जनसंख्‍या विस्‍फोट: पानी नसीब नहीं होगा और ताउम्र कर्ज में डूबे रहेंगे

 नई दिल्‍ली:भारत में आबादी बढ़ने की मौजूदा रफ्तार जारी रही तो 15 साल में ही 37 करोड़ और लोग देश के नागरिक होंगे। ऐसे में लोगों को पानी तक नसीब नहीं होगा और वे जिंदगी भर कर्ज में डूबे रहेंगे। केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन (सीएसओ) के अनुमान के मुताबिक फिलहाल हाल यह है कि 115.4 करोड़ की आबादी में से प्रत्‍येक पर करीब 38,000 रुपये का कर्ज है।, यह औसत भारतीय के दस महीने की तनख्‍वाह के बराबर है। मात्र सात साल पहले (2003-04) यह रकम महज 19,500 रुपये थी।जाहिर है, भारत में हर बच्‍चा गर्भ में कर्ज के साथ ही पलता है और मरते वक्‍त तक वह कर्ज से मुक्‍त नहीं हो सकता।बढ़ती जनसंख्‍या के साथ कर्ज का बोझ भी लगातार बढ़ रहा है। बढ़ते कर्ज के साथ उपलब्‍ध संसाधनों की बढ़ती किल्‍लत से स्थिति और भयावह होने वाली है। पानी जैसी मूलभूत जरूरत की बात करें तो भारत में ताजा पानी की उपलब्‍धता 1955 में 5277 क्‍यूबिक मीटर प्रति व्‍यक्ति के हिसाब से थी, जो 1990 में घट कर 2,464 क्‍यूबिक मीटर रह गई। आबादी बढ़ने की मौजूदा रफ्तार को देखते हुए 2020 में पानी की उपलब्‍धता प्रति व्‍यक्ति 1000 क्‍यूबिक मीटर से भी कम रह जाने का अनुमान है।स्‍वीडन के इंटरनेशनल वाटर इंस्‍टीट्यूट में प्रोफेसर एम. फाल्‍केनमार्क के मुताबिक हर आदमी को रोज मर्रा के बुनियादी काम के लिए रोज कम से कम 100 लीटर (36.5 क्‍यूबिक मीटर सालाना) पानी चाहिए। भारत के करीब 40 फीसदी घरों में तो अभी ही पीने के साफ पानी का इंतजाम नहीं है।
जंगल कटेंगे, ज़मीन घटेगी: बढ़ती हुई जनसंख्या का असर सिर्फ पानी पर नहीं पड़ेगा बल्कि हमारे प्राकृतिक संसाधनों पर भी इसका सीधा प्रभाव पड़ेगा। दुनिया की करीब 16 फीसदी आबादी भारत में रहती है। जबकि दुनिया की करीब 2.4 फीसदी ज़मीन भारत के हिस्से में है और दुनिया भर में फैले जंगलों का 1.7 फीसदी भारत में है। जाहिर है बढ़ती आबादी का सीधा असर ज़मीन की मांग पर पड़ेगा। इस मांग को पूरा करने के लिए या तो खेती की ज़मीन का रिहायशी मकान बनाने के लिए इस्तेमाल होगा या फिर जंगलों को काटा जाएगा। भारत में यह अंधाधुंध कटाई जारी है, जिसका सीधा असर पर्यावरण पर पड़ रहा है।
बढ़ी आबादी का असर खाने पर: बढ़ती आबादी का प्रभाव लाइवस्टॉक प्रॉडक्ट (दूध, अंडा, मांस) की मांग पर पडे़गा। बढ़ती आबादी की वजह से तेजी से शहरीकरण होगा जिसका सीधा असर लोगों की खाने-पीने की आदत पर पड़ेगा। जानकारों का मानना है कि जनसंख्या बढ़ने के साथ ही शहरी आबादी बढ़ेगी और दूध, अंडे और मांस की मांग भी बढ़ेगी।
दुनिया के दस सबसे बड़े कर्जदार देश और उनकी आबादी
देश कर्ज (जीडीपी का प्रतिशत, साल 2009) जनसंख्‍या (2009)
जिंबाब्‍वे 282.60 12,521,000
जापान 189.30 127,420,000
ट किट्स एंड नेविस 185.00 42,696 (2005)
लेबनान 156.00 4,224,000
जमैका 124.50 2,847,232 (2010)
इटली 115.20 60,231,214
ग्रीस 113.40 11,306,183 (2010)
सिंगापुर 113.10 4,987,600
आइसलैंड 107.60 317,593
सूडान 103.70 42,272,000
कुछ अन्‍य देश
भारत 58.00 1,184,302,000 (2010)
चीन 16.90 1,338,612,968 (2010)
बांग्‍लादेश 38.80 162,221,000 (2009)
पाकिस्‍तान 46.20 170,192,000 (2010)
अमेरिका 52.90 309,905,000 (2010

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