड़े बिना अपना नाम इस प्रकार arvindkumar लिखेँ.
रजिस्टर किए बना कोश का लाभ नहीँ उठाया जा सकेगा.
http://arvindlexicon.com/lexicon
अरविंद लैक्सिकन मेँ हिंदी वर्तनी को पूरी तरह मानक और प्रामाणिक रखने की कोशिश की गई है.
आज
हिंदी पढ़ने वाले ‘अं’ ‘अँ’, ‘हंस’ ‘हँस’ की ही तरह ‘क’ ‘क़’, ‘ख’ ‘ख़’ और
‘ज’ ‘ज़’ जैसी ध्वनियोँ का अंतर लगभग भूल चुके हैँ. इस का एकमात्र कारण है
हैंडकंपोज़िंग मेँ होने वाली कठिनाइयाँ. यह विषय पूरी तरह तकनीकी है, और
आम पाठक के पास इतनी बारीक़ी मेँ जाने की न तो रुचि है, न समय. मोटे मोटे
शब्दोँ और दो चित्रोँ मेँ :
एक
समय था जब आजकल की कंप्यूटरी टाइपसैटिंग की जगह हाथ से कंपोज़िंग की जाती
थी. ऐसी कंपोज़िंग का मतलब है स्टिक (चित्र 1) नाम के उपकरण मेँ एक एक
अक्षर को एक के बाद एक रखना या लगाना. (छपाई की भाषा मेँ ऐसे एकल अक्षर को
टाइप कहते हैँ.)
चित्र
नं. 1. कंपोज़िंग केस मेँ रखे टाइप, और कंपोज़ीटर के हाथ मेँ रहने वाली
स्टिक. कंपोज़ीटर स्टिक पर एक एक टाइप रखता था. मात्रा वाले अक्षरोँ के
टाइप का अधिकांश भाग नीचे से कटा होता था, और नाज़ुक सी मात्रा वहाँ घुसाई
जाती थी. ज़रा सा ज़ोर पड़ते ही ‘मेँ, मैँ’ वाली मात्राएँ टूट जाती थीँ.
मेँ, मैँ, मोँ, मौँ…
इंग्लिश
वाली रोमन लिपि मेँ कुल 26 अक्षर हैँ. हर रोमन अक्षर के कैपिटल A, स्माल
कैपिटल A, लोअर केस a, बोल्ड A, A, a और इटैलिक A, A, a टाइपोँ को रख कर भी
कंपोज़ीटर का काम कुल दो केसोँ से चल जाता था(देखिए अगला चित्र). इंग्लिश
के मुक़ाबले हिंदी मेँ 52 अक्षर हैँ. इन मेँ से 23 व्यंजन हैँ. साथ ही क़,
ख़, ग़, ज़ ड़ ढ़ जैसे अतिरिक्त अक्षर. और अब इन मेँ शामिल कीजिए हर व्यंजन
का आधे अक्षरोँ वाला अलग टाइप. और उन के बोल्ड और इटैलिक रूप. साथ ही आ,
इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ऋ, ओ, औ, अँ, अं की मात्राएँ या बिंदु चिह्न जो सभी
व्यंजनोँ के ऊपर या नीचे लगाए जाते थे. और इन के भी बोल्ड और इटैलिक रूप.
इस पेचीदा समस्या को सुलझाने के लिए सभी व्यंजनोँ के टाइपोँ के नीचे से
घुसाने की तरक़ीब निकाली गई थी. सभी अत्यावश्यक टाइपोँ को समाने के लिए
हिंदी कंपोज़ीटर के लिए चार केसोँ का प्रावधान किया गया था. पर ये भी कम
पड़ते थे. जो भी हो, े ै ो ौ आदि चंद्रानुस्वार लगी मात्राएँ (मेँ, मैँ,
मोँ, मौँ) छपते छपते टूट जाती थीँ. उदाहरण के लिए और ‘मेँ’ ‘मैँ’ छपते छपते
‘म’ तथा ‘हैँ’ ‘ह’ बन जाते थे, और ‘औँधा’ ‘आधा’ रह जाता था.
अब
कंप्यूटरोँ ने यह समस्या हल कर दी है तो एक बार फिर हमेँ सही वर्तनी की ओर
लौटना होगा. भारत सरकार के ‘वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली’ आयोग ने अपनी
पुस्तक ‘प्रशासनिक शब्दावली – हिंदी – अंग्रेजी ’ (2010) की पृष्ठ संख्या
465 पर चंद्रानुस्वार वाली वर्तनी ‘मेँ, मैँ, हैँ’ आदि को मानक बताया है.
साथ ही ‘में, मैं और हैं ’ रूपोँ के प्रचलन की भी अनुमति दी गई है. हमारे
इन दोनोँ कोशोँ मेँ सही वर्तनी (मेँ, मैँ और हैँ) के उपयोग पर ज़ोर दिया
गया है.
रोमन लिपि मेँ टाइपोँ के सभी प्रकार दो केसोँ मेँ आ जाते थे. देवनागरी मेँ
इतने सारे अक्षर होते हैँ कि उन के सभी विकल्पोँ के लिए चार केस भी कम
पड़ते हैँ. कल्पना कीजिए कि इंग्लिश के इन दो केसोँ के बाएँ और दहिने एक एक
केस और रखा है. अब आप हैंड कंपोज़िंग मेँ हिंदी वर्तनी की समस्या का कुछ
अनुमान लगा पाएँगे. अक्षरोँ की संख्या सीमित रखना ज़रूरी था. शिकार हुई
‘क़, ख़, ग़’ जैसे नुक़्तोँ वाले व्यंजनोँ और ‘मेँ, मैँ’ जैसी मात्राओँ
वाली सही वर्तनी.
कंप्यूटरोँ
की कृपा से अब ‘गल्ला = कपोल (cheek)’ और ‘ग़ल्ला = रोकड़ (cash in the
till)’, ‘राज (kingdom)’ और ‘राज़ = रहस्य (mystery)’ का भी सही इस्तेमाल
हो सकता है. इन कोशोँ मेँ ये भी हर जगह अपने सही रूप मेँ मौजूद हैँ.
नया - नई, नए // गया - गई, गए // खाया - खाई, खाए
हिंदी
मेँ इस तरह के शब्दोँ के बारे मेँ एक अनोखी अराजकता देखने को मिलती है.
जहाँ तक मेरी जानकारी है कई दशक पहले कुछ साहित्यकारोँ ने एक पत्रिका मेँ
उपसंपादन करते समय ऐसे हिज्जोँ की विविधता और भ्रामकता से घबरा कर एक अजीब
सा (लेकिन पूरी तरह ग़लत और निराधार) नियम बना लिया कि यदि किसी शब्द के
अंत मेँ ‘या ’ है तो उस के स्त्रीलिंग और बहुवचन रूपोँ मेँ ‘यी ’ और ‘ये ’
का प्रयोग किया जाए. यानी ‘जायेगा, जायेंगे’ लिखे जाएँगे. इस विषय पर भी
‘प्रशासनिक शब्दावली – हिंदी - अग्रेजी’ (2010) की पृष्ठ संख्या 465 मेँ
पूरी तरह खड़ी बोली वाली हिंदी की उच्चारण प्रक्रिया के अनुरूप और सभी
आधिकारिक वैयाकरणोँ द्वारा पूरी तरह सम्मत नीति को सही समर्थन दिया है.
वहाँ नया/नई हुवा/हुई शीर्षक के अंतर्गत लिखा है : किए-किये, नई-नयी,
हुआ-हुवा आदि मेँ से पहले स्वरात्मक रूप का ही प्रयोग किया जाए. यह नियम
सभी रूपोँ मेँ लागू माना जाए, जैसे – दिखाए गए, राम के लिए, पुस्तक लिए
हुए, नई दिल्ली.
बात
को आगे बढ़ाते हुए और भ्रम को दूर करने के लिए लिखा गया है – जहाँ ‘य’
शब्द का ही मूल तत्व हो, वहाँ स्वरात्मक परिवर्तन की आवश्यकता नहीँ है.
जैसे – स्थायी, अव्ययीभाव, दायित्व आदि. इन्हेँ स्थाई, अव्यईभाव, दाइत्व
नहीँ लिखा जाएगा.
इन कोशोँ मेँ इस नियम का पालन अक्षरशः किया गया है.
टेस्ट, टैस्ट; डाक्टर, डॉक्टर…
हिंदी
मेँ स्वरोँ की संख्या बारह मानी गई है. इन मेँ अं और अः भी शामिल हैँ.
इन्हेँ न गिन कर इंग्लिश मेँ चौदह स्वर उच्चारण हैँ, जिन्हेँ एक या दो स्वर
साथ साथ लिख कर व्यक्त किया जाता है. कोशिश की गई है कि ऐसे शब्दोँ को उन
के इंग्लिश उच्चारण के निकटतम लिखा जाए. जैसे स्वाद के लिए ‘टेस्ट ’,
परीक्षा के लिए ‘टैस्ट ’, भाव (दर) के लिए ‘रेट ’ और चूहे के लिए ‘रैट ’.
ऐसे ही और कुछ अन्य शब्द हैँ - ट्रैंड, फ़ैस्टिवल. चिकित्सक या विद्वान के
लिए ‘डाक्टर ’ शब्द के उच्चारण की इंग्लिश मेँ जो दो प्रमुख शैलियाँ हैँ उन
मेँ से एक इसी रूप का समर्थन करती है. हिंदी बोलचाल मेँ भी डाक्टर प्रचलित
है, जबकि आजकल डॉक्टर आदि लिखने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है. कई जगह तो
हिंदी मूल का शब्द ‘शाल’ इंग्लिश मेँ लिखे गए shawl के अनुकरण पर ‘शॉल’
लिखा मिलता है, और ‘पाल’ बन जाता है ‘पॉल’! ऐसा लिखने या छापने मेँ एक
समस्या और भी है. कोशोँ मेँ ‘ॉ’ ’ को कहाँ स्थान दिया जाए, यह अनिश्चित है,
‘ा ’ के साथ, ‘ो ’ के साथ या ‘ौ ’ के साथ. तीनोँ से पहले या बाद मेँ? अतः
हमारे डाटा मेँ हर जगह ‘डाक्टर’ आदि ही मिलते हैँ.
वर्तनी के आधार कोश
समांतर
कोश तथा हमारे अन्य कोशोँ की ही तरह इन दोनोँ कोशोँ मेँ भी हम ने हिंदी
हिज्जोँ के लिए ‘भारतीय ज्ञान मंडल, वाराणसी’ द्वारा प्रकाशित ‘बृहत् हिंदी
कोश ’ को प्रामाणिक माना है और यथासंभव उस का अनुपालन किया है. नुक़्ते
वाले शब्दोँ के हिज्जोँ के लिए दुबधा होने पर ‘उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान
(हिंदी समिति प्रयाग)’ द्वारा प्रकाशित और बहुसम्मानित ‘उर्दू-हिंदी
शब्दकोश ’ (संपादक : मुहम्मद मुस्तफ़ा ख़ाँ मद्दाह) का अनुपालन किया गया
है.