बहरैन में मानवाधिकार का हनन और अमरीका की टिप्पणी

https://tehalkatodayindia.blogspot.com/2011/04/blog-post_8432.html
ऐसी स्थिति में कि जब आले ख़लीफ़ा और आले सऊद सरकारों के हाथों सप्ताहों से बहरैन की जनता का जनसंहार जारी है, अमरीकी विदेशमंत्रालय ने बड़े हल्के स्वर में बहरैन में प्रदर्शनकारियों के दमन की आलोचना की है। अमरीकी विदेशमंत्रालय के अधिकारी जैकब सूलिवन ने कहा है कि अमरीका को बहरैन की जेल में क़ैद लोगों के मारे जाने पर खेद है और वह बहरैन के सरकारी अधिकारियों से मांग करता है कि वह बंदियों के साथ न्यायपूर्ण एवं अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के अनुसार व्यवहार करे। बहरैन में हालिया सप्ताहों में मानवाधिकार का हनन और आम लोगों का जनसंहार इतना स्पष्ट रहा है कि अमरीका देर ही से सही इस मामले पर प्रतिक्रिया जताने पर विवश हो गया। हालिया दिनों में बहरैन व सऊदी अरब के सैनिकों ने बहरैन के अस्पतालों, मस्जिदों, स्कूलों व धार्मिक स्थलों पर आक्रमण किए हैं। बहरैन से प्राप्त होने वाले चित्र इस बात को दर्शाते हैं कि इस देश के सुरक्षा बल बड़ी बर्बरता के साथ प्रदर्शनकारियों का दमन कर रहे हैं। इसके बावजूद मानवाधिकार और प्रजातंत्र की रक्षा की दावेदार अमरीकी व युरोपीय सरकारों ने अब तक बहरैन में हो रहे जातीय सफ़ाए को रुकवाने के लिए कोई कार्यवाही नहीं की है। बहरैन में प्रदर्शनकारियों के दमन के लिए सऊदी अरब की सैनिक कार्यवाही से एक दिन पूर्व अमरीका के रक्षामंत्री राबर्ट गेट्स आले ख़लीफ़ा परिवार के अतिथि थे और उन्हीं के समन्वय से बहरैन में प्रदर्शकारियों का रक्तपात आरंभ किया गया। कुछ समय के बाद अमरीकी विदेशमंत्री हिलेरी क्लिंटन ने कहा कि लीबिया व बहरैन की घटनाओं में कोई समानता नहीं है और इस प्रकार का बयान देकर उन्होंने बहरैन के लोगों के जनसंहार के लिए आले ख़लीफ़ा व आले सऊद शासन को हरी झंडी दिखा दी। अलबत्ता ऐसा प्रतीत होता है कि बहरैन में मानवाधिकारों का इतना अधिक हनन हो रहा है कि क्षेत्र में जनता के दमन के मुख्य समर्थक के रूप में अमरीका भी चुप नहीं रह सकता किंतु ऐसा प्रतीत नहीं होता कि अमरीका इस संबंध में शाब्दिक आलोचना से आगे बढ़ेगा क्योंकि मध्यपूर्व के संवेदनशील क्षेत्र में अपनी पिट्ठू सरकारों को बाक़ी रखना अमरीका की मुख्य रणनीति है। इसी कारण अमरीका ने जो रवैया लीबिया के संबंध में अपनाया है उसे वह कदापि बहरैन के संबंध में नहीं अपनाएगा। पश्चिमी देशों की दृष्टि में मानवाधिकार वहीं तक सम्मानीय है जहां तक उनके हित सुरक्षित रहें।