बहरैन में शीया-सुन्नी का झगड़ा नहीं -अली ख़ामेनेई

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जब किसी देश की राजनैतिक व्यवस्था, अमरीका और ज़ायोनी शासन से भय के कारण अपने राष्ट्रों के हितों को पैरों तले रौंदती है और अपने राष्ट्रीय गौरव को कुचल देती है तो जनता अपनी सरकार के मुक़ाबले में उठ खड़ी होती है ताकि अपनी मानवीय प्रतिष्ठा और गौरव को पुनर्जीवित करे। ये वही घटनाएं हैं जो वर्तमान समय में मिस्र, लीबिया, ट्यूनीशिया, बहरैन और यमन जैसे देशों में घट रही हैं। वरिष्ठ नेता ने मिस्री जनता की क्रांति का मुख्य कारण, अत्याचारी इस्राईल के साथ हुस्नी मुबारक का व्यापक सहयोग बताया और कहा कि यदि ग़ज़्ज़ा के परिवेष्टन के मामले में हुस्नी मुबारक इस्राईल से सहयोग न करते तो इस्राईल इस प्रकार से ग़ज़्ज़ा पर दबाव नहीं डाल सकता था और इस प्रकार से अपराध नहीं कर सकता था। इस्राईल की सहायता के लिए हुस्नी मुबारक मैदान में आये और उन्होंने मिस्र से ग़ज़्ज़ा जाने वाले मार्ग को बंद कर दिया। उसके बाद उन्हें इस बात की सूचना मिली कि ग़ज़्ज़ा की जनता ने भूमिगत सुरंगे खोदी है, ग़ज़्ज़ा की अत्याचारग्रस्त जनता फिर यह कार्य न कर सके इसके लिए उन्होंने तीस मीटर ऊंची स्पात की दीवार बना दी और इन दीवारों को ज़मीन के भीतर भी ले गये ताकि सुरंग बनाने के मार्ग को बंद कर दिया जाए। यह कार्य हुस्नी मुबारक ने किए थे, मिस्री जनता के गर्व को आघात पहुंचा। इस प्रकार के उदाहरण दूसरे देशों में भी पाये जाते हैं।
वरिष्ठ नेता के अनुसार, मंच पर जनता की उपस्थिति और जनक्रांतियों का धार्मिक झुकाव, क्षेत्रीय परिवर्तनों की मुख्य विशेषताओं में से है। शुक्रवार की नमाज़ और जमाअत व सामूहिक रूप में लोगों की उपस्थिति, अल्लाहो अकबर के नारे और धर्मगुरूओं के नेतृत्व पर ध्यान देने जैसी बातों से इन क्रांतियों का इस्लामी होना स्पष्ट हो गया है किन्तु अमरीकी राजनेताओं ने इन देशों की जनता को न पहचान पाने और क्षेत्र की घटनाओं का सही विश्लेषण न कर पाने के कारण आरंभ से ही विरोधाभासी नीतियां अपनाई हैं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता जनक्रांतियों के संबंध में अमरीकी नीतियों की समीक्षा करते हुए कहते हैं कि इन देशों और दूसरे देशों में अमरीका का जो व्यवहार दिखायी दिया वह तानाशाहों का समर्थन रहा है, अंतिम क्षणों तक जितना संभव था उन्होंने हुस्नी मुबारक का समर्थन किया, जब देखा कि अब कुछ नहीं हो सकता तो उसे दूध की मक्खी की भांति निकाल कर फेंक दिया। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि अमरीका और पश्चिमी देशों के साथ जो कुछ हुआ वह वास्तव में असहनीय था और है। अमरीका की मध्यपूर्व की रणनीति के लिए मिस्र एक महत्त्वपूर्ण आधार है, वे इस नीति पर बहुत निर्भर थे। अमरीकियों ने प्रयास किया कि अब जब ट्यूनीशिया में बिन अली और मिस्र में हुस्नी मुबारक से हाथ धो चुके हैं तो शायद इन देशों में पूर्व व्यवस्था का बुनियादी ढांचा बाक़ी रख सकें। लोग परिवर्तित हो जाएं किन्तु ढांचा वही रहे। इसीलिए उन्होंने बड़े जतन किए और बहुत ज़ोर लगाया कि इन देशों में कम से कम उन पर निर्भर एक प्रधानमंत्री बाक़ी रहे किन्तु राष्ट्रों ने आंदोलन जारी रखा और उन्होंने इस षड्यंत्र को भी विफल बना दिया और इन सरकारों को भी गिरा दिया। ईश्वर की कृपा से ईश्वर की शक्ति से क्षेत्र में अमरीका की पराजय का यह क्रम जारी रहेगा।
वरिष्ठ नेता का मानना है कि जब अमरीकियों ने यह देखा कि मिस्र और ट्यूनीशिया में उन के मोहरे बुरी तरह पिट गये तब उन्होंने दो नई चालें चलीं। एक अवसरवाद और दूसरी, परिस्थितियों को समान दर्शाना। अमरीकियों ने आरंभ में अवसरवाद की चाल से मिस्र और ट्यूनीशिया की क्रांतियों को हाईजैक करने का पूरा प्रयास किया, अपने इस अशुभ लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने जनता के प्रति सहृदयता व्यक्त की किन्तु जनता की जागरूकता और समझदारी के कारण अमरीका की धूर्ततापूर्ण नीतियां एक बार फिर विफल हुईं।
अमरीकी अवसरवाद की योजना में मुंह की खाने के बाद भी जनता के विरुद्ध अपने षड्यंत्रों और प्रयासों से बाज़ नहीं आये और उन्होंने दूसरी चाल अर्थात परिस्थितियों को समान दर्शाने की योजना पर कार्य करना आरंभ कर दिया। यह शैली उन देशों में चलाई जाती है जहां अमरीका विरोधी नीतियां अपनाई जाती हैं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने विभिन्न देशों में परिस्थितियों को समान दर्शाने की अमरीकी चाल को बयान करते हुए कहा कि अमरीकियों ने प्रयास किया कि जो कुछ मिस्र, ट्यूनीशिया, लीबिया और दूसरे देशों में हुआ, वैसा ही शायद ईरान में भी लागू कर सकें और उसी प्रक्रिया की एक हास्यास्पद कैरीकेचर बना दें किन्तु ईरानी जनता ने उनका मुंह तोड़ दिया। वरिष्ठ नेता ने इस बात को बयान करते हुए कि वास्तव में अमरीकी राष्ट्रपति स्वयं भी नहीं जानते कि वे क्या कह रहे हैं, कहा कि ईरानी जनता के नाम ओबामा का संदेश और ईरान में क्रांति के लिए उकसाना यह सब उनकी अज्ञानता और और निश्चेतना के कारण हैं। वरिष्ठ नेता ने कहा कि अमरीकी राष्ट्रपति कहते हैं कि तेहरान के आज़ादी स्क्वायर पर एकत्रित होने वाले लोग वही मिस्र के अत्तहरीर स्क्वायर पर एकत्रित होने वाले लोग हैं। वह सत्य कह रहे हैं। हर वर्ष 22 बहमन अर्थात 11 फ़रवरी को इस्लामी क्रांति की सफलता की वर्षगांठ के दिन यही लोग वहां पर एकत्रित होते हैं और अमरीका मुर्दाबाद उनका नारा होता है।
बच्चों और महिलाओं सहित निर्दोष लीबियाई जनता का संहार और अत्याचार, सभी मानवता प्रेमी लोगों के लिए अस्वीकार्य हैं। वरिष्ठ नेता ने अपने बयान में लीबिया की जनता के जनसंहार और लीबियाई सरकार द्वारा लीबिया के नगरों पर बमबारी और जनता पर दबाव की कड़े शब्दों में निंदा की। उन्होंने इसके अतिरिक्त अमरीका सहित कुछ देशों के सैन्य हस्तक्षेप को भी अस्वीकारीय बताया और कहा कि आप लोग यदि वास्तव में लीबिया की जनता के समर्थक थे, यदि लीबिया की जनता की दशा पर आप को दुःख था, तो इस समय एक महीना हो गया है कि लीबिया की जनता पर बमबारी हो रही है, यदि आप उनकी सहायता करना चाहते थे तो उन्हें हथियार देते, उपकरण देते, एंटी एयर क्राफ़्ट देते, ये सब करने के बजाए सब एक महीने तक जनता का जनसंहार होते देखते रहे, अब आना चाहते हैं।
वरिष्ठ नेता ने बताया कि यह हस्तक्षेप लीबियाई जनता की सहायता के लिए नहीं है बल्कि लीबिया के तेल स्रोतों पर नियंत्रण करने और दूसरे लक्ष्यों को साधने के लिए है, वरिष्ठ नेता कहते हैं कि आप जनता की सहायता के लिए नहीं आए हैं, आप लीबिया के तेल के चक्कर में हैं, आप लीबिया में पैर जमाने का प्रयास कर रहे हैं, आप लीबिया को अपना अड्डा बनाना चाहते हैं, ताकि लीबिया के दोनों ओर स्थित मिस्र और ट्यूनीशिया की आगामी क्रांतिकारी सरकारों की निगरानी कर सकें। आपकी नीयत में खोट है। वरिष्ठ नेता ने जनक्रांतियों के संबंध में संयुक्त राष्ट्र संघ की नीतियों और क्रियाकलापों की आलोचना करते हुए इन नीतियों को व्यवहारिक रूप से साम्राज्यवादी सरकारों की सेवा करने वाली नीतियां बताया और संयुक्त राष्ट्र संघ के लिए जिसे राष्ट्रों के हितों का रक्षक होना चाहिए, एक कलंक बताया।
अन्य अरब देशों की भांति, बहरैन की जनक्रांति भी अपने देश पर सत्तासीन तानाशाह से संघर्षरत है। बहरैनी जनता की मुख्य मांग ये हैं कि देश में स्वतंत्र चुनाव हों और समस्त लोंगों को मताधिकार प्राप्त हो किन्तु चूंकि बहरैन की अधिकांश जनता शीया मुसलमान है, इसलिए फ़ार्स की खाड़ी के दक्षिण में स्थित देशों के कुछ राजनेता और पत्रकार बहरैन के मामले को शीया और सुन्नी समुदाय के मध्य युद्ध दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। वरिष्ठ नेता आयतुल्लाह हिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इन निरर्थक और निराधार बातों की आलोचना करते हुए कहा कि कुछ बुरा चाहने वाले और शत्रुता रखने वाले लोग बहरैन के मामले को शीया- सुन्नी मतभेद का मामला बनाकर पेश करना चाहते हैं। खेद की बात ये है कि कुछ ऐसे लोग, जिन के बारे में व्यक्ति सोचता है कि वे नीयत के बुरे नहीं हैं, भी इस जाल में फंस गये, इस बीच जो अच्छा चाहने वाले लोग हैं, मैं उनसे कहना चाहूंता हूं कि इस मामले को शीया, सुन्नी युद्ध का रंग मत दीजिए क्योंकि यह अमरीका की बहुत बड़ी सेवा है, यह इस्लामी राष्ट्र के शत्रुओं की बहुत बड़ी सहायता है, शीया- सुन्नी का झगड़ा यहां है ही नहीं।
कुल मिलाकर वरिष्ठ नेता के अनुसार मध्यपूर्व में जनता की निर्णायक क्रांतियां इस्लामी हैं और न्याय की स्थापना, स्वतंत्रता व स्वतंत्र और प्रतिष्ठित सरकारों का गठन जैसे इसके संयुक्त लक्ष्य हैं। इस आधार पर इन देशों में इस्लामी चेतना और जागरूकता के दृष्टिगत, पश्चिमी सरकारें अपनी ढोंगी और दोहरी नीतियों से इन जनक्रांतियों को न केवल विफल नहीं बना सकती बल्कि वरिष्ठ नेता के अनुसार, क्षेत्र में और अधिक परिवर्तन आने वाले हैं।