यूपी में भूख पर मोबाइल भारी

सूबे में तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद अब भी कुल 3.29 करोड़ घरों में से 2.14 करोड़ घरों में शौचालय नहीं है। स्नानगार के मामले में भी करीब-करीब यही स्थिति है। फिलवक्त 1.48 करोड़ घर ऐसे हैं जिसमें स्नान घर की सुविधा नहीं है। कमोबेश ऐसे ही हालात पीने के मामले में है।
मात्र 27 फीसदी ऐसे घर हैं जहां पाइप लाइन से पीने के पानी की सुविधा उपलब्ध है। महत्वपूर्ण बात यह है कि 3.29 करोड़ घरों में से 24 लाख घर खाली हैं। जबकि प्रदेश में पिछले दस साल में घरों की संख्या में 32 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि हुई है। 2001 में सूबे में कुल मकानों की संख्या 3.43 करोड़ थी जो दस साल में बढ़कर 4.51 पहुंच गई है। यह खुलासा शनिवार को जनगणना निदेशालय द्वारा 2011 की जारी मकान गणना की रिपोर्ट में किया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में मकानों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। राजधानी के केन्द्रीय भवन में मकान गणना रिपोर्ट जारी करते हुए जनगणना निदेशक नीना शर्मा ने कहा कि 2011 की रिपोर्ट 2001 की तुलना में आधे से भी कम समय में तैयार हुई है। मकानों के गणना की एक विशेषता यह है कि आंकड़ें तैयार करने में मकानसूचीकरण फार्मों को स्कैनर के अनुरूप आकार दिया गया था।
ताकि उच्च गति वाले स्कैनरों उपयोग के माध्यम से आंकड़ों को आसानी जुटाया जा सके। बकौल शर्मा मकानसूचीकरण के इन आंकड़ों को राज्य, जिला, तहसील एवं नगर स्तर तक की सभी जानकारियां इलेक्ट्रॉनिक फॉर्मेट में तैयार की गई है। खास बात यह है कि मकान गणना में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के मकानों की अलग-अलग गणना की गई है। उन्होंने कहा कि सभी आंकड़ें शत-प्रतिशत वास्तविक गणना पर आधारित हैं।

धार्मिक स्थलों में हुई वृद्धि

दस साल में प्रदेश के धार्मिक स्थलों में संख्या में 33.6 फीसदी की जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई है।
फिलवक्त मंदिर, मसजिद, गुरुद्वारा और गिरजाघर की संख्या 2.65 लाख से बढ़कर 3.54 लाख पहुंच गई हैं। इसी तहर स्कूल और कॉलेजों की संख्या में 57.5 की वृद्धि हुई है। 1.63 लाख से बढ़कर 2.57 लाख स्कूल और कॉलेज हो गए हैं। जबकि हॉस्पिटल एवं डिस्पेंसरी की संख्या में 5.42 फीसदी की कमी आई है।10 साल पूर्व जहां सूबे में कुल 85 हजार हॉस्पिटल और डिस्पेंसरियां थी वहीं अब 81 हजार रह गई है।

सिकुड़ रहा है संयुक्त परिवार

सूबे में संयुक्त परिवार का दायरा तेजी से सिकुड़ रहा है। 2011 के मकान गणना रिपोर्ट में परिवार के औसत सदस्यों की संख्या छह करीब रह गई है। सूबे में तेजी से एक दम्पत्तियों वाले परिवारों की संख्या बढ़ रही है। फिलवक्त 3.29 करोड़ में घरों में 64 फीसदी एक दम्पत्तियों वाले परिवारों की संख्या है। इसी तरह दो दम्पत्ति वाले परिवारों की संख्या 18.7 फीसदी है। तीन दम्पत्तियों वाले परिवार की संख्या 5.9 फीसदी है। चार दम्पत्तियों वाले परिवारों की संख्या 17 फीसदी है। जबकि पांच से ज्यादा दम्पत्तियों वाले परिवारों की संख्या मात्र 7 फीसदी रह गई है।

एक कमरे में रहने की मजबूरी

प्रदेश में परिवारों की कुल संख्या 3.29 करोड़ है। इसमें 32.6 फीसदी परिवार ऐसे में जिनके पास रहने के लिए मात्र एक कमरा है। जबकि 3.8 फीसदी परिवारों के पास रहने के लिए कोई अलग कमरा ही नहीं है। इसी तरह 31.2 फीसदी लोग दो कमरे के मकान में रह रहे हैं। तीन कमरे के मकान में रहने वाले लोगों की संख्या 14.8 फीसदी है। चार तथा पांच कमरे में वाले परिवारों की संख्या क्रमश 9.2 एवं 3.8 फीसदी है। जबकि छह कमरे और उससे अधिक कमरे वाले परिवारों की संख्या 4.7 फीसदी है। ऐसे में रिपोर्ट से यह बात स्पष्ट है कि सूबे में बड़े आकार के मकान में रहने वाले लोगों की संख्या बहुत कम है।
यह सवाल पूछे गए थे
डेढ़ साल पूर्व 2010 में 16 मई से 30 जून के बीच केन्द्र सरकर द्वारा सूबे में कराए गए मकानों की गिनती में लोगों कुल 25 सवाल पूछे गए थे। इसमें पूछा गया था कि घर में कितने लोग रहते हैं। परिवारों के पास क्या-क्या सुविधाएं उपलब्ध है। मकान की स्थिति क्या है। मकान के फर्श, दीवार और छत में प्रयुक्त प्रमुख सामग्री, मकान के स्वामित्व की स्थिति, परिवार के पास उपलब्ध कमरों की संख्या, पेयजल का मुख्य स्रोत, प्रकाश का मुख्य स्रोत, शौचालय सुविधा की उपलब्धता, रसोई घर की सुविधा, खाना पकाने के लिए प्रयोग में लाया जाने वाला ईंधन, रेडियो/ट्रांजिस्टर, टेलीविजन, कम्प्यूटर/लैपटॉप, टेलीफोन, मोबाइल फोन, साइकिल, स्कूटर/मोटर साइकिल, मोपेड कार/जीप/वैन, बैकिंग सुविधाएं उपलब्ध है या नहीं आदि के बारे में पूछा गया था।
मकान गणना के क्या हैं फायदे
मकान गणना कराने और आंकड़े जुटाने के पीछे सरकार का उद्देश्य देश एवं प्रदेशों के लोगों के लिए सामाजिक एवं आर्थिक विकास संबंधित किए प्रयासों के बारे में जानकारी जुटाना है। ताकि प्रदेशों में रहने वाले लोगों के वास्तविक स्थिति को समझा जा सके। बकौल नीना शर्मा पारिवारिक स्तर पर विभिन्न मदों से संबंधित एकत्र की गई जानकारी से लोगों को उपलब्ध मूलभूत सुविधाओं और परिसम्पत्तियों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिल सकेगी। इन आंकड़ों से हमें यह भी पता चल सकेगा कि लोगों के वास्तविक हालात कैसे हैं। उन्होंने कहा है कि मकानसूचीकरण और मकानों की गणना के आंकड़ों की असीम उपयोगिता है। इससे आवास की वास्तविक स्थितियां और आवास की कमी के व्यापक आंकड़ें उपलब्ध हो सकेंगी। ताकि आवास नीति तैयार करते समय सरकार तमाम पहलूओं पर विचार कर सके। ये आंकड़ें पंचवर्षीय योजनाओं में काफी उपयोगी साबित होते हैं।

एससीएसटी घरों का भी रिकार्ड

मकान गणना के दौरान सूबे के अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के घरों की संख्या का अलग से रिपोर्ट तैयार किया गया है। रिपोर्ट में इन परिवारों के बारे में तमाम जानकारियां भी जुटाई गई है। हालांकि परिवारों की बारे में जुटाई गई जानकारियों का विस्तृत खुलासा नहीं किया गया है।

शान की सवारी साइकिल

मकान गणना 2011 की रिपोर्ट सूबे में अखिलेश सरकार की वापसी के कई मजबूत पहलूओं की झांकी प्रस्तुत करती है। कारण है लखटकिया कार से लेकर लग्जरी कार और बाइक के दौर में भी सूबे के 2.23 करोड़ घरों में लोग शान से साइकिल की सवारी करते हैं। ये आंकड़ा लोगों ने स्वयं सरकार द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब में दिया है।
27 लाख घरों में लैपटॉप/कम्प्यूटर
संचार क्रांति के युग में गत वर्ष तक सूबे के 3.29 करोड़ घरों में से महज 27 लाख घरों में लोग कम्प्यूटर या लैपटॉप का उपयोग करते हैं।
भूख पर मोबाइल का शौक भारी
सूबे के लोगों में भूख से ज्यादा मोबाइल का शौक है। वर्तमान में 3.29 करोड़ घरों में 2 से ज्यादा घरों में लोग मोबाइल रखते हैं जबकि 2.20 करोड़ घरों में लोग लैंडलाइन और मोबाइल रखते हैं। ऐसे में फिलवक्त स्थिति यह है कि 64 फीसदी घरों में मोबाइल पहुंच चुका है।

जनगणना 2011 में सूबे के घरों की स्थिति

92 फीसदी घरों में अब भी लोग कम्प्यूटर और लैपटॉप की उपयोगिता से अनभिज्ञ है।
72 फीसदी घरों में बैकिंग सुविधाएं पहुंची है।
67.8 फीसदी घरों में आज भी शान की सवारी है साइकिल।
65 फीसदी लोग अब भी हैंडपम्प से पानी के लिए आश्रित हैं।
64.4 फीसदी मकानों में शौचालय नहीं है।
53.8 फीसदी घरों में अब रसोई घर नहीं है।
47.7 फीसदी लोग अब लकड़ी, उपले और फसल से तैयार जलावन से खाना पकाते हैं।
45 फीसदी घरों में अब भी लोग खुले में स्नान करते हैं।
37 फीसदी घरों में अब तक बिजली कनेक्शन पहुंची है।
33 फीसदी घरों में टेलीविजन है।
27 फीसदी घरों में मात्र फाइपलाइन से जलापूर्ति की व्यवस्था है।
23.3 फीसदी लोग घास, फूस, छप्पर, बांस या लकड़ी से बने छत वाले घरों में रहते हैं।
20 फीसदी घरों में लोगों के पास दो पहिया वाहन है।
03.3 फीसदी घरों में अब बेसिक फोन बचे हैं।
05 फीसदी से ज्यादा लोग कुआं, झील और तालाब से पानी पीते हैं।
24.7 फीसदी घरों में लोग रेडियो बजाते हैं।
32.6 फीसदी परिवार अब भी एक कमरे के मकान में रहता है।
0.8 फीसदी घरों में अब भी छह पति-पत्नी एक परिवार में रहते हैं।
04 फीसदी घरों में महज कार है।

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