आंख मूंदकर जांच रिपोर्टो पर भरोसा न करें अदालतें

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निचली अदालतों को जांच एजेंसियों की रिपोर्टो पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि गलत रिपोर्ट देकर आरोपी को बचाने का प्रयास किया जा सकता है। अदालतों को अन्य संबंधित साक्ष्यों पर भी गौर करना चाहिए।
हत्या के एक मामले में चार दोषियों की उम्रकैद की सजा बरकरार रखते हुए न्यायाधीश स्वतंत्र कुमार व इब्राहिम कलीफुल्ला की पीठ ने अपने फैसले में यह टिप्पणी की। पीठ ने गलत पोस्टमार्टम रिपोर्ट देने वाले डॉक्टर सीएन त्रिवेदी पर कार्रवाई नहीं करने के लिए उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के स्वास्थ्य महानिदेशकों के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही चलाने का भी आदेश दिया। डॉ त्रिवेदी ने आरोपियों को बचाने के लिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट में लिख दिया था कि मृतक के शरीर पर चोट के निशान नहीं पाए गए।
सुप्रीम कोर्ट ने दोनों प्रदेशों के पुलिस महानिदेशक को इस मामले की तहकीकात करने वाले सब इंस्पेक्टर करतार सिंह के खिलाफ भी सेवा नियमों के तहत कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। हत्या का यह मामला 8 दिसंबर, 1985 का है। तत्कालीन उत्तर प्रदेश के ऊधम सिंह नगर जिले में दयाल सिंह और अन्य आरोपियों ने प्यारा सिंह की डंडों से पीट-पीटकर हत्या कर दी थी।
जांचकर्ताओं द्वारा पर्याप्त साक्ष्य पेश नहीं करने के बावजूद निचली अदालत ने चश्मदीदों के बयान के आधार पर दयाल सिंह व अन्य को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट ने भी उनकी सजा बरकरार रखी थी जिसे दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।