भले अनाज सड़ जाए, गरीबों में बांटना संभव नहीं : पवार

https://tehalkatodayindia.blogspot.com/2010/08/blog-post_9604.html
तहलका टुडे टीम
नई दिल्ली. देश में अनाज की बर्बादी पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता के बावजूद सरकार ने कहा है कि अनाज गरीबों के बीच मुफ्त बांटना संभव नहीं है। केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने आज यहां पत्रकारों से कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट की बात पर अमल संभव नहीं है।’ उन्होंने कहा कि वैसे भी, सुप्रीम कोर्ट ने इस सिलसिले में सुझाव दिया था, न कि आदेश।
सुप्रीम कोर्ट ने गत 12 अगस्त को कहा था कि अगर सरकार अनाज की हिफाजत नहीं कर सकती है, तो उसे गरीबों में मुफ्त बांट दे। जस्टिस दलबीर भंडारी और दीपक वर्मा की बेंच ने सरकार से कहा था कि सरकार यह सुनिश्चित करे कि हर राज्य में एक बड़ा गोदाम होने के साथ-साथ हर जिले और प्रखंड में भी अलग से गोदाम हों।
इस बारे में अमल को लेकर सरकार के रुख से संबंधित सवाल के जवाब में पवार ने कहा कि अनाज को गरीबों में मुफ्त बांटना संभव नहीं है। सरकार गरीबों को सस्ते दाम पर गेंहू और चावल मुहैया करा रही है।
जबकि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को दो टूक कहा था सड़ने से तो अच्छा है, वह इसे गरीब और भूखे लोगों में मुफ्त बंटवा दे। कोर्ट ने कहा कि ये हैरत की बात है कि एक तरफ इतनी बड़ी तादाद में अनाज सड़ रहा है, वहीं लगभग 20 करोड़ लोग कुपोषण के शिकार हैं।
जस्टिस दलवीर भंडारी व जस्टिस दीपक वर्मा ने कहा कि अनाज को भूखे लोगों तक पहुंचाइए, बजाय इसके कि वह नालियों में बहे। खंडपीठ ने केंद्र से यह भी कहा था कि वह हर प्रदेश में एक बड़ा गोदाम बनाने की व्यवस्था सुनिश्चित करे।
यही नहीं प्रदेश में भी अलग-अलग जिलों और संभागों में गोदाम बनाए। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से यह सुनिश्चित करने को भी कहा कि उचित मूल्य की दुकानें महीने भर खुली रहें। खंडपीठ ने यह निर्देश पीयूसीएल द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर दिया। जनहित याचिका सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में भ्रष्टाचार और एफसीआई गोदामों में सड़ रहे अनाज मुद्दे पर दायर की गई थी।
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने सरकार से कहा था कि वह इस अनाज को गरीबी रेखा से ऊपर लोगों को देना बंद करने पर विचार करे और इस सुविधा को बीपीएल और अंत्योदय अन्न योजना के तहत आने वाले लोगों तक ही सीमित रखे। केंद्र ने गुरुवार को हलफनामे में कहा कि उसने पीडीएस के तहत एपीएल लोगों को आपूर्ति के बारे में बीपीएल और एएवाई के तहत आने वाले लोगों की जरूरत के बारे में विमर्श के बाद ही विचार किया है।
नई दिल्ली. देश में अनाज की बर्बादी पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता के बावजूद सरकार ने कहा है कि अनाज गरीबों के बीच मुफ्त बांटना संभव नहीं है। केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने आज यहां पत्रकारों से कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट की बात पर अमल संभव नहीं है।’ उन्होंने कहा कि वैसे भी, सुप्रीम कोर्ट ने इस सिलसिले में सुझाव दिया था, न कि आदेश।
सुप्रीम कोर्ट ने गत 12 अगस्त को कहा था कि अगर सरकार अनाज की हिफाजत नहीं कर सकती है, तो उसे गरीबों में मुफ्त बांट दे। जस्टिस दलबीर भंडारी और दीपक वर्मा की बेंच ने सरकार से कहा था कि सरकार यह सुनिश्चित करे कि हर राज्य में एक बड़ा गोदाम होने के साथ-साथ हर जिले और प्रखंड में भी अलग से गोदाम हों।
इस बारे में अमल को लेकर सरकार के रुख से संबंधित सवाल के जवाब में पवार ने कहा कि अनाज को गरीबों में मुफ्त बांटना संभव नहीं है। सरकार गरीबों को सस्ते दाम पर गेंहू और चावल मुहैया करा रही है।
जबकि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को दो टूक कहा था सड़ने से तो अच्छा है, वह इसे गरीब और भूखे लोगों में मुफ्त बंटवा दे। कोर्ट ने कहा कि ये हैरत की बात है कि एक तरफ इतनी बड़ी तादाद में अनाज सड़ रहा है, वहीं लगभग 20 करोड़ लोग कुपोषण के शिकार हैं।
जस्टिस दलवीर भंडारी व जस्टिस दीपक वर्मा ने कहा कि अनाज को भूखे लोगों तक पहुंचाइए, बजाय इसके कि वह नालियों में बहे। खंडपीठ ने केंद्र से यह भी कहा था कि वह हर प्रदेश में एक बड़ा गोदाम बनाने की व्यवस्था सुनिश्चित करे।
यही नहीं प्रदेश में भी अलग-अलग जिलों और संभागों में गोदाम बनाए। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से यह सुनिश्चित करने को भी कहा कि उचित मूल्य की दुकानें महीने भर खुली रहें। खंडपीठ ने यह निर्देश पीयूसीएल द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर दिया। जनहित याचिका सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में भ्रष्टाचार और एफसीआई गोदामों में सड़ रहे अनाज मुद्दे पर दायर की गई थी।
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने सरकार से कहा था कि वह इस अनाज को गरीबी रेखा से ऊपर लोगों को देना बंद करने पर विचार करे और इस सुविधा को बीपीएल और अंत्योदय अन्न योजना के तहत आने वाले लोगों तक ही सीमित रखे। केंद्र ने गुरुवार को हलफनामे में कहा कि उसने पीडीएस के तहत एपीएल लोगों को आपूर्ति के बारे में बीपीएल और एएवाई के तहत आने वाले लोगों की जरूरत के बारे में विमर्श के बाद ही विचार किया है।