नदियों का अस्तित्व समाप्ति की ओर
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बाराबंकी, कल्याणी नदी वेदों में मौजूद हैं लेकिन जिले में समाप्ति की ओर है। अन्य नदियों में रेठ, सुमली, चौरारी नामक नदियां भी वर्ष में आठ माह सूखी पड़ी रहती हैं। जिससे इन नदियों में तटवर्ती किसान रवी की फसल उगाते हैं। बाढ़ और कटान तथा खेती किए जाने से नदियों का अस्तित्व समाप्ति की ओर है
गोमती की धारा से कल्यानी का उद्गम स्थल इटौंजा से निंदूरा ब्लॉक के भगौली तीर्थ माना जाता है। उद्गम स्थल पर ही कल्यानी नदी ने लगभग दम तोड़ दिया है। बीते दो वर्ष में घाघरा व गोमती नदी की बाढ़ से उफानाने वाली कल्यानी नदी के तटबंध ध्वस्त होकर खेतों की उपजाऊ मिट्टी को अपने आगोश में कर लिया। यही खेतों की माटी नदी के अस्तित्व पर बन आयी। अब स्थिति यह है कि नदी की तलहटी में दर्जनों गांवों के किसान खेत बनाकर गेहूं की फसल व वृक्षारोपण कर बाकायदा खेती करते हैं।जहां दो दशक पूर्व नदी की धारा बहती थी वहां अब खेतों में फसल लहलहाती है। तटवर्ती गांवों में तटबंध विहीन नदी हर वर्ष कहर बनकर आती है। नदी के आसपास की परिधि के गांवों के खेतों को एकल फसली बना दिया है। आमतौर पर इस नदी के किनारे रवी की फसल ही हो पाती है। खरीफ की फसल से किसान वंचित रह जाते हैं। यही वजह हैं कि लगभग 200 किमी लंबी कल्यानी नदी पूरी तरह तटबंध विहीन हो चुकी है। स्थिति इतनी भयावह है कि यहां बरसात बीतने के दो माह बाद ही नदी की तलहटी में पानी का नामोनिशान समाप्त हो जाता है। निंदूरा ब्लॉक के एक सैकड़ा गांवों के किसान नदी के अस्तित्व समाप्ति को लेकर खासे चिंतित हैं। किसानों का कहना है कि नदी के तटबंध समाप्त होने से हर बरसात में होने वाले भूस्खलन से नदी की तलहटी पटकर खेतों के समानांतर हो गई। अब किसान अपने खेतों की सीमाओं से अनजान होकर नदी की तलहटी में भी रवी की फसल के दौरान खेती करने लगे। नदी में प्रवाह थमने के बाद किसानों के खेतों की उर्वरता भी समाप्ति की ओर है। किसान अपने खेतों को एक फसल में जितना उपजाऊ बनाने का कार्य करते हैं उससे ज्यादा बरसात में उफना जाने वाली कल्यानी नदी की धारा कटान कर उर्वरता अपनी धारा में बहा ले जाती है। यहां के किसानों की मेहनत पर हर वर्ष नदी पानी फेर देती है। कल्यानी नदी निंदूरा के बाद ब्लॉक फतेहपुर, देवा, मसौली, दरियाबाद होते हुए रामसनेहीघाट तहसील के बनींकोंडर ब्लॉक से होकर निकलती है। अधिसंख्य ब्लॉक क्षेत्र में यह नदी तटबंध विहीन है। देवा व मसौली ब्लॉक परिक्षेत्र में यह नदी नाले के स्वरूप में तब्दील होती जा रही है। हालांकि लोग चौंक जाते हैं कि इन ब्लॉक क्षेत्र में नदी की तलहटी में पानी रहता है। जिसका कारण साफ है। देवा परिक्षेत्र से निकलने वाली शारदा सहायक की मुख्य पोषक नहर का सीपेज व विभिन्न माइनर नहरें इस नदी से जुड़ती हैं। जिससे सिंचाई से बचा पानी आमतौर पर कल्यानी नदी में छोड़ दिया जाता है। जिससे नदी लगभग तीन ब्लॉकों में जल पोषित रहती है।
नदियों में रेठ, सुमली, चौरारी नामक नदियां भी घाघरा नदी की बाढ़ से ही अब जल पोषित होती हैं। जबकि वर्ष में आठ माह यह नदियां सूखी पड़ी रहती हैं। जिससे इन नदियों में तटवर्ती किसान रवी की फसल उगाते हैं। बाढ़ और कटान तथा खेती किए जाने से नदियों का अस्तित्व समाप्ति की ओर है। फतेहपुर तहसील क्षेत्र में नदियों की तलहटी पर कब्जा किए जाने की शिकायत के बाद बीते छह माह पूर्व ग्रामीणों के विरुद्ध मुकदमा भी दर्ज किया गया था। बरसात बीत जाने के बाद नदी का मौके पर अंदाजा लगा पाना भी दुश्कर हो जाता है।
ठहर जाती गोमती की धारा
गोमती नदी लखनऊ की सीमा से बाराबंकी में प्रवेश करते ही अधिसंख्य भाग में तटबंध विहीन है। यहां नदी की धारा गर्मी के दिनों में ठहर जाती है। पूर्व में गोमती के तटवर्ती इलाके से आबादी दूर होने की वजह से नदी को यहां अपेक्षाकृत अतिक्रमण का सामना कम करना पड़ रहा है। पर तटबंध विहीन नदी पर बने घाट विलीन हो रहे हैं। कई स्थानों पर नदी गर्मी के दिनों में ठहरे तालाब जैसे पानी की स्थिति में परिवर्तित हो जाती है। आसपास के लोग कहते हैं दो दशक पूर्व तक गोमती की धारा में वर्ष भर प्रवाह रहता था। पर अब गर्मी के जेठ मास तक नदी की धारा का प्रवाह थम जाता है। जिसका असर तटवर्ती गांवों के खेतों की उपज पर पड़ रहा है। जिससे किसानों की पैदावार घटने से समृद्धि प्रभावित हो रही है।
घाघरा नदी में नेपाल के पानी से बाढ़ की विकरालता के कारण इस नदी का अस्तित्व कायम है। गोंडा जिले के सीमावर्ती क्षेत्र में सिंचाई विभाग के बाढ़ खंड सरयू वृत्त ने तटबंध का निर्माण घाघरा की धारा में निर्धारित एलाइनमेंट के विपरीत करवा दिया। जिससे यहां नदी की धारा लगभग दो किमी संकरी थी। तटवर्ती दर्जन भर से अधिक ग्रामीणों को झेलना पड़ रहा है। विगत दो वर्ष में दो बार तटबंध बाढ़ में ध्वस्त हुआ। चारो तरफ जल प्रलय में जनजीवन के राहत बचाव की मुश्किल उठानी पड़ी। यह आपदा नदी को संकरा किए जाने से ही उत्पन्न हुई। यहां निर्धारित परिधि में तटबंध बनाए जाने की कसरत अब शुरू की गई है।
ग्रामीणों ने कल्यानी के कल्याण के लिए भागीरथी जतन शुरू किए थे। निंदूरा ब्लॉक के तटवर्ती ग्राम पंचायतों के ग्राम प्रधानों ने मनरेगा मद से नदी की तलहटी की सफाई करवाने की परियोजनाएं प्रस्तुत की थीं। कई स्थानों पर ग्रामीणों ने श्रमदान कर कल्यानी नदी की रेत साफ करने का अभियान भी छेड़ा था। जिसका डीएम विकास गोठलवाल ने संज्ञान लिया। उन्होंने कल्यानी नदी के कल्याण के लिए बाकायदा एक टास्क फोर्स गठित कर मनरेगा मद से परियोजना बनाए जाने के निर्देश दिए। जिसमें दोनो तरफ के तटबंध और उनपर वृक्षारोपण किए जाने की योजना थी। इससे नदी की धारा में फिर प्रवाह आना तय माना जा रहा था। टास्क फोर्स की बैठक कर एक दर्जन महकमों को लगाकर कल्यानी परियोजना तैयार की जाने लगी। इसी बीच बरसात शुरू होने पर परियोजना पर कार्य रूक गया। बरसात समाप्ति के बाद कल्यानी नदी वाले ब्लॉकों में मनरेगा परियोजना से कार्य होना था। पर समय बदला और केंद्र सरकार की निरीक्षण टीमों ने जिले में मनरेगा मद में खर्च की गई धनराशि में बंदरबांट की आशंका जता दी। जिसमें विभागों समेत जिला प्रशासन को भी हलकान होना पड़ा। नतीजतन जिला प्रशासन ने मनरेगा मद की इस अभिनव योजना की फाइल को हमेशा के लिए बंद कर दिया। यह जानकारी जब नदी के तटवर्ती गांवों को हुई तो वह हतप्रभ रह गए। अब उनकी आस जो बंधी थी वह टूट गई।
गोमती की धारा से कल्यानी का उद्गम स्थल इटौंजा से निंदूरा ब्लॉक के भगौली तीर्थ माना जाता है। उद्गम स्थल पर ही कल्यानी नदी ने लगभग दम तोड़ दिया है। बीते दो वर्ष में घाघरा व गोमती नदी की बाढ़ से उफानाने वाली कल्यानी नदी के तटबंध ध्वस्त होकर खेतों की उपजाऊ मिट्टी को अपने आगोश में कर लिया। यही खेतों की माटी नदी के अस्तित्व पर बन आयी। अब स्थिति यह है कि नदी की तलहटी में दर्जनों गांवों के किसान खेत बनाकर गेहूं की फसल व वृक्षारोपण कर बाकायदा खेती करते हैं।जहां दो दशक पूर्व नदी की धारा बहती थी वहां अब खेतों में फसल लहलहाती है। तटवर्ती गांवों में तटबंध विहीन नदी हर वर्ष कहर बनकर आती है। नदी के आसपास की परिधि के गांवों के खेतों को एकल फसली बना दिया है। आमतौर पर इस नदी के किनारे रवी की फसल ही हो पाती है। खरीफ की फसल से किसान वंचित रह जाते हैं। यही वजह हैं कि लगभग 200 किमी लंबी कल्यानी नदी पूरी तरह तटबंध विहीन हो चुकी है। स्थिति इतनी भयावह है कि यहां बरसात बीतने के दो माह बाद ही नदी की तलहटी में पानी का नामोनिशान समाप्त हो जाता है। निंदूरा ब्लॉक के एक सैकड़ा गांवों के किसान नदी के अस्तित्व समाप्ति को लेकर खासे चिंतित हैं। किसानों का कहना है कि नदी के तटबंध समाप्त होने से हर बरसात में होने वाले भूस्खलन से नदी की तलहटी पटकर खेतों के समानांतर हो गई। अब किसान अपने खेतों की सीमाओं से अनजान होकर नदी की तलहटी में भी रवी की फसल के दौरान खेती करने लगे। नदी में प्रवाह थमने के बाद किसानों के खेतों की उर्वरता भी समाप्ति की ओर है। किसान अपने खेतों को एक फसल में जितना उपजाऊ बनाने का कार्य करते हैं उससे ज्यादा बरसात में उफना जाने वाली कल्यानी नदी की धारा कटान कर उर्वरता अपनी धारा में बहा ले जाती है। यहां के किसानों की मेहनत पर हर वर्ष नदी पानी फेर देती है। कल्यानी नदी निंदूरा के बाद ब्लॉक फतेहपुर, देवा, मसौली, दरियाबाद होते हुए रामसनेहीघाट तहसील के बनींकोंडर ब्लॉक से होकर निकलती है। अधिसंख्य ब्लॉक क्षेत्र में यह नदी तटबंध विहीन है। देवा व मसौली ब्लॉक परिक्षेत्र में यह नदी नाले के स्वरूप में तब्दील होती जा रही है। हालांकि लोग चौंक जाते हैं कि इन ब्लॉक क्षेत्र में नदी की तलहटी में पानी रहता है। जिसका कारण साफ है। देवा परिक्षेत्र से निकलने वाली शारदा सहायक की मुख्य पोषक नहर का सीपेज व विभिन्न माइनर नहरें इस नदी से जुड़ती हैं। जिससे सिंचाई से बचा पानी आमतौर पर कल्यानी नदी में छोड़ दिया जाता है। जिससे नदी लगभग तीन ब्लॉकों में जल पोषित रहती है।
नदियों में रेठ, सुमली, चौरारी नामक नदियां भी घाघरा नदी की बाढ़ से ही अब जल पोषित होती हैं। जबकि वर्ष में आठ माह यह नदियां सूखी पड़ी रहती हैं। जिससे इन नदियों में तटवर्ती किसान रवी की फसल उगाते हैं। बाढ़ और कटान तथा खेती किए जाने से नदियों का अस्तित्व समाप्ति की ओर है। फतेहपुर तहसील क्षेत्र में नदियों की तलहटी पर कब्जा किए जाने की शिकायत के बाद बीते छह माह पूर्व ग्रामीणों के विरुद्ध मुकदमा भी दर्ज किया गया था। बरसात बीत जाने के बाद नदी का मौके पर अंदाजा लगा पाना भी दुश्कर हो जाता है।
ठहर जाती गोमती की धारा
गोमती नदी लखनऊ की सीमा से बाराबंकी में प्रवेश करते ही अधिसंख्य भाग में तटबंध विहीन है। यहां नदी की धारा गर्मी के दिनों में ठहर जाती है। पूर्व में गोमती के तटवर्ती इलाके से आबादी दूर होने की वजह से नदी को यहां अपेक्षाकृत अतिक्रमण का सामना कम करना पड़ रहा है। पर तटबंध विहीन नदी पर बने घाट विलीन हो रहे हैं। कई स्थानों पर नदी गर्मी के दिनों में ठहरे तालाब जैसे पानी की स्थिति में परिवर्तित हो जाती है। आसपास के लोग कहते हैं दो दशक पूर्व तक गोमती की धारा में वर्ष भर प्रवाह रहता था। पर अब गर्मी के जेठ मास तक नदी की धारा का प्रवाह थम जाता है। जिसका असर तटवर्ती गांवों के खेतों की उपज पर पड़ रहा है। जिससे किसानों की पैदावार घटने से समृद्धि प्रभावित हो रही है।
घाघरा नदी में नेपाल के पानी से बाढ़ की विकरालता के कारण इस नदी का अस्तित्व कायम है। गोंडा जिले के सीमावर्ती क्षेत्र में सिंचाई विभाग के बाढ़ खंड सरयू वृत्त ने तटबंध का निर्माण घाघरा की धारा में निर्धारित एलाइनमेंट के विपरीत करवा दिया। जिससे यहां नदी की धारा लगभग दो किमी संकरी थी। तटवर्ती दर्जन भर से अधिक ग्रामीणों को झेलना पड़ रहा है। विगत दो वर्ष में दो बार तटबंध बाढ़ में ध्वस्त हुआ। चारो तरफ जल प्रलय में जनजीवन के राहत बचाव की मुश्किल उठानी पड़ी। यह आपदा नदी को संकरा किए जाने से ही उत्पन्न हुई। यहां निर्धारित परिधि में तटबंध बनाए जाने की कसरत अब शुरू की गई है।
ग्रामीणों ने कल्यानी के कल्याण के लिए भागीरथी जतन शुरू किए थे। निंदूरा ब्लॉक के तटवर्ती ग्राम पंचायतों के ग्राम प्रधानों ने मनरेगा मद से नदी की तलहटी की सफाई करवाने की परियोजनाएं प्रस्तुत की थीं। कई स्थानों पर ग्रामीणों ने श्रमदान कर कल्यानी नदी की रेत साफ करने का अभियान भी छेड़ा था। जिसका डीएम विकास गोठलवाल ने संज्ञान लिया। उन्होंने कल्यानी नदी के कल्याण के लिए बाकायदा एक टास्क फोर्स गठित कर मनरेगा मद से परियोजना बनाए जाने के निर्देश दिए। जिसमें दोनो तरफ के तटबंध और उनपर वृक्षारोपण किए जाने की योजना थी। इससे नदी की धारा में फिर प्रवाह आना तय माना जा रहा था। टास्क फोर्स की बैठक कर एक दर्जन महकमों को लगाकर कल्यानी परियोजना तैयार की जाने लगी। इसी बीच बरसात शुरू होने पर परियोजना पर कार्य रूक गया। बरसात समाप्ति के बाद कल्यानी नदी वाले ब्लॉकों में मनरेगा परियोजना से कार्य होना था। पर समय बदला और केंद्र सरकार की निरीक्षण टीमों ने जिले में मनरेगा मद में खर्च की गई धनराशि में बंदरबांट की आशंका जता दी। जिसमें विभागों समेत जिला प्रशासन को भी हलकान होना पड़ा। नतीजतन जिला प्रशासन ने मनरेगा मद की इस अभिनव योजना की फाइल को हमेशा के लिए बंद कर दिया। यह जानकारी जब नदी के तटवर्ती गांवों को हुई तो वह हतप्रभ रह गए। अब उनकी आस जो बंधी थी वह टूट गई।