भारत से धंधा, पाक को चंदा

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भारत से धंधा, पाक को चंदा
अमेरिका राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपना तीन दिवसीय दौरा पूरा कर लिया. मुंबई उतरकर दिल्ली दरबार तक उनकी दस्तक भारत पर अमेरिका के मजबूत पकड़ की मिसाल बन गया. निश्चित रूप से उनका दौरा भारत के लिए उतना महत्वपूर्ण नहीं जितना खुद अमेरिका के लिए है. मंदी के दौर से जूझ रहे अमेरिका को "कारपोरेट" जगत का धंधा दिलाने के लिए उन्होंने न केवल भारत को महाशक्ति करार दे दिया बल्कि सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता का समर्थन भी कर दिया.
निश्चित तौर पर अमेरिकी रणनीतिकर दुनिया के हर छठे आदमी की शक्ति को सीधे नकार नहीं सकते हैं. इसलिए मसीहा बन एक अरब लोगों को अपने इशारे पर नचाने में ही अपना हित देखते हैं. ओबामा भारत दौरे पर आते हैं तो गांधी का गाना भले ही गाते हैं लेकिन पाकिस्तान को कोसने की बजाय पोसने का का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है कि ओबामा ने केवल पाकिस्तान को पोसने तक ही अपने आपको सीमित रखा है. बतौर राष्ट्रपति ओबामा के लिए अपने देश अमेरिका में भी परिस्थितियां इतनी अनुकूल नहीं हैं. भारत के इस दौरे से उनके अपने लिए परिस्थितियां अनुकूल हों इसलिए उन्होंने भारतीय उद्योगजगत को सम्मान का तमगा दिखाकर अमेरिकी लोगों के लिए निवेश और पचास हजार नौकरियां निकाल लीं. हैदराबाद हाउस में संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा भी उनसे अमेरिकी नागरिक पूछेंगे कि एशिया दौरे का क्या तुक है तो वे कहेगे कि देखो हमने तुम्हारे लिए पचास हजार नौकरियां पैदा कर दी हैं. मंदी की मार से कराहते अमेरिका के लिए कोई महाशक्ति पचास हजार नौकरियां पैदा कर दे तो भला अमेरिकी जनता ओबामा से क्यों नाराज होगी?
ऐसा नहीं है कि ओबामा ऐसे पहले राष्ट्रपति हैं जो अपनी छवि चमकाने के लिए भारतीय दौरे का इस्तेमाल कर रहे हों. इससे पहले जार्ज बुश जूनियर और उनसे भी पहले बिल क्रिलंट अपने अपने भारतीय दौरों में अमेरिका जनता की सहानुभूति जुटा चुके हैं. याद करिए जब विलियम क्लिंटन भारत के दौरे पर आये थे उस समय अपने ही स्टाफ की एक जूनियर असिस्टेन्ट के साथ यौन संबंधों को लेकर अमेरिका सहित पूरी दुनिया की बदनामी झेल रहे थे. अमेरिकी संसद उनके ऊपर महाभियोग चला रही थी. ऐसे ही वक्त में बिल क्लिंटन भारत आते हैं और ताजमहल पर शाहजहां के बुत के सामने खड़े होकर पत्नी हिलेरी के साथ प्रेम का प्रमाणपत्र पा लेते हैं. क्लिंटन भारत में इतने लोकप्रिय हुए कि आज भी कोई न कोई ऐसा भारतीय मिल जाएगा जो अमेरिकी राष्ट्रपति का नाम पूछने पर बिल क्लिंटन का नाम ले लेगा. लेकिन खुद अमेरिका ने डेमोक्रेटिक क्लिंटन को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया और एक ऐसे आदमी को सत्ता सौंप दी जिसकी तुलना भारतीय राजनीतिज्ञ लालू प्रसाद से की जा सकती है. इस अमेरिकी लालू जार्ज बुश के कार्यकाल में अमेरिका में 9/11 होता है और यह अमेरिकी लालू जस्टिस के लिए पूरी दुनिया में आतंकवाद के खिलाफ जंग छेड़ देता है. यह जंग इराक से लेकर अफगानिस्तान तक लड़ी जाती है. तब तक भी बुश को भारत की हैसियत का अंदाज नहीं था. जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने बुश के सामने अफगानिस्तान में तालिबान से लड़ाई में अपने सहयोग की पेशकश की तब बुश को महसूस हुआ कि अफगानिस्तान के पड़ोस में कोई भारत नामक देश भी है. 2006 में जब बुश भारत के दौरे पर आये थे ठीक उसके पहले मध्यावधि चुनाव में रिपब्लिकन की वहां भारी हार हुई थी. संयोग देखिए कि जब जार्ज डब्लू बुश भारत आये तो वे भी अपनी अलोकप्रियता के शिखर पर थे. हिन्दुस्तान को महाशक्ति बनाने का तमगा दिखाकर उन्होंने अपने देश के परमाणु बिजली संयत्र बनानेवाली कंपनियों के लिए भारत में परमाणु उर्जा विधेयक को संसद द्वारा पास करने के लिए भारतीय प्रशासन का इस्तेमाल कर लिया.
पिछले नौ सालों में अमेरिकी प्रशासन भले ही भारत को बाजार के बतौर इस्तेमाल करता रहा हो लेकिन इस समय अवधि में उसने पाकिस्तान पर धन न्यौछावर किया है. इन नौ वर्षों में अमेरिका पाकिस्तान को 18 अरब डॉलर दे चुका है. क्या ओबामा यह बताएंगे कि इतनी बड़ी रकम भी पाकिस्तान को अब तक शांत, स्थिर और समृद्ध बनाने में नाकाफी क्यों रही है? भारत से अमेरिका का जो व्यापार है वह सालाना 41 अरब डॉलर का है. इसमें भारत क्या कमाता होगा जबकि पाकिस्तान बिना कुछ किये ही जमकर कमा रहा है. ऐसी स्थिति में भारतीय जनमानस ओबामा को अपना मामा बनाने पर क्यों तुला हुआ है?
अब बराक ओबामा को देखिए. बराक ओबामा जिस डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य हैं उस पार्टी का रुख हमेशा से पाक परस्त रहा है. बराक ओबामा की अमेरिका और दुनिया में लोकप्रियता का प्रमुख कारण उनका युद्ध विरोधी रुख रहा है. बराक ओबामा भारत में खूब लोकप्रिय हुए हैं लेकिन खुद बराक ओबामा ने अपने कार्यकाल में अब तक भारत की बजाय पाकिस्तान को ही महत्व दिया है. चुनाव प्रचार के दौरान हनुमान को साथ रखनेवाले ओबामा जैसे ही राष्ट्रपति बनते हैं अफ-पाक नीति की घोषणा करके भारत को अफगानिस्तान से बाहर करने की योजनाओं को लागू करवाना शुरू कर देते हैं. यह अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा का ही कार्यकाल है जब पाकिस्तान ने न केवल काबुल स्थित भारतीय दूतावास को निशाना बनाया बल्कि मुंबई पर आतंकी हमला भी करवाता है. अब यह साफ हो चुका है कि अमेरिकी खुफिया एजंसियों को पहले से इस बात की जानकारी थी कि मुंबई पर लश्कर के आतंकी हमला करनेवाले हैं लेकिन ओबामा प्रशासन ने उसे रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया. हां, यह बात सही है कि इस बार एशिया दौरे में डेमोक्रेट ओबामा ने पाकिस्तान को शामिल नहीं किया लेकिन भारत में उन्होंने न केवल पाकिस्तान परस्त बयान दिये बल्कि अप्रत्यक्ष तौर पर कश्मीर पर पाक से वार्ता के लिए भारत पर दबाव भी बना दिया.
ओबामा भारतीय संसद में भले ही यह बोल देते हों कि वे भारत से अभिभूत हैं और भारत एक विश्व शक्ति बन चुका है लेकिन यही ओबामा जब राष्ट्रपति बनते हैं दुनिया के कई ताकतवर देशों के राष्ट्राध्यक्षों से टेलीफोन पर बात करते हैं, लेकिन उन ताकतवर राष्ट्रों में भारत का नाम नदारद होता है. भारत की जमीन पर आकर वे स्थिर, समृद्ध और शांत पाकिस्तान की कल्पना करते हैं तो निश्चित तौर पर वे पाकिस्तान को भारत का भय दिखाते हैं. पाकिस्तान को दिखाया गया यह भारत विरोधी भय पाकिस्तान को अमेरिका के और करीब ला देता है ताकि अमेरिका पाकिस्तान में अपनी द्रोन मिसाइलों का हमला जारी रख सके. ओबामा भले ही गांधी की दुहाई दे रहे हैं लेकिन असल में वे अमेरिका के लिए भारतीय बाजार खोलने और भारतीय पूंजी का अधिक से अधिक अमेरिका में प्रवाह चाहते हैं. क्या गांधी ऐसी किसी विश्व व्यवस्था के पक्ष में होते जिसमें भारतीय पूंजी और बाजार दोनों ही किसी दूसरे देश की समृद्धि के लिए इस्तेमाल होती हो? वह भी उस देश के लिए जो सैन्य सहायता के नाम पर पाकिस्तान को 2 अरब डॉलर का चेक काटकर आ रहा हो? पिछले नौ सालों में अमेरिकी प्रशासन भले ही भारत को बाजार के बतौर इस्तेमाल करता रहा हो लेकिन इस समय अवधि में उसने पाकिस्तान पर धन न्यौछावर किया है. इन नौ वर्षों में अमेरिका पाकिस्तान को 18 अरब डॉलर दे चुका है. क्या ओबामा यह बताएंगे कि इतनी बड़ी रकम भी पाकिस्तान को अब तक शांत, स्थिर और समृद्ध बनाने में नाकाफी क्यों रही है? भारत से अमेरिका का जो व्यापार है वह सालाना 41 अरब डॉलर का है. इसमें भारत क्या कमाता होगा जबकि पाकिस्तान बिना कुछ किये ही जमकर कमा रहा है. ऐसी स्थिति में भारतीय जनमानस ओबामा को अपना मामा बनाने पर क्यों तुला हुआ है?