बनारसः मोदी के सामने स्थानीय बनाम बाहरी का पेंच?
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आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल से ज़्यादा वाराणसी में लोगों की निगाहें कांग्रेस पर टिकी हुई हैं.
आने वाले चुनाव में मोदी के लिए वाराणसी का
मुक़ाबला कितना आसान या मुश्किल होगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि यहाँ से
कांग्रेस किसको मैदान में उतारेगी.
कांग्रेस की राजनीतिक दशा के मद्देनज़र यह बात कुछ
आश्चर्यजनक ज़रूर लगती है लेकिन विभिन्न वर्गों के लोगों से बातचीत के बाद
वाराणसी की जो तस्वीर सामने आती है वो कुछ ऐसी ही है और कारण सिर्फ़ एक है,
इस नगरी के लोग किसी भी बाहरी उम्मीदवार के मुक़ाबले स्थानीय उम्मीदवार को
चुनना ज़्यादा पसंद करेंगे.
अभी तक जो उम्मीदवार हैं, उनमें से फ़िलहाल मोदी
और समाजवादी पार्टी के कैलाश चौरसिया को 'बाहरी' उम्मीदवार माना जा रहा है.
मोदी तो दूर गुजरात से हैं जबकि चौरसिया निकट के ही मिर्ज़ापुर ज़िले से
समाजवादी पार्टी के विधायक और अखिलेश सरकार के मंत्रिमंडल के सदस्य हैं.
सुरक्षित सीट
बनारस ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष कर्नल रणजीत
उपाध्याय 'बाहरी' उम्मीदवारों के बारे में कहते हैं, "त्रस्त हो चुके
हैं... बहुत तंग आ चुके हैं, बाहरी उम्मीदवारों से."
उपाध्याय ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष होने के अलावा
केंद्रीय ब्राह्मण महासभा के संस्थापक सदस्य भी हैं. यद्यपि वह किसी का नाम
नहीं लेते हैं लेकिन यह साफ़ है कि उनका आक्रोश भारतीय जनता पार्टी के
सांसद मुरली मनोहर जोशी के प्रति है.
यह आक्रोश इतना अधिक है कि उपाध्याय वाराणसी को
मोदी के लिए सुरक्षित सीट नहीं मानते हैं, "सुरक्षित सीट नहीं है." वह आगे
कहते हैं, "कांग्रेस के उम्मीदवार के नाम का इंतज़ार है."
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व जनसम्पर्क
अधिकारी विश्वनाथ पांडे कहते हैं, "यह असोचनीय है कि कोई बाहरी व्यक्ति
यहाँ से चुनाव लड़ेगा. स्थानीय प्रतिनिधित्व जनतंत्र का मूल सिद्धांत है."
वाराणसी के अब तक के सबसे रोचक चुनाव का ज़िक्र
करते हुए पांडे साल 1974 की याद करते हैं, "कमलापति त्रिपाठी और राजनारायण
के बीच हुआ चुनावी मुक़ाबला अत्यंत रोमांचक था. इसमें विशेष बात यह थी कि
दोनों ही स्थानीय उम्मीदवार थे."
कड़ा मुकाबला
यहाँ अंजुमन इंतेज़ामिआ मसाजिद के संयुक्त सचिव
मोहम्मद यासीन भी बाहरी उम्मीदवारों के पक्ष में नहीं हैं. लेकिन उन्हें भी
प्रतीक्षा है अन्य दलों के उम्मीदवारों की.
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र
विभाग के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर कौशल किशोर मिश्रा मोदी को बाहरी उम्मीदवार
मानने को तैयार नहीं हैं.
वह ज़ोर देकर कहते हैं, "मोदी के पूर्वज गुजरात में
रहे थे. मोदी पिछले तीन वर्षों से वाराणसी का अध्ययन कर रहे थे. वे यहाँ
की संस्कृति से भली-भाँति परिचित हैं."
अरविंद केजरीवाल के बारे में प्रोफ़ेसर मिश्रा का
कहना है, "उन्होंने जो खेल दिल्ली में किया, वही यहाँ भी दोहराना चाहते हैं
और उनका वह प्रयास यहाँ सफल नहीं होगा."
अभी तक वाराणसी में स्थानीय उम्मीदवारों में सिर्फ़ बहुजन समाज पार्टी के विजय प्रकाश जायसवाल का नाम है.
यदि कोई अन्य स्थानीय उम्मीदवार यहाँ के राजनीतिक
दंगल में नहीं उतरता है तो क्या बहुजन समाज पार्टी के नाम पर ये मोदी से
कड़ा मुक़ाबला कर पाएंगे? या फिर वाराणसी का मतदाता इस बार किसी बाहरी को ही
चुनेगा.