हिंदुस्तान की आबादी बढ़ कर 121 करोड़

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तहलका टुडे टीम
नई दिल्ली। हिंदुस्तान की आबादी बढ़ कर 121 करोड़ हो गई है। दस साल पहले हुई गणना के मुकाबले यह 17.64 फीसदी ज्यादा है। संतोष की बात यह है कि आबादी बढ़ने की हमारी रफ्तार कम हुई है और आजादी के बाद यह सबसे निचले स्तर पर है। पिछली जनगणना के मुकाबले जनसंख्या दर करीब चार फीसदी कम दर्ज की गई है। इसी तरह महिलाओं की तत्परता के कारण अब हमारी कुल 74 फीसदी आबादी साक्षर हो चुकी है। लेकिन चिंता की बात है कि इस दौरान गर्भ में बच्चियों की हत्या के मामले में हमने सारे रिकार्ड तोड़ दिए। छह साल तक की आबादी में इस समय एक हजार लड़कों के मुकाबले सिर्फ 914 लड़कियां ही हैं।
जनगणना 2011 [प्रोविजनल] के मुताबिक पिछले दस साल के दौरान हमने दुनिया के पांचवें सबसे ज्यादा आबादी वाले देश ब्राजील जितनी आबादी पैदा कर दी। आजादी के बाद से यह सबसे कम वृद्धि दर वाला दशक साबित हुआ है। कुल संख्या के हिसाब से देखें तो 2001 से 2011 के दौरान जितनी आबादी बढ़ी वह उससे एक दशक पहले हुई बढ़ोतरी से कम ही है। उत्तर प्रदेश 20 करोड़ आबादी के साथ अब भी पहले स्थान पर बना हुआ है। इस अकेले राज्य की आबादी ब्राजील से ज्यादा है। 11.23 करोड़ के साथ महाराष्ट्र दूसरे और 10.38 करोड़ के साथ बिहार तीसरे नंबर पर है। सबसे कम आबादी लक्ष्यद्वीप की है। यहां कुल 64,429 लोग हैं। ताजा जनगणना के मुताबिक प्रति हजार पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का औसत पहले के 933 के मुकाबले बढ़ कर 940 हो गया है। सिर्फ बिहार, गुजरात और जम्मू-कश्मीर ही ऐसे तीन राज्य रहे, जिनमें महिलाओं का औसत कम हुआ है। ताजा आंकड़े साबित करते हैं कि लड़कियों को गर्भ में ही या पैदा होते ही मार देने की घटनाएं बढ़ी हैं। छह साल तक की आबादी में बच्चियों का औसत पिछली जनगणना के 927 से भी घट कर 914 हो गया है। छह साल तक की आबादी में लड़कियों के औसत के मामले में हरियाणा और पंजाब 830 और 846 के औसत के साथ सबसे निचले पायदान पर हैं।
जनगणना के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश में सात साल से ऊपर की आबादी में 74 फीसदी लोग अब साक्षर हो चुके हैं। 2001 में हुई जनगणना के दौरान देश भर में सिर्फ 64.83 फीसदी लोग ही साक्षर पाए गए थे। साक्षरता के मामले में बिहार और अरुणाचल प्रदेश 63.82 और 66.95 फीसदी साक्षरता के साथ सबसे निचले पायदान पर हैं। जबकि 93.91 फीसदी के साथ केरल अव्वल है। तेजी से साक्षर बनने के मामले में महिलाओं ने पुरुषों से बाजी मारी है। जहां पुरुषों में साक्षरता दर 6.88 फीसदी ही बढ़ी, वहीं महिलाओं में यह 11.79 फीसदी की दर से बढ़ी।
हरियाणा में लड़कियों की संख्या बढ़ी
नई दिल्ली । ममता, साइना नेहवाल, कृष्णा व कल्पना चावला जैसी महिलाओं ने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भले ही अपने राज्य की नाक ऊंची की हो, लेकिन पुरुष प्रधान राज्य हरियाणा ने महिला-पुरुष लिंगानुपात में अपनी नाक जरूर कटा ली है। यह जानकारी 2011 की जनगणना के ताजा आंकड़ों में दी गई है। राज्य के झज्जर और महेंद्रगढ़ ने तो हरियाणा को शर्मसार किया है। दोनों जिले राष्ट्रीय सूची में सबसे निचले पायदान पर हैं। हरियाणा में [0-6 साल की] लड़कियों संख्या के मामले में 2001 के मुकाबले लड़कियों की संख्या में सुधार होने के बावजूद यह राज्य राष्ट्रीय सूची में सबसे नीचे है। यहां प्रति एक हजार बालकों [छह साल तक के] के मुकाबले केवल 830 बालिकाएं हैं। पंजाब में भी स्थिति बहुत बेहतर नहीं है। यहां प्रति हजार लड़कों के मुकाबले महज 846 लड़कियां हैं। जनसंख्या नियंत्रण के मामले में हरियाणा व पंजाब ने उल्लेखनीय प्रगति की है। पिछले एक दशक के दौरान आबादी की वृद्धि दर हरियाणा में 28.4 फीसदी से घटकर 19.9 फीसदी और पंजाब में 20.17 से घटकर 13.7 फीसदी रह गई है। दिल्ली के नजदीक होने की वजह से हरियाणा में जनसंख्या का घनत्व पंजाब के मुकाबले अधिक है। हरियाणा की आबादी 2.11 करोड़ से बढ़कर 2.53 करोड़ पहुंच गई है। पंजाब की आबादी 2.43 करोड़ से बढ़कर 2.77 करोड़ हो गई है।
हरियाणा में 2001 में 1000 पुरुषों के मुकाबले 861 महिलाएं थीं, उनकी संख्या 2011 में बढ़कर 877 हो गई। लेकिन यह राष्ट्रीय औसत के मुकाबले बहुत पीछे है। पंजाब में यह अनुपात 2011 में महिलाओं की संख्या 893 हो गया है। महिलाओं की शिक्षा का स्तर राष्ट्रीय औसत के आसपास 66.8 फीसदी है। जबकि पुरुषों का 76.6 फीसदी है, जो राष्ट्रीय औसत 82.14 फीसदी से पीछे है। हरियाणा के झज्जर में प्रति एक हजार पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या केवल 774 और महेंद्रगढ़ में 778 है। यह संख्या देश के किसी भी जिले के मुकाबले सबसे कम है।
साक्षरता में बिहार पिछले पायदान पर
नई दिल्ली । पिछले कुछ वर्षो से विकास दर को लेकर देश में अव्वल रहने वाला बिहार साक्षरता के मामले में अभी भी सबसे पिछड़ा राज्य है। जनगणना के ताजे आंकड़ों के मुताबिक शिक्षा और स्वास्थ्य के मामले में बिहार की स्थिति अन्य राज्यों के मुकाबले चिंताजनक बनी हुई है। केंद्रीय गृह सचिव जीके पिल्लै और भारत के महापंजीयक सी. चंद्रमौलि ने गुरुवार को यहां जनगणना 2011 के जो आंकड़े जारी किए हैं वो बिहार के लिए उत्साहवर्द्धक नहीं है। राज्य की आबादी बढ़कर 10 करोड़ 38 लाख चार हजार 638 हो गई है वहीं झारखंड की आबादी भी तीन करोड़ 29 लाख 66 हजार 238 हो गई है। शिक्षा की कमी और स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता का न होना जनसंख्या वृद्धि का कारक माना जाता है। कुछ छोटे राज्यों की बात छोड़ दें तो बड़े राज्यों में जनसंख्या वृद्धि दर के मामले में बिहार सबसे आगे है। पिछले एक दशक में यहां जनसंख्या 25.07 प्रतिशत की दर से बढ़ी जबकि उत्तर प्रदेश में वृद्धि दर 20.09 प्रतिशत और झारखंड में 22.34 प्रतिशत रही। उत्तर प्रदेश पिछले दशक में पांच फीसद और महाराष्ट्र ने साढ़े सात फीसद जनसंख्या वृद्धि दर घटाने में कामयाब रहा है। लेकिन बिहार महज साढ़े तीन प्रतिशत की कमी कर सका। 1991-2001 की जनगणना में बिहार की जनसंख्या विकास दर 28.62 प्रतिशत थी। घनी आबादी के मामले में भी बिहार सबसे आगे है। यहां प्रति वर्ग किमी 1102 लोग रहते हैं जबकि झारखंड में 414 और उत्तर प्रदेश में 828 लोग रह रहे हैं।
साक्षरता के मामले में भी बिहार देश का सर्वाधिक पिछड़ा राज्य बना हुआ है। यहां की साक्षरता दर 63.82 प्रतिशत है जबकि पड़ोसी उत्तर प्रदेश में यह 69.72 प्रतिशत और झारखंड में 67.63 प्रतिशत है। अगर पुरुष साक्षरता की बात करें तो भी बिहार सबसे निचले पायदान पर खड़ा दिखता है। अलबत्ता महिला साक्षरता के मामले में यह राजस्थान से थोड़ा आगे है। बिहार में महिला साक्षरता दर 53.33 प्रतिशत है जबकि राजस्थान में यह 52.66 प्रतिशत है। उत्तर प्रदेश में महिला साक्षरता दर 59.26 प्रतिशत और झारखंड में 56.21 प्रतिशत है।
इस जनगणना में एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह देखने को मिला कि 1971 के बाद देश में पहली बार पुरुष और महिला का अनुपात दर बढ़ा है। 2001 में राष्ट्रीय अनुपात 933 था जो बढ़कर 940 हो गया है। पर बिहार, गुजरात और जम्मू-कश्मीर मात्र तीन ऐसे राज्य हैं जहां सेक्स रेशियो कम हुआ है। बिहार में यह 919 से घटकर 916 हो गया है जबकि झारखंड जैसे राज्य में भी यह 941 से बढ़कर 947 हो गया है।
जनगणना पर आया 2200 करोड़ का खर्च
नई दिल्ली। घर-घर जाकर देश के हर नागरिक को जनगणना में शामिल करने की कवायद पर 2200 करोड़ रुपये खर्च हुए। इस जनगणना कार्यक्रम में करीब 27 लाख कर्मचारी लगाए गए थे। 15वीं जनगणना का यह कार्यक्रम दो चरण में पूरा किया गया। पहला चरण अप्रैल से सितंबर, 2010 और दूसरा चरण 9 से 29 फरवरी, 2011 के बीच संपन्न हुआ। भारत के महापंजीयक व जनगणना आयुक्त सी. चंद्रमौली ने गुरुवार को जनगणना के आंकड़े जारी करते हुए कहा, 'इस पूरी कवायद की लागत 2200 करोड़ रुपये आई। जनगणना में देश के 35 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के सभी 640 जिलों को शामिल किया गया था।'