सूरज लहूलुहान हर एक शाम देख ले ,ए ज़िन्दगी गुरुर का अंजाम देख ले
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होस्नी मुबारक इस्तीफा देकर भागा
जश्न से जगमग हुआ तहरीर चौक
तहलका टुडे टीम
राष्ट्रपति के पद से होस्नी मुबारक के इस्तीफ़े की ख़बर आते ही राजधानी काहिरा का तहरीर चौक जश्न के केंद्र में तब्दील हो गया.लाखों की संख्या में मौजूद लोगों ने नारेबाज़ी करनी शुरू की. रात के अंधेरे में तहरीर चौक जश्न से जगमग हो गया.
पिछले 18 दिनों से होस्नी मुबारक के त्यागपत्र की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों ने उम्मीद नहीं छोड़ी थी. एक दिन पहले ही गुरुवार को मुबारक के पद छोड़ने से इनकार के बाद से प्रदर्शनकारी नाराज़ थे.
शुक्रवार को उन्होंने और बड़ी संख्या में प्रदर्शन किया और अपनी मांग पर डटे रहे. प्रदर्शनकारियों ने जैसे ही शुक्रवार शाम को मुबारक के इस्तीफ़े की ख़बर सुनी, वे जश्न में चीखने-चिल्लाने लगे.
प्रदर्शनकारियों ने तहरीर चौक पर शुकराने की नमाज़ भी अदा की. काहिरा के अलावा एलेक्ज़ैंड्रिया में भी लोग सड़कों पर उतर कर अपनी ख़ुशी का इज़हार कर रहे हैं.
काहिरा के तहरीर चौक पर डटे एक प्रदर्शनकारी ने बताया, "हम पर सरकार, परिजनों और मित्रों का काफ़ी दबाव था. लेकिन हमने उम्मीद नहीं छोड़ी थी. और आज इसका नतीजा निकला है.होस्नी मुबारक विरोधी प्रदर्शनकारियों को पिछले दिनों उस समय मुश्किल स्थिति का सामना करना पड़ा, जब मुबारक समर्थक भी सड़कों पर उतर गए और दोनों गुटों में झड़प हुई.
दो-तीन दिनों पर सड़क पर मुबारक विरोधी और समर्थकों के बीच अच्छी ख़ासी झड़प हुई. लेकिन मुबारक विरोधियों ने हार नहीं मानी.
उन्होंने तहरीर चौक के अलावा संसद भवन के बाहर भी अपना अड्डा बना लिया. अब 18 दिनों बाद जश्न में डूबे प्रदर्शनकारियों को मन मांगी मुराद मिल गई हैमिस्र के 82 वर्षीय राष्ट्रपति होस्नी मुबारक क़रीब 30 वर्षों तक सत्ता में रहे और इस प्रकार उन्होंने अरब जगत के सबसे ज़्यादा जनसंख्या वाले देश का नेतृत्व किया.
किसी ने भी शायद ये नहीं सोचा था कि 1981 में अनवर सादात की हत्या के बाद उप-राष्ट्रपति के पद पर मौजूद बहुत ही कम जाने पहचाने नाम होस्नी मुबारक को राष्ट्रपति का पद सौंपा जाएगा और वह इतने वर्षों तक देश की कमान संभाले रहेंगे.
उनके 30 साल के प्रशासन में आपातकाल सी स्थिति रही क्योंकि कहीं भी पांच से ज़्यादा व्यक्तियों के इकठ्ठा होने पर पाबंदी थी.
अनवर सादात की हत्या इस्लामी चरमपंथियों ने क़ाहिरा में एक सैनिक परेड के दौरान कर दी थी और मुबारक भाग्यशाली रहे थे कि उन्हें गोली नहीं लगी. हालांकि वो उस वक़्त उनके बग़ल में मौजूद थे.
उसके बाद से कम से कम उन पर छह बार जानलेवा हमले हो चुके हैं और वो इनमें बच गए. वह उस वक़्त बाल-बाल बचे थे जब 1995 में अफ़्रीकी देशों के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए इथोपिया गए थे और उनकी लिमोज़िन कार को निशाना बनाया गया था.
गोलियों को छकाने के हुनर में माहिर पूर्व वायुसेना कमांडर मुबारक पश्चिमी देशों के विश्वसनीय सहयोगी रहे और इसी कारण वे अपने देश में शक्तिशाली विपक्ष को परास्त करने में कामयाब रहे.
लेकिन देश में जारी उथल-पुथल, क्षेत्रीय प्रभाव में कमी, गिरते स्वास्थ्य और अनिश्चित उत्तराधिकारी के मद्देनज़र ये सवाल होने लगा था कि मुबारक कितने दिन और सत्ता को चलाने में सफल रहेंगे.
जनवरी 2011 से मिस्र में मुबारक के ख़िलाफ़ जन प्रदर्शन ज़ोरों पर है
फिर क़ाहिरा और अन्य शहरों में अपने ख़िलाफ़ जारी प्रदर्शन के दौरान उन्होंने एक फ़रवरी को टीवी पर संबोधन के दौरान कहा कि वह सितंबर में होने वाले चुनाव में हिस्सा नहीं लेंगे.
एक ग़रीब घराने से ताल्लुक़ रखने वाले मुबारक ने 1949 में मिस्र की मिलिट्री एकैडमी से ग्रैजुएशन किया और 1950 में वायुसेना में शामिल हुए.
मिस्र की वायुसेना के कमांडर और रक्षा विभाग के उप-मंत्री की हैसियत से इसराइल पर चौंकाने वाला हमला करने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसराइल ने मिस्र के सिनाई क्षेत्र पर क़ब्ज़ा कर रखा था और ये 1973 योम किप्पुर युद्ध के दौरान हुआ था.
उनकी कोशिशों का फल उन्हें दो साल बाद उस वक़्त मिला जब अनवर सादात पर उप-राष्ट्रपति नियुक्त करने का दबाव पड़ने लगा और सादात ने मुबारक को अपना उप-राष्ट्रपति बनाया.
उन्होंने क़ाहिरा से स्नातक करने वाली एक लड़की सुज़ेन से शादी की जो नस्ल से आधी ब्रितानी थीं. उनके दो पुत्र जमाल और अला हैं. वह एक अनुशासित जीवन गुज़ारते रहे और उनका दैनिक जीवन निश्चित कार्यक्रम के तहत सुबह छह बजे से शुरू होता था.उन्होंने न तो कभी सिगरेट का सेवन किया और न ही शराब को हाथ लगाया. उनके बारे में मशहूर रहा कि वो पूरी तरह से फ़िट हैं और स्वस्थ जीवन गुज़ारते हैं.
जवानी के ज़माने में वह सुबह की शुरुआत थोड़े व्यायाम या स्क्वाश के साथ करते थे, उनके नज़दीकी लोगों को राष्ट्रपति के दैनिक कार्यक्रम से शिकायत रहती थी.
मुहम्मद होस्नी सैयद मुबारक को अनवर सादात की हत्या के आठ दिनों के बाद 14 अक्तूबर 1981 को राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई गई थी.
राष्ट्रपति बनने से पहले कम लोकप्रिय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कम हैसियत रखने वाले इस शक्तिशाली सैनिक ने सादात की हत्या के कारणों का ठीक से इस्तेमाल किया और इसराइल के साथ शांति समझौता कर उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़े राजनयिक की हैसियत से अपनी पहचान बनाई थी.
आपातकाल
वास्तव में जबसे होस्नी मुबारक ने सत्ता संभाली उन्होंने मिस्र पर अर्ध-सैनिक शासक के तौर पर राज किया.
अपने पूरे काल में उन्होंने देश को आपातकाल क़ानून के तहत चलाया और सरकार को गिरफ़्तारी और बुनियादी स्वतंत्रता को कुचलने की पूरी आज़ादी दे रखी थी.
उनकी सरकार का कहना रहा था कि ये कठोर क़दम इस्लामी चरमपंथ से लड़ने के लिए ज़रूरी थे क्योंकि चरमपंथ की लहर कई दशकों में देखी गई जिसने मिस्र के बड़े उद्योग पर्यटन को आम तौर पर निशाना बनाया.
एक तरह से मुबारक ने देश को स्थिरता प्रदान की और आर्थिक विकास में हिस्सा लिया और इस कारण उनके देश वासियों ने मिस्र में उनके एकाधिकार को क़बूल किया.
हाल के वर्षों में मुबारक को पहली बार महसूस हुआ कि देश में लोकतंत्र के विकास के लिए उनपर देश के अंदर और बाहर दोनों ओर से दबाव पड़ रहा है. बाहर से दबाव उनके सबसे बड़े सहयोगी अमरीका की तरफ़ से था.
जब उन्होंने कहा था कि वह राजनीतिक प्रक्रिया के लिए रास्ता खोलना चाहते हैं तो उनके समर्थकों को भी उन पर कम ही विश्वास था.
उनके राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव में न उतरने के ऐलान का मतलब था कि अमरीका ने उनपर बाहर रहने का दबाव बनाया था और एक ज़्यादा लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुचारू ढंग से सत्ता सौंपने को कहा था.
मुबारक 1981 के बाद से तीन बार निर्विरोध राष्ट्रपति निर्वाचित हुए लेकिन चौथी बार अमरीका के दबाव में उन्होंने 2005 में निर्वाचन प्रणाली में बदलाव लाकर अन्य प्रत्याशियों की गुंजाइश पैदा की.
आलोचकों का कहना है कि चुनाव मुबारक और नेश्नल डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) के पक्ष में काफ़ी झुका हुआ था क्योंकि सत्तारूढ़ मिस्री नेता ने विपक्ष, ख़ास तौर से इख़्वानुल मुस्लिमून के ख़िलाफ़ लगातार अभियान जारी रखा था.
उनके लंबे प्रशासन काल, उनकी उम्र और उत्तराधिकारी को लेकर मिस्र में चिंताएं थीं लेकिन जनवरी के जनप्रदर्शन ने मिस्र के लोगों को एक नई आवाज़ दी.
उनके आस-पास के लोगों का कहना है कि उनका स्वास्थ्य और उनकी शक्ति उनकी उम्र पर भारी पड़ी लेकिन हाल के दिनों में कुछ स्वास्थ्य संबंधी मामलों ने साबित कर दिया कि वह भी नश्वर हैं.
इख़्वानुल मुस्लिमून मिस्र में मुख्य विपक्ष रहा है.
उनके स्वास्थ्य के बारे में चिंताएं उस वक़्त देखी गईं जब वह अपने गॉल-ब्लाडर के ऑपरेशन के लिए 2010 में जर्मनी गए. लेकिन जब भी वह ज़्यादा दिनों तक मीडिया से दूर रहते या किसी महत्वपूर्ण कार्यक्रम में शामिल नहीं होते तो इस तरह की चिंता उठती थी.
बहरहाल, मिस्र के ज़्यादातर अधिकारी इस बात से इंकार करते रहे और इसराइली और अरब दुनिया की मीडिया में अपनी बात पेश करते रहे.
मिस्री शहरों में जारी जन आंदोलन के दबाव में आख़िरकार मुबारक को उप-राष्ट्रपति का नामांकन करना पड़ा. जनवरी 29 को ख़ुफ़िया विभाग के अध्यक्ष उमर सुलेमान की पदोन्नति की गई जिसे इस नज़र से देखा गया कि मुबारक सेना में अपने समर्थन को मज़बूत करना चाहते थे.
इससे पहले तक उनका प्रत्यक्ष रूप से कोई उत्तराधिकारी नहीं था और विपक्षी गुटों को ये शक था कि वह अपने पुत्र 40 वर्षीय जमाल मुबारक को इसके लिए तैयार कर रहे थे.
जमाल एक निवेश बैंकर है और उनका कहना है कि वह राष्ट्रपति नहीं बनना चाहते लेकिन एनडीपी में लगातार उनके पद में उन्नति होती रही और वह आर्थिक और राजनीतिक सुधारों के बड़े समर्थक रहे.
इतिहासकारों का कहना है कि 1952 के आंदोलन के बाद से आए हर राष्ट्रपति का संबंध सेना से रहा है और जमाल को महत्वपूर्ण चुनाव क्षेत्रों में समर्थन हासिल करने में काफ़ी दिक़्क़त का सामना हो सकता है क्योंकि वह सेना से नहीं आते.
मिस्र में जारी प्रदर्शन और साल के अंत में होने वाले चुनाव के मद्देनज़र कहा जा सकता है कि फ़ैसले की घड़ी आ चुकी है.
पहले मुबारक ने कह रखा है कि वह अपनी अंतिम सांस तक मिस्र की सेवा करते रहेंगे. एक फ़रवरी को देश के नाम अपने संबोधन में उन्होंने कहा, "ये वह प्यारा देश है... जहां मैंने अपनी ज़िंदगी गुज़ारी, मैं इसके लिए लड़ा और इसकी भूमि, प्रभुसत्ता और हितों की रक्षा की. इसी सरज़मीन पर मैं मरुंगा. इतिहास मेरे बारे में फ़ैसला करेगा जैसा कि दूसरों के बारे में उसने किया है. लेकिन सद्दाम की तरह और शाह इरान की तरह भाग खड़े होने से ये साबित हो गया की ज़ालिम जायदा दिन तक टिक नहीं सकता .
जश्न से जगमग हुआ तहरीर चौक
तहलका टुडे टीम
राष्ट्रपति के पद से होस्नी मुबारक के इस्तीफ़े की ख़बर आते ही राजधानी काहिरा का तहरीर चौक जश्न के केंद्र में तब्दील हो गया.लाखों की संख्या में मौजूद लोगों ने नारेबाज़ी करनी शुरू की. रात के अंधेरे में तहरीर चौक जश्न से जगमग हो गया.
पिछले 18 दिनों से होस्नी मुबारक के त्यागपत्र की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों ने उम्मीद नहीं छोड़ी थी. एक दिन पहले ही गुरुवार को मुबारक के पद छोड़ने से इनकार के बाद से प्रदर्शनकारी नाराज़ थे.
शुक्रवार को उन्होंने और बड़ी संख्या में प्रदर्शन किया और अपनी मांग पर डटे रहे. प्रदर्शनकारियों ने जैसे ही शुक्रवार शाम को मुबारक के इस्तीफ़े की ख़बर सुनी, वे जश्न में चीखने-चिल्लाने लगे.
प्रदर्शनकारियों ने तहरीर चौक पर शुकराने की नमाज़ भी अदा की. काहिरा के अलावा एलेक्ज़ैंड्रिया में भी लोग सड़कों पर उतर कर अपनी ख़ुशी का इज़हार कर रहे हैं.
काहिरा के तहरीर चौक पर डटे एक प्रदर्शनकारी ने बताया, "हम पर सरकार, परिजनों और मित्रों का काफ़ी दबाव था. लेकिन हमने उम्मीद नहीं छोड़ी थी. और आज इसका नतीजा निकला है.होस्नी मुबारक विरोधी प्रदर्शनकारियों को पिछले दिनों उस समय मुश्किल स्थिति का सामना करना पड़ा, जब मुबारक समर्थक भी सड़कों पर उतर गए और दोनों गुटों में झड़प हुई.
दो-तीन दिनों पर सड़क पर मुबारक विरोधी और समर्थकों के बीच अच्छी ख़ासी झड़प हुई. लेकिन मुबारक विरोधियों ने हार नहीं मानी.
उन्होंने तहरीर चौक के अलावा संसद भवन के बाहर भी अपना अड्डा बना लिया. अब 18 दिनों बाद जश्न में डूबे प्रदर्शनकारियों को मन मांगी मुराद मिल गई हैमिस्र के 82 वर्षीय राष्ट्रपति होस्नी मुबारक क़रीब 30 वर्षों तक सत्ता में रहे और इस प्रकार उन्होंने अरब जगत के सबसे ज़्यादा जनसंख्या वाले देश का नेतृत्व किया.
किसी ने भी शायद ये नहीं सोचा था कि 1981 में अनवर सादात की हत्या के बाद उप-राष्ट्रपति के पद पर मौजूद बहुत ही कम जाने पहचाने नाम होस्नी मुबारक को राष्ट्रपति का पद सौंपा जाएगा और वह इतने वर्षों तक देश की कमान संभाले रहेंगे.
उनके 30 साल के प्रशासन में आपातकाल सी स्थिति रही क्योंकि कहीं भी पांच से ज़्यादा व्यक्तियों के इकठ्ठा होने पर पाबंदी थी.
अनवर सादात की हत्या इस्लामी चरमपंथियों ने क़ाहिरा में एक सैनिक परेड के दौरान कर दी थी और मुबारक भाग्यशाली रहे थे कि उन्हें गोली नहीं लगी. हालांकि वो उस वक़्त उनके बग़ल में मौजूद थे.
उसके बाद से कम से कम उन पर छह बार जानलेवा हमले हो चुके हैं और वो इनमें बच गए. वह उस वक़्त बाल-बाल बचे थे जब 1995 में अफ़्रीकी देशों के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए इथोपिया गए थे और उनकी लिमोज़िन कार को निशाना बनाया गया था.
गोलियों को छकाने के हुनर में माहिर पूर्व वायुसेना कमांडर मुबारक पश्चिमी देशों के विश्वसनीय सहयोगी रहे और इसी कारण वे अपने देश में शक्तिशाली विपक्ष को परास्त करने में कामयाब रहे.
लेकिन देश में जारी उथल-पुथल, क्षेत्रीय प्रभाव में कमी, गिरते स्वास्थ्य और अनिश्चित उत्तराधिकारी के मद्देनज़र ये सवाल होने लगा था कि मुबारक कितने दिन और सत्ता को चलाने में सफल रहेंगे.
जनवरी 2011 से मिस्र में मुबारक के ख़िलाफ़ जन प्रदर्शन ज़ोरों पर है
फिर क़ाहिरा और अन्य शहरों में अपने ख़िलाफ़ जारी प्रदर्शन के दौरान उन्होंने एक फ़रवरी को टीवी पर संबोधन के दौरान कहा कि वह सितंबर में होने वाले चुनाव में हिस्सा नहीं लेंगे.
अर्श से फ़र्श
मेनोफ़िया प्रांत में क़ाहिरा के नज़दीक एक छोटे से गांव में चार मई 1928 में पैदा हुए मुबारक ने अपनी निजी ज़िंदगी को जनता से दूर रखा.एक ग़रीब घराने से ताल्लुक़ रखने वाले मुबारक ने 1949 में मिस्र की मिलिट्री एकैडमी से ग्रैजुएशन किया और 1950 में वायुसेना में शामिल हुए.
मिस्र की वायुसेना के कमांडर और रक्षा विभाग के उप-मंत्री की हैसियत से इसराइल पर चौंकाने वाला हमला करने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसराइल ने मिस्र के सिनाई क्षेत्र पर क़ब्ज़ा कर रखा था और ये 1973 योम किप्पुर युद्ध के दौरान हुआ था.
उनकी कोशिशों का फल उन्हें दो साल बाद उस वक़्त मिला जब अनवर सादात पर उप-राष्ट्रपति नियुक्त करने का दबाव पड़ने लगा और सादात ने मुबारक को अपना उप-राष्ट्रपति बनाया.
उन्होंने क़ाहिरा से स्नातक करने वाली एक लड़की सुज़ेन से शादी की जो नस्ल से आधी ब्रितानी थीं. उनके दो पुत्र जमाल और अला हैं. वह एक अनुशासित जीवन गुज़ारते रहे और उनका दैनिक जीवन निश्चित कार्यक्रम के तहत सुबह छह बजे से शुरू होता था.उन्होंने न तो कभी सिगरेट का सेवन किया और न ही शराब को हाथ लगाया. उनके बारे में मशहूर रहा कि वो पूरी तरह से फ़िट हैं और स्वस्थ जीवन गुज़ारते हैं.
जवानी के ज़माने में वह सुबह की शुरुआत थोड़े व्यायाम या स्क्वाश के साथ करते थे, उनके नज़दीकी लोगों को राष्ट्रपति के दैनिक कार्यक्रम से शिकायत रहती थी.
मुहम्मद होस्नी सैयद मुबारक को अनवर सादात की हत्या के आठ दिनों के बाद 14 अक्तूबर 1981 को राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई गई थी.
राष्ट्रपति बनने से पहले कम लोकप्रिय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कम हैसियत रखने वाले इस शक्तिशाली सैनिक ने सादात की हत्या के कारणों का ठीक से इस्तेमाल किया और इसराइल के साथ शांति समझौता कर उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़े राजनयिक की हैसियत से अपनी पहचान बनाई थी.
आपातकाल
वास्तव में जबसे होस्नी मुबारक ने सत्ता संभाली उन्होंने मिस्र पर अर्ध-सैनिक शासक के तौर पर राज किया.
अपने पूरे काल में उन्होंने देश को आपातकाल क़ानून के तहत चलाया और सरकार को गिरफ़्तारी और बुनियादी स्वतंत्रता को कुचलने की पूरी आज़ादी दे रखी थी.
उनकी सरकार का कहना रहा था कि ये कठोर क़दम इस्लामी चरमपंथ से लड़ने के लिए ज़रूरी थे क्योंकि चरमपंथ की लहर कई दशकों में देखी गई जिसने मिस्र के बड़े उद्योग पर्यटन को आम तौर पर निशाना बनाया.
एक तरह से मुबारक ने देश को स्थिरता प्रदान की और आर्थिक विकास में हिस्सा लिया और इस कारण उनके देश वासियों ने मिस्र में उनके एकाधिकार को क़बूल किया.
हाल के वर्षों में मुबारक को पहली बार महसूस हुआ कि देश में लोकतंत्र के विकास के लिए उनपर देश के अंदर और बाहर दोनों ओर से दबाव पड़ रहा है. बाहर से दबाव उनके सबसे बड़े सहयोगी अमरीका की तरफ़ से था.
जब उन्होंने कहा था कि वह राजनीतिक प्रक्रिया के लिए रास्ता खोलना चाहते हैं तो उनके समर्थकों को भी उन पर कम ही विश्वास था.
उनके राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव में न उतरने के ऐलान का मतलब था कि अमरीका ने उनपर बाहर रहने का दबाव बनाया था और एक ज़्यादा लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुचारू ढंग से सत्ता सौंपने को कहा था.
मुबारक 1981 के बाद से तीन बार निर्विरोध राष्ट्रपति निर्वाचित हुए लेकिन चौथी बार अमरीका के दबाव में उन्होंने 2005 में निर्वाचन प्रणाली में बदलाव लाकर अन्य प्रत्याशियों की गुंजाइश पैदा की.
आलोचकों का कहना है कि चुनाव मुबारक और नेश्नल डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) के पक्ष में काफ़ी झुका हुआ था क्योंकि सत्तारूढ़ मिस्री नेता ने विपक्ष, ख़ास तौर से इख़्वानुल मुस्लिमून के ख़िलाफ़ लगातार अभियान जारी रखा था.
उनके लंबे प्रशासन काल, उनकी उम्र और उत्तराधिकारी को लेकर मिस्र में चिंताएं थीं लेकिन जनवरी के जनप्रदर्शन ने मिस्र के लोगों को एक नई आवाज़ दी.
उनके आस-पास के लोगों का कहना है कि उनका स्वास्थ्य और उनकी शक्ति उनकी उम्र पर भारी पड़ी लेकिन हाल के दिनों में कुछ स्वास्थ्य संबंधी मामलों ने साबित कर दिया कि वह भी नश्वर हैं.
इख़्वानुल मुस्लिमून मिस्र में मुख्य विपक्ष रहा है.
उनके स्वास्थ्य के बारे में चिंताएं उस वक़्त देखी गईं जब वह अपने गॉल-ब्लाडर के ऑपरेशन के लिए 2010 में जर्मनी गए. लेकिन जब भी वह ज़्यादा दिनों तक मीडिया से दूर रहते या किसी महत्वपूर्ण कार्यक्रम में शामिल नहीं होते तो इस तरह की चिंता उठती थी.
बहरहाल, मिस्र के ज़्यादातर अधिकारी इस बात से इंकार करते रहे और इसराइली और अरब दुनिया की मीडिया में अपनी बात पेश करते रहे.
मिस्री शहरों में जारी जन आंदोलन के दबाव में आख़िरकार मुबारक को उप-राष्ट्रपति का नामांकन करना पड़ा. जनवरी 29 को ख़ुफ़िया विभाग के अध्यक्ष उमर सुलेमान की पदोन्नति की गई जिसे इस नज़र से देखा गया कि मुबारक सेना में अपने समर्थन को मज़बूत करना चाहते थे.
इससे पहले तक उनका प्रत्यक्ष रूप से कोई उत्तराधिकारी नहीं था और विपक्षी गुटों को ये शक था कि वह अपने पुत्र 40 वर्षीय जमाल मुबारक को इसके लिए तैयार कर रहे थे.
जमाल एक निवेश बैंकर है और उनका कहना है कि वह राष्ट्रपति नहीं बनना चाहते लेकिन एनडीपी में लगातार उनके पद में उन्नति होती रही और वह आर्थिक और राजनीतिक सुधारों के बड़े समर्थक रहे.
इतिहासकारों का कहना है कि 1952 के आंदोलन के बाद से आए हर राष्ट्रपति का संबंध सेना से रहा है और जमाल को महत्वपूर्ण चुनाव क्षेत्रों में समर्थन हासिल करने में काफ़ी दिक़्क़त का सामना हो सकता है क्योंकि वह सेना से नहीं आते.
मिस्र में जारी प्रदर्शन और साल के अंत में होने वाले चुनाव के मद्देनज़र कहा जा सकता है कि फ़ैसले की घड़ी आ चुकी है.
पहले मुबारक ने कह रखा है कि वह अपनी अंतिम सांस तक मिस्र की सेवा करते रहेंगे. एक फ़रवरी को देश के नाम अपने संबोधन में उन्होंने कहा, "ये वह प्यारा देश है... जहां मैंने अपनी ज़िंदगी गुज़ारी, मैं इसके लिए लड़ा और इसकी भूमि, प्रभुसत्ता और हितों की रक्षा की. इसी सरज़मीन पर मैं मरुंगा. इतिहास मेरे बारे में फ़ैसला करेगा जैसा कि दूसरों के बारे में उसने किया है. लेकिन सद्दाम की तरह और शाह इरान की तरह भाग खड़े होने से ये साबित हो गया की ज़ालिम जायदा दिन तक टिक नहीं सकता .