हालिया परिवर्तनों को प्रभावित करने हेतु अमेरिकी चाल

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उदाहरण स्वरूप सऊदी अरब और संयुक्त अरब इमारात के सैनिक बहरैन में क़ानूनी मांग करने वाले लोगों का दमन कर रहे हैं जबकि ये दोनों देश अगले कुछ दिनों में अमेरिकी सरकार के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की मेज़बानी करने वाले हैं। कई सप्ताह से सऊदी अरब और संयुक्त अरब इमारात के सैनिकों ने बहरैन का अतिग्रहण कर रखा है ताकि आले ख़लीफ़ा की तानाशाही सरकार के बाक़ी रहने को निश्चित बनाया जा सके। कुछ प्रमाण इस बात के सूचक हैं कि यदि रियाज़ और अबुज़बी बहरैन के तानाशाह की सरकार को बचाने के लिए आगे न आते तो अब तक बहरैन के आले ख़लीफ़ा का परिणाम भी ट्यूनिशिया के तानाशाह ज़ैनुल आबेदीन बिन अली और मिस्र के तानाशाह हुस्नी मुबारक जैसे हुआ होता।
अलबत्ता क्षेत्र में अमेरिका के प्राचीन घटक मुबारक के अंत के बाद अमेरिकियों ने वहां पर होने वाले परिवर्तनों के संबंध में अपना पैंतरा बदल लिया है। मिस्र में होने वाले जनांदोलनों के सफल होने से पूर्व वाइट हाउस अरब जगत में यह भावना मज़बूत करने के प्रयास में था कि वह मानवाधिकारों एवं डेमोक्रेसी का समर्थक है तथा इसी कारण मिस्र और ट्यूनिशिया में जनहानि कम होने के साथ वहां के तानाशाहों का अंत हो गया परंतु इन जनांदोलनों की चिन्गारी ने सऊदी अरब और फार्स की खाड़ी के देशों तक पहुंच कर अमेरिका को इस बात के लिए बाध्य कर दिया कि वह अपने दिखावटी मुखौटो को उतार दे और अपने कठपुतली शासकों को दमन एवं जनसंहार करने का आदेश दे। इस प्रकार मनामा और सनआ की सड़कों पर जनता व आम लोगों की हत्याएं की जा रही हैं और लीबिया के तानाशाह कर्नल मोअम्मर क़ज़्ज़ाफ़ी ने अपने ही देश की जनता के विरुद्ध युद्ध छेड़ रखा है।
वर्तमान समय में एक के बाद एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी मध्यपूर्व की यात्रा कर रहे हैं ताकि अपने घटकों की भावना मज़बूत और उनका मनोबल ऊंचा करके जनांदोलनों के दमन के बाद के समय के लिए कार्यक्रम बना सकें। यह ऐसी स्थिति में है कि जब अरब जगत में पिछले कुछ महीनों के दौरान होने वाली घटनाओं ने दर्शा दिया है कि क्षेत्रीय राष्ट्रों के क्रोध से संबंधित परिवर्तनों ने क्षेत्र में अमेरिका के प्रभाव को कम कर दिया है।