एक महाठग, एक बैंक और एक महाबैंक

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सुप्रिया रॉय
नई दिल्ली,देश की सबसे सफल और सबसे संदिग्ध बैंक आईसीआईसीआई बैंक ऑफ राजस्थान को शामिल कर के बड़ी आफत में फंस गई है। पहले बैंक की 468 शाखाएं पा कर आईसीआईसीआई निहाल हो रही थी मगर अब बैंक ऑफ राजस्थान के एक तरह से मालिक रहे प्रवीण कुमार तायल जो बीस साल पहले करनाल में एक दुकान पर मोजे बेचते थे, की गतिविधियों की वजह से शेयर बाजार से ले कर बैंकिंग उद्योग तक सन्नाटे में हैं।
शेयर बाजार ने तो तायल पर पाबंदी लगा दी है कि उन्हें आईसीआईसीआई के जो एक हजार करोड़ के शेयर मिले हैं उन्हें वे बेच नहीं सकते। तायल ने अपनी ही कुछ कंपनियों के जरिए इन शेयरों को बेचने का अदालत से बाहर कोई समझौता करने की अपील की है और तायल गर्व से कहते हैं कि छह करोड़ की बैंक को मैंने पांच सौ करोड़ की बनाया और एचडीएफसी ने पंजाब की छोटी सी सेंचुरियन बैक को खरीदने में ज्यादा पैसा खर्च किया था। आज अपनी और अपने बैंक के कर्मचारियों की दुर्गति के लिए प्रदीप तायल ही जिम्मेदार हैं और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से ले कर भारतीय स्टॉक एक्सचेंज तक ने उन पर पाबंदी यों ही नहीं लगा दी है।
यह कहानी बहुत विचित्र और बहुत हृदय विदारक है। सबसे पुरानी गैर सरकारी बैंकों में से एक बैंक ऑफ राजस्थान 1996 से 1998 के बीच कोलकाता के मारवाड़ी परिवार केशव बांगुर के कब्जे में थी। सीबीआई का इल्जाम है कि बांगुर ने तीन सौ करोड़ रुपए बैंक से ठग लिए। बांगुर को गिरफ्तार किया गया और फिर जमानत मिल गई। मुकदमेंबाजी में फंसे बांगुर ने अपनी बैंक के एक ठीक ठाक खातेदार प्रवीण तायल को बुला कर बैंक का सहायक मालिक बना दिया जिसे कारोबार की भाषा में 'को प्रोमोटर' कहते हैं। अब तो तायल साहब भले ही खुद जमानत पर हाें, मगर तायल ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के मालिक तो हैं ही।
जिस बैंक से 25 करोड़ रुपए कर्ज ले कर उसी के शेयर साढ़े सात करोड़ रुपए में खरीद कर तायल नॉन एक्जीक्यूटिव चेयरमैन बन गए थे और कर्ज दिलवाने वाले बांगुर को बाहर कर दिया था, वे ही पुराने पाप अब तायल के सिर पर चढ़ कर बोल रहे हैं। बीस साल पहले पचास हजार रुपए कर्ज के लिए आवेदन करने वाले तायल ने बैंक के सारे खाते जला डाले, कंप्यूटरों में से हिसाब किताब उड़ा दिया और ढाई हजार करोड़ के मालिक बन बैठे। जमानत पर वे भी है।
जैसे बांगुर ने किया था वैसे ही तायल ने अपनी कंपनियों को बैंक ऑफ राजस्थान से ऐसे कर्ज दिलवाए जो कभी वापस नहीं किए जाने थे। रिजर्व बैंक को तो बैंक की किसी गतिविधि की जानकारी दी ही नहीं गई। हालत यह थी कि बैंक के खाते में बीस करोड़ रुपए आए और निकाल लिए गए मगर आज तक कोई नहीं जानता कि यह धन्ना सेठ कौन था जो यह खेल कर गया। असल में खुद तायल ने ही बताया कि उनकी कृष्णा एक्सपोर्ट इंडस्ट्रीज का यह कारनामा था। इस बीस करोड़ का इस्तेमाल बैंक के ही बेनामी शेयर खरीदने के लिए किया गया। रिजर्व बैंक को भी कोई खास दिलचस्पी तायल के कारनामों का पता लगाने के बारे में नहीं था। शेयर आवंटन में भी लगभग 29 लाख रुपए हजम कर लिए गए।
तायल और बांगुर दोनों भाजपा के करीबी माने जाते थे मगर कानून के प्रकांड विद्वान और भाजपा सांसद वी पी सिंघल ने सीबीआई को इन लोगों की हरकतों के बारे में बता दिया था। इसके बाद भी तायल पार्ट टाइम से बैंक के पूरे चेयरमैंन हो गए। इसमें भी कमाल यह है कि बैंक ऑफ राजस्थान के चेयरमैंन अपनी एक कंपनी के लिए आईडीबीआई बैंक से कर्ज मांगने पहुंचे तो उनके अतीत को देखते हुए कर्ज नहीं दिया गया और इस पूरे मामले की जानकारी रिजर्व बैंक को दी गई फिर भी उस समय के वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा की कृपा थी जिनके सचिव दीपक कुमार ने रिजव बैंक के गर्वनर से बात कर के बैंक वालों को समय दिलवाया।
रिजर्व बैंक के डिप्टी गर्वनर मुनियप्पन और रिजर्व बैंक के ही भूतपूर्व गर्वनर विमल जालान ने ही बैंक ऑफ राजस्थान की हरकतें सामने की थी। अब हाल यह है कि बैंक ऑफ राजस्थान को बचाने के लिए आईसीआईसीआई को खुद कानून के दायरे में फंसना पड़ सकता है। वैसे भी यह बैंक तमाम काूननी झमेलों में फंसा हुआ है।
आभार-डेटलाइन इंडिया
शेयर बाजार ने तो तायल पर पाबंदी लगा दी है कि उन्हें आईसीआईसीआई के जो एक हजार करोड़ के शेयर मिले हैं उन्हें वे बेच नहीं सकते। तायल ने अपनी ही कुछ कंपनियों के जरिए इन शेयरों को बेचने का अदालत से बाहर कोई समझौता करने की अपील की है और तायल गर्व से कहते हैं कि छह करोड़ की बैंक को मैंने पांच सौ करोड़ की बनाया और एचडीएफसी ने पंजाब की छोटी सी सेंचुरियन बैक को खरीदने में ज्यादा पैसा खर्च किया था। आज अपनी और अपने बैंक के कर्मचारियों की दुर्गति के लिए प्रदीप तायल ही जिम्मेदार हैं और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से ले कर भारतीय स्टॉक एक्सचेंज तक ने उन पर पाबंदी यों ही नहीं लगा दी है।
यह कहानी बहुत विचित्र और बहुत हृदय विदारक है। सबसे पुरानी गैर सरकारी बैंकों में से एक बैंक ऑफ राजस्थान 1996 से 1998 के बीच कोलकाता के मारवाड़ी परिवार केशव बांगुर के कब्जे में थी। सीबीआई का इल्जाम है कि बांगुर ने तीन सौ करोड़ रुपए बैंक से ठग लिए। बांगुर को गिरफ्तार किया गया और फिर जमानत मिल गई। मुकदमेंबाजी में फंसे बांगुर ने अपनी बैंक के एक ठीक ठाक खातेदार प्रवीण तायल को बुला कर बैंक का सहायक मालिक बना दिया जिसे कारोबार की भाषा में 'को प्रोमोटर' कहते हैं। अब तो तायल साहब भले ही खुद जमानत पर हाें, मगर तायल ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के मालिक तो हैं ही।
जिस बैंक से 25 करोड़ रुपए कर्ज ले कर उसी के शेयर साढ़े सात करोड़ रुपए में खरीद कर तायल नॉन एक्जीक्यूटिव चेयरमैन बन गए थे और कर्ज दिलवाने वाले बांगुर को बाहर कर दिया था, वे ही पुराने पाप अब तायल के सिर पर चढ़ कर बोल रहे हैं। बीस साल पहले पचास हजार रुपए कर्ज के लिए आवेदन करने वाले तायल ने बैंक के सारे खाते जला डाले, कंप्यूटरों में से हिसाब किताब उड़ा दिया और ढाई हजार करोड़ के मालिक बन बैठे। जमानत पर वे भी है।
जैसे बांगुर ने किया था वैसे ही तायल ने अपनी कंपनियों को बैंक ऑफ राजस्थान से ऐसे कर्ज दिलवाए जो कभी वापस नहीं किए जाने थे। रिजर्व बैंक को तो बैंक की किसी गतिविधि की जानकारी दी ही नहीं गई। हालत यह थी कि बैंक के खाते में बीस करोड़ रुपए आए और निकाल लिए गए मगर आज तक कोई नहीं जानता कि यह धन्ना सेठ कौन था जो यह खेल कर गया। असल में खुद तायल ने ही बताया कि उनकी कृष्णा एक्सपोर्ट इंडस्ट्रीज का यह कारनामा था। इस बीस करोड़ का इस्तेमाल बैंक के ही बेनामी शेयर खरीदने के लिए किया गया। रिजर्व बैंक को भी कोई खास दिलचस्पी तायल के कारनामों का पता लगाने के बारे में नहीं था। शेयर आवंटन में भी लगभग 29 लाख रुपए हजम कर लिए गए।
तायल और बांगुर दोनों भाजपा के करीबी माने जाते थे मगर कानून के प्रकांड विद्वान और भाजपा सांसद वी पी सिंघल ने सीबीआई को इन लोगों की हरकतों के बारे में बता दिया था। इसके बाद भी तायल पार्ट टाइम से बैंक के पूरे चेयरमैंन हो गए। इसमें भी कमाल यह है कि बैंक ऑफ राजस्थान के चेयरमैंन अपनी एक कंपनी के लिए आईडीबीआई बैंक से कर्ज मांगने पहुंचे तो उनके अतीत को देखते हुए कर्ज नहीं दिया गया और इस पूरे मामले की जानकारी रिजर्व बैंक को दी गई फिर भी उस समय के वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा की कृपा थी जिनके सचिव दीपक कुमार ने रिजव बैंक के गर्वनर से बात कर के बैंक वालों को समय दिलवाया।
रिजर्व बैंक के डिप्टी गर्वनर मुनियप्पन और रिजर्व बैंक के ही भूतपूर्व गर्वनर विमल जालान ने ही बैंक ऑफ राजस्थान की हरकतें सामने की थी। अब हाल यह है कि बैंक ऑफ राजस्थान को बचाने के लिए आईसीआईसीआई को खुद कानून के दायरे में फंसना पड़ सकता है। वैसे भी यह बैंक तमाम काूननी झमेलों में फंसा हुआ है।
आभार-डेटलाइन इंडिया