क्या ब्लैकमेलर हैं अन्ना हजारे?

नीरेंद्र नागर
एक पत्रकार साथी से बातचीत हो रही थी। उसने अन्ना हजारे और उनके साथियों का नाम लिए बगैर कहा कि एक तबका खुद को लोकतंत्र और संसद से ऊपर साबित करने में लगा है और सरकार को ब्लैकमेल कर रहा है।
मैंने उसकी बात काटते हुए कहा कि आखिर ब्लैकमेल का मतलब क्या है? ब्लैकमेल का मतलब है किसी को धमकी देना कि अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी तो मैं ऐसा कोई काम करूंगा जिससे तुम्हारा नुकसान हो। जैसे कोई पुराना प्रेमी किसी शादीशुदा महिला से कहे कि मुझे इतने पैसे दो या मैं जैसे कहूं वैसा करो वरना मैं हमारे रिश्तों के बारे में तुम्हारे पति को बता दूंगा। या कोई कर्मचारी अपने मालिक से कहे कि मुझे इतने पैसे दो नहीं तो मैं तुम्हारी टैक्सचोरी का राज़ इनकम टैक्स विभाग को बता दूंगा। या केंद्र में आसीन सरकार किसी मुलायम या मायावती से कहे कि हमारा सपोर्ट करो वरना तुम्हारे खिलाफ सीबीआई की जांच बिठवा देंगे।
 इन सारे मामलों में एक बात कॉमन है – ब्लैकमेलर जो मांग कर रहा है, उसमें उसका निजी फायदा है और जिस बात की धमकी दे रहा है, उस पर अगर अमल किया जाए तो उसमें दूसरे पक्ष का नुकसान है। ऊपर के तीनों उदाहरण फिर से पढ़िए। साफ-साफ है कि ब्लैकमेलिंग का मतलब है ऐसी धमकी जिसमें ब्लैकमेलर अपने लिए कुछ फायदे की मांग कर रहा है और उसके पूरे न होने पर ब्लैकमेल्ड व्यक्ति को नुकसान का भय दिखा रहा है।
 अब अन्ना हजारे का मामला लें। वह कह रहे हैं कि हमारे सुझावों के अनुरूप लोकपाल बिल लाओ वरना मैं 16 अगस्त से आमरण अनशन पर बैठूंगा।
 अब ब्लैकमेलिंग की परिभाषा के मुताबिक तो होना यह चाहिए कि कथित ब्लैकमेलर यानी अन्ना कोई ऐसी मांग कर रहे हों जिसमें उनका अपना कोई फायदा हो।  आखिर क्या मांग है अन्ना की? यही कि एक ऐसा लोकपाल बिल पारित करो जो न सिर्फ प्रधानमंत्री समेत सभी बड़े पदों पर आसीन लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की फटाफट जांच कर सके बल्कि निचले लेवल के सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार के आरोपों की भी जांच कर सके।
 अब बताइए, अगर ऐसा हो जाता है तो इसमें पर्सनली अन्ना हजारे या उनके साथियों का क्या फायदा है? अगर सरकारी तंत्र में बैठे लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच होती है तो इससे अन्ना का कौनसा निजी हित सध जाएगा? ध्यान में देने की बात यह है कि वे चुनाव भी नहीं लड़ रहे कि कोई कहे, यह सब चुनाव जीतने के लिए किया जा रहा है जैसा कि बाबा रामदेव के मामले में कहा जा रहा है।

एक छोटा से छोटा बच्चा और अनपढ़ से अनपढ़ इंसान भी बता सकता है कि ऐसा बिल आएगा तो उससे अन्ना का नहीं, आम जनता का फायदा होगा जो कि सरकारी भ्रष्ट तंत्र में पिस रही है, जहां उचित काम के लिए भी भेंट चढ़ानी पड़ती है। ऐसा बिल आएगा तो ईमानदार लोगों को फायदा होगा और भ्रष्ट लोगों का नुकसान होगा।
 यानी परिभाषा के पहले हिस्से से तो साबित हुआ कि इस मामले में लोकपाल बिल की डिमांड करनेवाले अन्ना हजारे का कोई फायदा नहीं है और इसलिए वह ब्लैकमेलर नहीं हैं।
 अब ब्लैकमेलिंग की परिभाषा के दूसरे भाग में आएं। इसके अनुसार ब्लैकमेलर धमकी देता है कि अगर उसकी मांग नहीं मानी गई तो वह कुछ ऐसा करेगा जिससे दूसरे पक्ष का नुकसान हो। हमने ऊपर उदाहरण दिए ही हैं।
 फिर से अन्ना के मामले की पड़ताल करते हैं। वह कह रहे हैं कि सही बिल नहीं लाया गया तो मैं 16 अगस्त से आमरण अनशन पर बैठ जाऊंगा। अब बताइए, यह बात कहकर वह सरकार का कौनसा नुकसान करने की धमकी दे रहे है? वह यह तो नहीं कह रहे कि मैं संसद को आग लगा दूंगा, वह यह भी नहीं कह रहे कि मैं सारे मंत्रियों की जान ले लूंगा, वह यह भी नहीं कह रहे कि सारे मंत्रियों का खाना-पीना और चलना-फिरना हराम करवा दूंगा। वह तो यह कह रहे हैं कि मैं खुद खाना-पीना छोड़ दूंगा। इस खाना-पीना छोड़ देने से तो उन्हीं का नुकसान होगा। अगर कहीं उन्हें कुछ हो गया तो भी उन्हीं की जान जाएगी।
 यानी यह भी साबित नहीं हुआ कि वह कोई ऐसी धमकी दे रहे हैं जिससे दूसरे पक्ष का नुकसान करने की बात कही गई हो। उल्टे वह तो अपना नुकसान करने की बात कह रहे हैं।
 यह अपना नुकसान करके दूसरे से अपनी बात मनवाना एक गांधीवादी तरीका है। एक अहिंसक तरीका है किसी जिद्दी व्यक्ति या संस्था की आत्मा को झकझोरने का। जब अपनी ताकत पर मगरूर संस्थाएं कुछ भी सुनने को तैयार नहीं होतीं, तब ऐसे हथियार का सहारा लिया जाता है। यह हथियार काम भी करता है लेकिन उन्हीं पर जिनके अंदर आत्मा हो। अगर ताकत के नशे में आत्मा ही मर चुकी हो तो क्या वहां यह हथियार काम करेगा? पता नहीं। बाबा रामदेव के मामले में हम देख चुके हैं इस सरकार का निरंकुश रूप।
 महात्मा गांधी से सोनिया गांधी के बीच में कई साल गुजर गए हैं। इस बीच गंगा-यमुना में काफी पानी बह गया है और कांग्रेस के नेताओं के खातों में अरबों-खरबों का वारा-न्यारा हो चुका है। महात्मा गांधी की तस्वीरें तो केवल दिखावे के लिए पार्टी के और मंत्रियों-अधिकारियों के दफ्तरों में लगाई जाती हैं। उनकी असली रुचि तो उस गांधी में है जो नोटों पर छपे होते हैं। बाकी गांधी और गांधीवादी जाएं जहन्नुम में।
 इसीलिए कोई हैरत नहीं कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार और उसके मंत्रियों और नेताओं को आज गांधी जी के ही तरीकों से आपत्ति हो रही है और वे उन तरीकों को अपनानेवाले व्यक्ति को ब्लैकमेलर बता रहे हैं।
 कोई इनसे पूछे कि अगर अन्ना हजारे ब्लैकमेलर हैं तब तो गांधी जी !

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