एक झटके में पांच करोड़ गरीब बना दिए गए पैसे वाले
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नई दिल्ली। गरीबी का मजाक उड़ाने वाली सरकारी गरीबी रेखा पर मंगलवार को संसद में जमकर हंगामा हुआ। विपक्ष ने नए आंकड़ों को हास्यास्पद करार देते हुए इसपर पुनर्विचार की मांग की। विपक्ष का आरोप है कि सरकार कागजों पर गरीबी घटा कर बजट के आंकड़े ठीक कर रही है, जो देश की गरीब जनता के साथ अन्याय है। उधर योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने आंकड़ों का बचाव किया है।
राज्यसभा में मंगलवार को काम शुरू होते ही विपक्ष ने सरकार की गरीबी रेखा पर हंगामा काट दिया। लेफ्ट ने सरकार से गरीबी रेखा के मुद्दे पर संसद में बहस की मांग की, तो मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी ने गरीबी रेखा को बदल कर इसे व्यावहारिक बनाने की वकालत की।
विपक्ष का आरोप है कि सरकार गरीबी रेखा के दायरे से 5 करोड़ लोगों को निकाल कर अपने बजट के नंबर ठीक करना चाहती है। उसका आरोप है कि अगर सरकार कागजों में गरीबों की संख्या इसी तरह कम करती रही तो कल्याणकारी योजनाओं का खर्च कम हो जाएगा और देश की आर्थिक स्थिति अच्छी दिखने लगेगी। भले ही तस्वीर गलत हो। योजना आयोग के इन आंकड़ों पर राज्यों ने भी आपत्ति जताई है।
जाहिर है आयोग के इन आंकड़ों का बचाव करना खुद कांग्रेस के लिए मुश्किल हो रहा है। लेकिन योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने गरीबी रेखा और उसकी परिभाषा का बचाव किया है। अहलूवालिया का कहना है कि आयोग ने पहले से तय फॉर्मूले पर ही आंकड़े जुटाए हैं। अहलूवालिया का तर्क है कि 28 और 22 रुपए का ये आंकड़ा 2009-10 के लिए है जब देश में सूखा पड़ा था इसलिए नंबर कम दिख रहे हैं।
साफ है सरकार के पास तर्क नहीं हैं। योजना आयोग का कहना है कि इन आंकड़ों का इस्तेमाल खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम में नहीं किया जाएगा। लेकिन सवाल ये है कि क्या खाने के अलावा आम आदमी की कोई जरूरतें नहीं। सिर्फ ग्रामीण विकास मंत्रालय के 25 ऐसे कार्यक्रम हैं जिसका फायदा गरीबी रेखा से नीचे आने वालों को मिलता है। यानी एक झटके में सरकार ने 5 करोड़ लोगों से उनका ये अधिकार छीन लिया है।