आस्था का फैसला: सारे तर्क बेईमान

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तहलका टुडे टीम
लखनऊ :अयोध्या में विवादित जमीन पर मालिकाना हक का सही व सटीक कानूनी दावा साबित करने में जब सभी पक्ष नाकाम हो गए तो आस्था, वैज्ञानिकता और ऐतिहासिक तथ्यों ने हाईकोर्ट के फैसले में अहम भूमिका निभाई। रामलला के जन्मस्थान पर तीनों जजों की समान राय और विवादित जमीन तीन बराबर हिस्सों में बांटने के फैसलों के पीछे दोनों समुदायों की मान्यताओं को ध्यान में रखा गया।
विवादित ढांचे की जगह पहले मंदिर था, इस बात में हाईकोर्ट के तीनों जजों में एका का आधार बनी भारत पुरातत्व सर्वेक्षण [एएसआई] की रिपोर्ट, लेकिन भगवान सिर्फ गर्भगृह तक रहेंगे और बाकी जमीन तीन बराबर के हिस्सों में बंटेगी इसमें आस्था और इबादत की रवायत ने महती भूमिका निभाई। अदालत ने जितना तवज्जो हिन्दुओं की पूजा अर्चना को दिया उतना ही महत्व मुसलमानों की नमाज पढ़ने और ढांचे को मस्जिद मानने के विश्वास को दिया।
फैसले में रामलला के हिस्से में आई गर्भगृह की जमीन के पीछे रामलला को सजीव व्यक्ति मानकर मुकदमे का निस्तारण किया। अदालत ने माना है कि जहां पर सदियों से पूजा-अर्चना होती चली आयी हो वह मूर्ति प्राण प्रतिष्ठित [सजीव] हो जाती है। और वह मूर्ति एक सजीव व्यक्ति की तरह होती है। इसलिए जब हजारों वर्ष से रामलला की पूजा अर्चना होती चली आयी है तो मध्य गुंबद में श्री राम बाल रूप में सजीव हैं और उनकी ओर से निकट मित्र द्वारा हक का दावा किया जा सकता है।
जमीन का एक तिहाई हिस्सा निर्मोही अखाड़े के हक में गया है। अदालत ने माना है कि किसी अन्य व्यक्ति की बेहतर दावेदारी की अनुपस्थिति में विवादित स्थल का बाहरी हिस्सा, जिसमें राम चबूतरा, सीता रसोई और भंडार पर निर्मोही अखाड़े का हक होगा। अब सवाल उठता है कि जब सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा खारिज हो गया तो मुसलमानों को किस हक से जमीन का तीसरा एक तिहाई हिस्सा दिया गया?
न्यायमूर्ति एस.यू. खान व न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने कहा है कि दोनों ही पक्ष यह साबित नहीं कर पाए कि जमीन पर उनका किस समय से कब्जा आया और कब से उस पर उनका हक है। लेकिन जमीन पर दोनों का कब्जा रहा है ऐसे में साक्ष्य अधिनियम की धारा 110 के तहत दोनों पक्षों को संयुक्त दावेदार माना जाएगा। जस्टिस खान ने तो अपने फैसले में साफ- साफ लिखा है कि 1855 में जब राम चबूतरा और सीता रसोई अस्तित्व में आई उससे भी काफी पहले से हिंदू वहां पूजा-अर्चना करते चले आ रहे थे।
यह बहुत ही अलहदा और अभूतपूर्व स्थिति थी कि मस्जिद के भीतरी परिसर में हिंदू पूजा-अर्चना करते थे और मुसलमान नमाज पढ़ते थे। कोर्ट ने कब्जे के इसी आधार पर दोनों को जमीन पर साझा हिस्सेदार घोषित किया है। साथ ही अदालत ने साफ किया कि जब जमीन का वास्तविक विभाजन होगा और मालिकाना हक की अंतिम डिक्री पारित की जाएगी उसमें मध्य गुंबद के नीचे वाला हिस्सा जहां अस्थाई मंदिर स्थित है, हिंदुओं को दिया जाएगा।
क्यों खारिज हुआ सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा?
वक्फ बोर्ड यह साबित नहीं कर पाया कि मस्जिद 1528 में मुगल शासक बाबर ने बनवाई थी या उसके सेनापति मीर बाकी ने। कोर्ट ने माना कि मस्जिद का निर्माण हिंदू मंदिर ध्वंसावशेष पर हुआ था। अदालत ने यह भी माना कि इमारत का प्रयोग सिर्फ मुसलमान ही नहीं करते थे बल्कि 1856-57 से बाहरी अहाते में हिंदू भी पूजा-अर्चना किया करते थे इसलिए यह जमीन अकेले सुन्नी वक्फ बोर्ड की होने का दावा नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने वक्फ बोर्ड का यह दावा भी नहीं माना कि विवादित भूमि पर वर्ष 1949 तक उनका कब्जा था और 1949 में उन्हें जबर्दस्ती हटा दिया गया। कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा समय बाधित यानी देरी से दाखिल मानते हुए भी खारिज किया है।
*जहां सदियों से पूजा-अर्चना होती आ रही हो, वह मूर्ति प्राणप्रतिष्ठित [सजीव] मानी जाती है। हजारों वर्षो से रामलला की पूजा होती आई है। मध्य गुंबद के नीचे हिंदुओं की आस्था और विश्वास के आधार पर राम बालरूप में सजीव विराजमान हैं। इसलिए, उनके निकट मित्र द्वारा किया गया दावा स्वीकार किए जाने योग्य है।
[आशय यह है कि यहां पर श्रीराम सदैव नाबालिग माने गए हैं। इसलिए उनके निकट मित्र देवकीनंदन अग्रवाल को उनकी तरफ से दावा प्रस्तुत करने का हक बिल्कुल था।]
निर्णय का एक आधार नक्शा
अयोध्या में विवादित स्थल का तैयार किया गया यह 125 साल पुराना मानचित्र है। गुरुवार को न्यायालय द्वारा सभी विवादित मामलों के फैसले देने से पूर्व भी तमाम अदालती कामकाज में इसी मानचित्र की मदद ली जाती रही है
फैसले के बाद की स्थिति
ढांचे के मध्य गुंबद में रामलला विराजमान रहेंगे और इसपर हिंदुओं का हक है। विवादित 2.77 एकड़ जमीन का तिहाई हिस्सा सभी पक्षों का है। राम चबूतरा और सीता रसोई का हिस्सा निर्मोही अखाड़ा का जबकि शेष हिस्सा मुस्लिमों का है।
न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल
-परिसर का बीच वाला गुंबद, जिसे विवादित कहा गया है हिंदुओं की आस्था और विश्वास के अनुसार भगवान राम का जन्म यहीं पर हुआ था
-इसके प्रमाण भी नहीं मिले हैं कि इसका निर्माण बाबर ने करवाया था या फिर उसके कार्यकाल में बना था। मुसलमानों ने इसे मस्जिद के रूप में स्वीकार किया और इसका इस्तेमाल किया
-सबूतों के अभाव में यह कहना मुश्किल है कि विवादास्पद निर्माण कब किया गया। लेकिन यह स्पष्ट है कि यह अवध क्षेत्र में जोसेफ टिफेंथेलर के दौरे [1766 से 1771] से पहले किया गया
-इस ढांचे का निर्माण एक गैर इस्लामिक ढांचे को तोड़कर किया गया था, जो कि एक हिंदू मंदिर था
-विवादित ढांचे के बीच वाले गुंबद के नीचे 22 से 23 दिसंबर, 1949 की रात में मूर्तियां रखी गई थी
-परिसर का अंदर वाला हिस्सा दोनो ही समुदायों से संबंधित है क्योंकि हिंदू और मुसलमान इस परिसर का इस्तेमाल दशकों या सदियों से कर रहे थे
-बाहरी अहाते में आनेवाले राम चबूतरा, सीता की रसोई और भंडारा निर्मोही अखाड़ा को दिया जाता है
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न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा
-विवादित स्थल भगवान राम का जन्मस्थान है। जन्मस्थान एक विधिक व्यक्ति होता है। यह स्थान भगवान राम के बाल रूप की दैवीय भावना को प्रदर्शित करता है। ईश्वर तो हर जगह हैं और हर व्यक्ति को किसी भी रूप में उनका ध्यान करने का अधिकार है
-विवादित भवन का निर्माण बाबर ने करवाया था। इसके निर्माण के वर्ष के बारे में निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है लेकिन इसे इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ बनवाया गया था। इसलिए इसे मस्जिद नहीं कहा जा सकता है।
ढांचे को उसी जगह एक पुरानी संरचना को गिराकर बनाया गया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा उपलब्ध कराए गए साक्ष्यों से यह साबित हुआ है कि वह संरचना हिंदुओं का एक विशाल धार्मिक स्थान थी
-विवादित ढांचे के मध्य गुंबद में 1949 के 22-23 दिसंबर की रात को मूर्तियां रखी गईं थीं
-विवाद के दो पक्षकारों सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा के दावे समयबाधित नहीं है
-यह स्थापित हुआ है कि वाद में शामिल की गई संपत्ति रामचंद्र की जन्मभूमि है और हिंदुओं को उनकी पूजा करने का अधिकार है। यह स्थान उनके लिए दैवी है और वे अनंतकाल से इसकी तीर्थयात्रा करते रहे हैं
-यह भी साबित हो चुका है कि विवादित स्थल का बाहरी परिसर भी हिंदुओं के कब्जे में था। अंदर के परिसर में भी वे पूजा करते रहे हैं। यह भी स्थापित हो गया है कि विवादित ढांचे को मस्जिद नहीं माना जा सकता है क्योंकि उसे इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ बनाया गया था
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न्यायमूर्ति एस.यू. खान
-मस्जिद के निर्माण के लिए बाबर द्वारा या उसके आदेशानुसार किसी मंदिर को नहीं तोड़ा गया था। इसका निर्माण मंदिर के अवशेषों पर किया गया था, जो मस्जिद निर्माण से पहले लंबे समय तक खंडहर था, और इसकी कुछ सामग्री का निर्माण मस्जिद निर्माण के लिए किया गया था
प्रत्यक्ष साक्ष्यों से यह साबित नहीं होता कि निर्मित हिस्से समेत विवादित परिसर पर बाबर या जिसके आदेश पर इसका निर्माण किया गया उसका अधिकार था।
-मस्जिद के निर्माण में आने के कुछ समय बाद हिंदुओं का मानना था कि विवादित परिसर के एक बहुत बड़े हिस्से में कहीं एक छोटे हिस्से में भगवान राम का जन्मस्थल स्थित है। हालाकि यह भरोसा बड़े इलाके में से खासतौर पर विवादित परिसर में किसी विशेष छोटे क्षेत्र से संबंधित नहीं है
-मस्जिद के निर्माण के कुछ समय बाद हिंदुओं ने विवादित स्थान को भगवान राम के सही जन्मस्थान या उस स्थान के तौर पर पहचान शुरू कर दी जिसमें सही जन्मस्थान स्थित था
-1855 में पहला कानूनी विवाद शुरू होने से काफी पहले राम चबूतरा और सीता रसोई अस्तित्व में आए और हिंदू वहा पूजा करते थे। यह बहुत अद्भुत एवं अभूतपूर्व स्थिति है कि मस्जिद परिसर के भीतर हिंदू धर्मस्थल था, जहां हिंदू पूजा करने के लिए जाते थे
-क्रमांक संख्या सात में निष्कर्ष के सार के मद्देनजर दोनों पक्षों मुस्लिमों और हिंदुओं का पूरे विवादित स्थल पर संयुक्त कब्जा है
-मुस्लिम और हिंदू विवादित परिसर के अलग अलग हिस्सों का इस्तेमाल कर रहे थे। इसका औपचारिक विभाजन नहीं हुआ और दोनों का पूरे विवादित परिसर पर संयुक्त कब्जा है
-दोनों पक्ष अपने मालिकाना हक की शुरुआत को साबित नहीं कर पाए इसीलिए धारा 110 साक्ष्य कानून के तहत दोनो संयुक्त कब्जे के आधार पर संयुक्त स्वामी हैं।
1949 से कुछ दशक पहले से हिंदुओं ने मस्जिद के बीच वाले गुंबद के नीचे के [जहा वर्तमान में अस्थाई मंदिर है] स्थल को भगवान राम का सही जन्मस्थान मानना शुरू कर दिया
-बीच वाले गुंबद के नीचे पहली बार मूर्ति 23 दिसंबर 1949 को तड़के रखी गई
-उपरोक्त के आलोक में दोनो पक्षों को संयुक्त कब्जे के आधार पर संयुक्त स्वामी घोषित किया जाता है। इस संबंध में इस शर्त के साथ प्रारंभिक घोषणा की जाती है कि अंतिम घोषणा की तैयारी के समय जब वास्तव में स्थल का बंटवारा हो तो मध्य गुंबद के नीचे का भाग हिंदुओं के हिस्से में जाए, जहा इस समय अस्थाई मंदिर है
-साथ ही यह घोषित किया जाता है कि सभी तीनों पक्षों हिंदुओ, मुस्लिमों और निर्मोही अखाड़े में से प्रत्येक को एक-एक तिहाई हिस्सा दिया जाता है
लखनऊ :अयोध्या में विवादित जमीन पर मालिकाना हक का सही व सटीक कानूनी दावा साबित करने में जब सभी पक्ष नाकाम हो गए तो आस्था, वैज्ञानिकता और ऐतिहासिक तथ्यों ने हाईकोर्ट के फैसले में अहम भूमिका निभाई। रामलला के जन्मस्थान पर तीनों जजों की समान राय और विवादित जमीन तीन बराबर हिस्सों में बांटने के फैसलों के पीछे दोनों समुदायों की मान्यताओं को ध्यान में रखा गया।
विवादित ढांचे की जगह पहले मंदिर था, इस बात में हाईकोर्ट के तीनों जजों में एका का आधार बनी भारत पुरातत्व सर्वेक्षण [एएसआई] की रिपोर्ट, लेकिन भगवान सिर्फ गर्भगृह तक रहेंगे और बाकी जमीन तीन बराबर के हिस्सों में बंटेगी इसमें आस्था और इबादत की रवायत ने महती भूमिका निभाई। अदालत ने जितना तवज्जो हिन्दुओं की पूजा अर्चना को दिया उतना ही महत्व मुसलमानों की नमाज पढ़ने और ढांचे को मस्जिद मानने के विश्वास को दिया।
फैसले में रामलला के हिस्से में आई गर्भगृह की जमीन के पीछे रामलला को सजीव व्यक्ति मानकर मुकदमे का निस्तारण किया। अदालत ने माना है कि जहां पर सदियों से पूजा-अर्चना होती चली आयी हो वह मूर्ति प्राण प्रतिष्ठित [सजीव] हो जाती है। और वह मूर्ति एक सजीव व्यक्ति की तरह होती है। इसलिए जब हजारों वर्ष से रामलला की पूजा अर्चना होती चली आयी है तो मध्य गुंबद में श्री राम बाल रूप में सजीव हैं और उनकी ओर से निकट मित्र द्वारा हक का दावा किया जा सकता है।
जमीन का एक तिहाई हिस्सा निर्मोही अखाड़े के हक में गया है। अदालत ने माना है कि किसी अन्य व्यक्ति की बेहतर दावेदारी की अनुपस्थिति में विवादित स्थल का बाहरी हिस्सा, जिसमें राम चबूतरा, सीता रसोई और भंडार पर निर्मोही अखाड़े का हक होगा। अब सवाल उठता है कि जब सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा खारिज हो गया तो मुसलमानों को किस हक से जमीन का तीसरा एक तिहाई हिस्सा दिया गया?
न्यायमूर्ति एस.यू. खान व न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने कहा है कि दोनों ही पक्ष यह साबित नहीं कर पाए कि जमीन पर उनका किस समय से कब्जा आया और कब से उस पर उनका हक है। लेकिन जमीन पर दोनों का कब्जा रहा है ऐसे में साक्ष्य अधिनियम की धारा 110 के तहत दोनों पक्षों को संयुक्त दावेदार माना जाएगा। जस्टिस खान ने तो अपने फैसले में साफ- साफ लिखा है कि 1855 में जब राम चबूतरा और सीता रसोई अस्तित्व में आई उससे भी काफी पहले से हिंदू वहां पूजा-अर्चना करते चले आ रहे थे।
यह बहुत ही अलहदा और अभूतपूर्व स्थिति थी कि मस्जिद के भीतरी परिसर में हिंदू पूजा-अर्चना करते थे और मुसलमान नमाज पढ़ते थे। कोर्ट ने कब्जे के इसी आधार पर दोनों को जमीन पर साझा हिस्सेदार घोषित किया है। साथ ही अदालत ने साफ किया कि जब जमीन का वास्तविक विभाजन होगा और मालिकाना हक की अंतिम डिक्री पारित की जाएगी उसमें मध्य गुंबद के नीचे वाला हिस्सा जहां अस्थाई मंदिर स्थित है, हिंदुओं को दिया जाएगा।
क्यों खारिज हुआ सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा?
वक्फ बोर्ड यह साबित नहीं कर पाया कि मस्जिद 1528 में मुगल शासक बाबर ने बनवाई थी या उसके सेनापति मीर बाकी ने। कोर्ट ने माना कि मस्जिद का निर्माण हिंदू मंदिर ध्वंसावशेष पर हुआ था। अदालत ने यह भी माना कि इमारत का प्रयोग सिर्फ मुसलमान ही नहीं करते थे बल्कि 1856-57 से बाहरी अहाते में हिंदू भी पूजा-अर्चना किया करते थे इसलिए यह जमीन अकेले सुन्नी वक्फ बोर्ड की होने का दावा नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने वक्फ बोर्ड का यह दावा भी नहीं माना कि विवादित भूमि पर वर्ष 1949 तक उनका कब्जा था और 1949 में उन्हें जबर्दस्ती हटा दिया गया। कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा समय बाधित यानी देरी से दाखिल मानते हुए भी खारिज किया है।
*जहां सदियों से पूजा-अर्चना होती आ रही हो, वह मूर्ति प्राणप्रतिष्ठित [सजीव] मानी जाती है। हजारों वर्षो से रामलला की पूजा होती आई है। मध्य गुंबद के नीचे हिंदुओं की आस्था और विश्वास के आधार पर राम बालरूप में सजीव विराजमान हैं। इसलिए, उनके निकट मित्र द्वारा किया गया दावा स्वीकार किए जाने योग्य है।
[आशय यह है कि यहां पर श्रीराम सदैव नाबालिग माने गए हैं। इसलिए उनके निकट मित्र देवकीनंदन अग्रवाल को उनकी तरफ से दावा प्रस्तुत करने का हक बिल्कुल था।]
निर्णय का एक आधार नक्शा
अयोध्या में विवादित स्थल का तैयार किया गया यह 125 साल पुराना मानचित्र है। गुरुवार को न्यायालय द्वारा सभी विवादित मामलों के फैसले देने से पूर्व भी तमाम अदालती कामकाज में इसी मानचित्र की मदद ली जाती रही है
फैसले के बाद की स्थिति
ढांचे के मध्य गुंबद में रामलला विराजमान रहेंगे और इसपर हिंदुओं का हक है। विवादित 2.77 एकड़ जमीन का तिहाई हिस्सा सभी पक्षों का है। राम चबूतरा और सीता रसोई का हिस्सा निर्मोही अखाड़ा का जबकि शेष हिस्सा मुस्लिमों का है।
न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल
-परिसर का बीच वाला गुंबद, जिसे विवादित कहा गया है हिंदुओं की आस्था और विश्वास के अनुसार भगवान राम का जन्म यहीं पर हुआ था
-इसके प्रमाण भी नहीं मिले हैं कि इसका निर्माण बाबर ने करवाया था या फिर उसके कार्यकाल में बना था। मुसलमानों ने इसे मस्जिद के रूप में स्वीकार किया और इसका इस्तेमाल किया
-सबूतों के अभाव में यह कहना मुश्किल है कि विवादास्पद निर्माण कब किया गया। लेकिन यह स्पष्ट है कि यह अवध क्षेत्र में जोसेफ टिफेंथेलर के दौरे [1766 से 1771] से पहले किया गया
-इस ढांचे का निर्माण एक गैर इस्लामिक ढांचे को तोड़कर किया गया था, जो कि एक हिंदू मंदिर था
-विवादित ढांचे के बीच वाले गुंबद के नीचे 22 से 23 दिसंबर, 1949 की रात में मूर्तियां रखी गई थी
-परिसर का अंदर वाला हिस्सा दोनो ही समुदायों से संबंधित है क्योंकि हिंदू और मुसलमान इस परिसर का इस्तेमाल दशकों या सदियों से कर रहे थे
-बाहरी अहाते में आनेवाले राम चबूतरा, सीता की रसोई और भंडारा निर्मोही अखाड़ा को दिया जाता है
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न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा
-विवादित स्थल भगवान राम का जन्मस्थान है। जन्मस्थान एक विधिक व्यक्ति होता है। यह स्थान भगवान राम के बाल रूप की दैवीय भावना को प्रदर्शित करता है। ईश्वर तो हर जगह हैं और हर व्यक्ति को किसी भी रूप में उनका ध्यान करने का अधिकार है
-विवादित भवन का निर्माण बाबर ने करवाया था। इसके निर्माण के वर्ष के बारे में निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है लेकिन इसे इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ बनवाया गया था। इसलिए इसे मस्जिद नहीं कहा जा सकता है।
ढांचे को उसी जगह एक पुरानी संरचना को गिराकर बनाया गया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा उपलब्ध कराए गए साक्ष्यों से यह साबित हुआ है कि वह संरचना हिंदुओं का एक विशाल धार्मिक स्थान थी
-विवादित ढांचे के मध्य गुंबद में 1949 के 22-23 दिसंबर की रात को मूर्तियां रखी गईं थीं
-विवाद के दो पक्षकारों सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा के दावे समयबाधित नहीं है
-यह स्थापित हुआ है कि वाद में शामिल की गई संपत्ति रामचंद्र की जन्मभूमि है और हिंदुओं को उनकी पूजा करने का अधिकार है। यह स्थान उनके लिए दैवी है और वे अनंतकाल से इसकी तीर्थयात्रा करते रहे हैं
-यह भी साबित हो चुका है कि विवादित स्थल का बाहरी परिसर भी हिंदुओं के कब्जे में था। अंदर के परिसर में भी वे पूजा करते रहे हैं। यह भी स्थापित हो गया है कि विवादित ढांचे को मस्जिद नहीं माना जा सकता है क्योंकि उसे इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ बनाया गया था
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न्यायमूर्ति एस.यू. खान
-मस्जिद के निर्माण के लिए बाबर द्वारा या उसके आदेशानुसार किसी मंदिर को नहीं तोड़ा गया था। इसका निर्माण मंदिर के अवशेषों पर किया गया था, जो मस्जिद निर्माण से पहले लंबे समय तक खंडहर था, और इसकी कुछ सामग्री का निर्माण मस्जिद निर्माण के लिए किया गया था
प्रत्यक्ष साक्ष्यों से यह साबित नहीं होता कि निर्मित हिस्से समेत विवादित परिसर पर बाबर या जिसके आदेश पर इसका निर्माण किया गया उसका अधिकार था।
-मस्जिद के निर्माण में आने के कुछ समय बाद हिंदुओं का मानना था कि विवादित परिसर के एक बहुत बड़े हिस्से में कहीं एक छोटे हिस्से में भगवान राम का जन्मस्थल स्थित है। हालाकि यह भरोसा बड़े इलाके में से खासतौर पर विवादित परिसर में किसी विशेष छोटे क्षेत्र से संबंधित नहीं है
-मस्जिद के निर्माण के कुछ समय बाद हिंदुओं ने विवादित स्थान को भगवान राम के सही जन्मस्थान या उस स्थान के तौर पर पहचान शुरू कर दी जिसमें सही जन्मस्थान स्थित था
-1855 में पहला कानूनी विवाद शुरू होने से काफी पहले राम चबूतरा और सीता रसोई अस्तित्व में आए और हिंदू वहा पूजा करते थे। यह बहुत अद्भुत एवं अभूतपूर्व स्थिति है कि मस्जिद परिसर के भीतर हिंदू धर्मस्थल था, जहां हिंदू पूजा करने के लिए जाते थे
-क्रमांक संख्या सात में निष्कर्ष के सार के मद्देनजर दोनों पक्षों मुस्लिमों और हिंदुओं का पूरे विवादित स्थल पर संयुक्त कब्जा है
-मुस्लिम और हिंदू विवादित परिसर के अलग अलग हिस्सों का इस्तेमाल कर रहे थे। इसका औपचारिक विभाजन नहीं हुआ और दोनों का पूरे विवादित परिसर पर संयुक्त कब्जा है
-दोनों पक्ष अपने मालिकाना हक की शुरुआत को साबित नहीं कर पाए इसीलिए धारा 110 साक्ष्य कानून के तहत दोनो संयुक्त कब्जे के आधार पर संयुक्त स्वामी हैं।
1949 से कुछ दशक पहले से हिंदुओं ने मस्जिद के बीच वाले गुंबद के नीचे के [जहा वर्तमान में अस्थाई मंदिर है] स्थल को भगवान राम का सही जन्मस्थान मानना शुरू कर दिया
-बीच वाले गुंबद के नीचे पहली बार मूर्ति 23 दिसंबर 1949 को तड़के रखी गई
-उपरोक्त के आलोक में दोनो पक्षों को संयुक्त कब्जे के आधार पर संयुक्त स्वामी घोषित किया जाता है। इस संबंध में इस शर्त के साथ प्रारंभिक घोषणा की जाती है कि अंतिम घोषणा की तैयारी के समय जब वास्तव में स्थल का बंटवारा हो तो मध्य गुंबद के नीचे का भाग हिंदुओं के हिस्से में जाए, जहा इस समय अस्थाई मंदिर है
-साथ ही यह घोषित किया जाता है कि सभी तीनों पक्षों हिंदुओ, मुस्लिमों और निर्मोही अखाड़े में से प्रत्येक को एक-एक तिहाई हिस्सा दिया जाता है