राजा और राडिया को हवालात में कौन लाएगा?


आलोक तोमर 
भारत के सबसे बड़े घोटाले के खलनायक सिद्व होते जा रहे संचार मंत्री ए राजा के पास अब एक सप्ताह भी नहीं बचा है। राजा ने देश को जो सवा लाख करोड़ रुपए का चूना लगाया है उस पर सीएजी की रिपोर्ट संसद में रखी जानी है और उसके बाद राजा के लिए बचाव का कोई रास्ता नहीं बचता दिख रहा है।

लेकिन फिलहाल कोरिया में बैठे हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने मंत्रियों और कांग्रेस के प्रवक्ताओं से कहा है कि राजा के बारे में कोई बयान नहीं दे। राजा का फैसला उनकी पार्टी के अध्यक्ष करुणानिधि करेंगे। अगर ऐसा है तो करुणानिधि ही देश के प्रधानमंत्री क्यों नहीं है। वे मनमोहन सिंह से ज्यादा पढ़े लिखे और फिल्मों से ले कर राजनीति तक नाम कमा चुके नेता हैं। जहां तक राजा की बात है तो आज कल आप मोबाइल पर डाकमो नाम की सेवा का बहुत विज्ञापन देख रहे होंगे।

दस रुपए महीने दीजिए और इंटरनेट की एक सेवा प्राप्त कीजिए। डाकमो इतना बड़ा कमाल इसलिए कर पा रहा है क्योंकि एक तो टाटा की ताकत उसके पीछे हैं और टाटा के पीछे नीरा राडिया नाम की दलाल के जरिए राजा की ताकत है। डाकमो थ्री जी सर्विस है और राजा जिन दिनों टू जी की दलाली खाने में लगे हुए थे उन्हीं दिनों उन्होंने प्रचार भी करवाया था कि थ्री जी सेवाएं भारत जैसे गरीब देश के लिए बहुत महंगी पड़ेगी। डाकमो थ्री जी के जरिए ही आधे पैसे से कुछ ही ज्यादा में एक मिनट बात करवाता है।

सीएजी की रिपोर्ट में साफ लिखा है कि टू जी सेवाए 1658 करोड़ में बेची गई और थ्री जी सेवाए 16750 करोड़ में बेचने के बावजूद उपभोक्ताओं को सस्ती उपलब्ध हो रही हैं तो कहीं न कहीं, कोई न कोई खेल जरूर है। राजा ने प्रधानमंत्री की सलाह नहीं सुनी। दूर संचार नियामक प्राधिकरण की सलाह नहीं सुनी और अपनी आत्मा की सलाह भी नहीं सुनी। अभी सीबीआई के पास राजा के बारे में बहुत सारी सत्य कथाएं हैं। मुंबई में गोवा के पोस्टमास्टर जनरल एमएस बाली को दो करोड़ रुपए देते हुए पकड़े जाने वाला अरुण डालमिया भी राजा का दलाल है।

डालमिया ने दो स्विस खातों के बारे में बताया है और यह भी कहा है कि चीन की जिस संचार कंपनी के लिए वह दलाली करता था उसके लिए राजा ने बीएसएनएल की लाइने सुरक्षा जांच के बगैर दे देने का वायदा कर दिया था। इसके लिए दिल्ली, चेन्नई, सिंगापुर, दुबई, मलेशिया, स्विटजरलैंड और पनामा में मोटी रकमें जमा की गई। माओवादी चीन भी रिश्वत खिलाने में यकीन रखता है। जिस रिश्वत कांड में डालमिया पकड़ा गया था उसके लिए दलाली राजा के निजी सचिव आर के चंदोलिया ने की थी।

सीबीआई ने जांच में जब इन दोनों मामलों को जोड़ना चाहा तो सीबीआई को पता नहीं कहां से आदेश मिले कि दोनाें मामले अलग अलग रखे जाए। पायनियर अखबार में सारे विवरण छपे मगर पायनियर को भाजपा समर्थक अखबार माना जाता है इस बहाने सब कुछ टाल दिया गया। ज्यादातर टीवी चैनल और अखबारों को भी मैनेज कर लिया गया। मैनेज करने में नीरा राडिया का सीधे हाथ था और इसके अब तो टेप रिकॉर्ड किए गए प्रमाण मिल चुके है।

नीरा राडिया को भारत छोड़ने की इस तूफानी समय में अनुमति कैसे मिली? जब आप राजा देंगे जिन्होंने चिदंबरम से निजी अनुरोध कर के कई नाम एक साथ दिए थे और उन्हें विदेश जाने की अनुमति देने का अनुरोध किया था। नीरा राडिया के हर पार्टी में दोस्त हैं, कांग्रेस में कम हैं लेकिन भाजपा में अनंत कुमार उनके बहुत अंतरंग हुआ करते थे और राजा तो राडिया के साथ विदेश में एक छुट्टी भी मना चुके हैं। सीबीआई ने अक्टूबर 2009 में छापा मार कर राडिया के कर्मों के बारे में पता लगाया था और इसके बाद भी उनका फोन टेप हुआ था।

जब टेप सुने गए तो लोगों के होश उड़ गए। एक जमाने में दुनिया के सबसे युवा संपादक होने का तमगा लेने वाले और अब टीवी और अखबारों में दुनिया भर की सैर कर के लिखने वाले वीर सांघवी का नाम भी दलालों की सूची में था और अधेड़ हो चुकी मगर बच्चों की तरह इठला कर बात करने वाली बरखा दत्त भी इस सूची में शामिल थी। इन दोनों की तरफ से कोई खंडन नहीं आया है क्योंकि कई मामलाें में खामोश रहना ही ठीक होता है। बरखा और वीर पर तो इल्जाम था कि उन्होंने राजा को वजीर बनाने में अपने संपर्कों का जम कर इस्तेमाल किया था। वैसे भी बरखा का टीवी चैनल इस घोटाले के बारे में ज्यादा नहीं लिख रहा था। और तो और राजा को यह राडिया से ही पता लग रहा था कि वे मंत्री बन रहे हैं या नहीं। एम जे अकबर के संपर्कों से ही इस टेप रिकॉर्डिंग का खुलासा हेडलाइन टुडे पर हुआ था और शायद इसीलिए अकबर आज हेडलाइन टुडे के बॉस बन कर बैठे हुए हैं।

बोफोर्स पर बड़ा हंगामा हुआ लेकिन वह सिर्फ 64 करोड़ रुपए की दलाली का खेल था। यहां तो टू जी आवंटन घोटाले में लाखों करोड़ का जो खेल हो रहा था उसमें करुणानिधि को भी हिस्सा चाहिए था और कांग्रेस को परवाह नहीं थी कि तमिलनाडु के एक कस्बे का पिटा हुआ वकील लाखों करोड़ रुपए कमा रहा है और पूरे देश का एक साल का खाद्य सुरक्षा बजट साठ हजार करोड़ रुपए है।

इस सवाल का जवाब तो खैर कौन देगा कि आखिर लॉबी करने वाले दलालों को कैसे वे सारी जानकारियां मिल जाती हैं जो लोकतांत्रिक और तंत्र से जुड़े संगठनों को नहीं मिलती। राजा को उनके सांसद और मंत्री वाले कमरे से निकाल कर हवालात में डाल कर सवाल पूछने की हिम्मत चाहिए। मगर ऐसे में यूपीए की करुणानिधि के समर्थन से चल रही सरकार अगर दिवंगत भी हो जाती है तो उस हालत को झेलने का कलेजा भी चाहिए। 

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