फ्री लैपटॉप: फिल्मी गाने और एमएमएस से होती है इनकी कमाई!
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लखनऊ. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से मात्र ढाई घंटे की दूरी पर है राहुल गांधी
का संसदीय क्षेत्र अमेठी. हम इस बार अमेठी किसी और मक़सद से पहुंचे थे
क्योंकि हमें सूचना मिली थी एक परिवार के बारे में जिसे कुछ महीने पहले
प्रदेश सरकार से एक मुफ्त लैपटॉप मिला था.
साल 2012 के विधान सभा चुनावों से पहले समाजवादी पार्टी ने ऐलान किया
था, अगर सत्ता में आए, तो इन्टरमीडिएट पास करने वाले स्कूली बच्चों को
मुफ्त लैपटॉप बांटेंगे. अमेठी में क़रीब चार महीने पहले एक स्कूल में 17
लैपटॉप बांटे गए.इनमें से एक किशोर कुमार (नाम बदला हुआ) हैं जो बहुत मनाने पर भी हमसे बात करने को राज़ी नहीं हुए. लेकिन उनके बड़े भाई संजय कुमार (नाम बदला हुआ) माइक्रोफ़ोन पर बात करने के लिए राज़ी हुए.
'दुकान पर'
संजय हमें अपने घर ले गए और चाय-नाश्ते की पेशकश भी की. सपा सरकार ने लैपटॉप के अलावा टैबलेट बांटने का भी वादा कर रखा है. मैंने पूछा, " लैपटॉप तो दिखाइए".
जवाब मिलता है, "17 लैपटॉप जो बंटे थे उनमें से अब सिर्फ हमारे परिवार का ही चलती हालत में है. लेकिन अभी वो दुकान में रखा हुआ है".
हैरानी के साथ मैंने पूछा, "दुकान में उसका क्या काम".
जवाब मिलता है, "बताना तो नहीं चाहिए, लेकिन आपको बता रहा हूँ कि लैपटॉप पर हम गाने और एमएमएस डाउनलोड करते हैं. इन्हे फिर एक रुपए और डेढ़ रुपए में बेच देते हैं. हमारे लिए इसका यही उपयोग है".
संजय से पता करने की कोशिश भी की, कि क्या उन्हें इस बात का आभास है कि सरकार से मिले मुफ्त लैपटॉप का व्यावसायिक प्रयोग एक दण्डनीय अपराध है.
उन्होंने कहा, "मैं तो उत्तर प्रदेश के सभी लोगों को बताना चाहता हूँ कि इस लैपटॉप का छात्रों के लिए कोई सार्थक इस्तेमाल नहीं हैं. इसका फ़ायदा उठाएं. मेरे लिए जिस दिन इसका उपयोग ख़त्म होगा मैं भी इसे फ़ेंक दूंगा".
नाराज़गी
संजय से मिलने के बाद हमारी बात उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री अभिषेक मिश्रा से हुई.
तहलका टुडे ने बिना ऐसे लोगों का नाम-पता बताए, अभिषेक मिश्रा को इन गतिविधियों से अवगत कराते हुए उनका पक्ष पूछा.
उन्होंने कहा, "मैं मानता हूँ कि कुछ लोगों के अपने-अपने प्रलोभन रहे होंगे, जिसके चलते उन्होंने मुफ्त मिले लैपटॉप का दुरूपयोग किया होगा. हमने अख़बारों में इश्तेहार भी निकलवाए हैं लोगों को ऐसा न करने की सलाह देते हुए. जो भी मामले सामने आए हैं उन पर कार्रवार्ई हुई है और आगे भी होगी".
लगभग चार दिनों तक उत्तर प्रदेश का दौरा करने के बाद मुझे इस बात का आभास भी हुआ कि शायद ही कोई ऐसा ज़िला बचा हो जहाँ कुछ स्कूली बच्चों को मुफ्त में लैपटॉप नहीं बांटे गए होंगे.
लेकिन लगभग 15 लाख लैपटॉप बंटने के बाद भी एक बात का जवाब न तो सरकार से मिल पा रहा है और न ही स्कूलों के प्रशासन से.
क्या मुफ्त में इतने महंगे लैपटॉप बांटने के पहले इस बात का पूरा पता लगाया गया था कि कौन असल में ज़रूरतमंद हैं और किनके लिए इनकी उपयोगिता न के बराबर है?