उस बापू में था दम, यह बापू बेशरम...

नीरेंद्र नागर 
आसाराम बापू के कुकर्मों के बारे में जब पढ़ता-देखता और सुनता हूं तो मुझे इस देश के असली बापू की याद आ जाती है। हालांकि मैं उनके अधिकतर सिद्धांतों से चाहे वे राजनीतिक हों, धार्मिक हों या नैतिक, सहमत नहीं हूं लेकिन मैं उसकी हिम्मत और सच्चाई की दाद देता हूं। बंदा जो सोचता था, निर्भीक होकर बोल देता था। वाकई उस बापू में था दम जबकि यह बापू है बेशरम।
आज सोशल मीडिया में उस बापू का मज़ाक उड़ानेवाले बहुत मिल जाएंगे। खासकर बीजेपी के युवा समर्थक जिनको राजनीतिक साहित्य पढ़ने-लिखने से ज़्यादा मतलब नहीं है लेकिन कांग्रेस से जुड़ी हर चीज़ का विरोध करना जिनका शगल बन गया है। हफ्ता भर पहले मैंने ऑफिस कैंटीन में दो-तीन ऐसे ही युवाओं को गांधी के बारे में कहते सुना, 'बुड्ढा लड़कियों के सहारे क्यों चलता था?' और फिर इसी बात पर ठहाके लगे।
आज पता नहीं वे लोग आसाराम बापू के बारे में क्या बोल रहे होंगे? शायद यही कि यह तो कांग्रेस की घिनौनी चाल है हिंदू साधु-संतों को बदनाम करने की। बीजेपी के नेता भाई कैलाश विजयवर्गीय और बहन उमा भारती तो अपने इस बापू को पाक-साफ बता ही चुके हैं। लेकिन विवेकानंद के परम भक्त अपने नरेंद्र भाई मोदी जो अपने ट्विटर अकाउंट पर रक्षाबंधन से लेकर बस ऐक्सिडेंट तक पर ट्वीट करते रहते हैं, आखिर सेक्शुअल असॉल्ट का आरोप झेल रहे इस बापू के मामले में आश्चर्यजनक रूप से खामोश क्यों हैं? क्या केवल इसलिए कि मामला हिंदू संत का है और उनको लगता है कि हिंदू साधु-संत तो कभी कुछ गलत कर ही नहीं सकते?
असल में मामला हिंदू-मुस्लिम-ईसाई का है ही नहीं। सहमति से या जबर्दस्ती से सेक्स करनेवाले पंडितों, पादरियों और मौलवियों की खबरें हम पढ़ते ही रहते हैं। सच तो यह है कि ये पंडित, मौलवी और पादरी भी उतने ही इंसान हैं जितने आप और हम। सेक्स की इच्छा उनमें भी वैसे ही जगती है, जैसे कि आपमें और हममें। लेकिन खुद को दुनिया से अलग दिखाने के चक्कर में ये ऐसा जताते हैं मानो ये आम इंसान से अलग हों, मानो इन्होंने अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण कर रखा हो। वास्तव में वे ऐसे हैं नहीं। 
सेक्स एक बायलॉजिकल ज़रूरत है जैसे भूख-प्यास बायलॉजिकल ज़रूरत है। आपने देखा होगा कि जानवर किस तरह खाने-पीने की वस्तु के लिए झगड़ते हैं। इंसान भी पहले इसी तरह लड़ता-झगड़ता था। सेक्स की इच्छा हुई तो किसी स्त्री के साथ सहमति के साथ या जबर्दस्ती करके अपनी इच्छा पूरी की। आपने कुत्तों को कुतियाओं के साथ या सांड़ों को गायों के साथ इसी तरह सेक्स करते देखा होगा। मगर जैसे-जैसे इंसान सभ्य हुआ, यह जबर्दस्ती बुरी मानी जाने लगी। परिवार संस्था शुरू हुई और स्त्रियां एक ही पुरुष यानी अपने पति के साथ बंध गईं।
स्त्री तो बंध गई लेकिन पुरुष नहीं बंधा। उसकी स्वच्छंदता कायम रही और वह एकाधिक स्त्रियों का सुख भोगने के लिए मौके तलाशने लगा। यदि समृद्ध हुआ तो एक से ज्यादा शादियां कीं। दबंग हुआ तो जोर-जबरदस्ती की। युद्ध के समय पराजित राज्य की स्त्रियों को लूट का माल समझ कर नोचा-खसोटा। संक्षेप में परिवार में रहते हुए वह सभ्य इंसान बना रहता था लेकिन जैसे ही कोई अनुकूल स्थिति आई, वह जबर्दस्ती करनेवाला शैतान बन जाता। 
सेक्स की इच्छा असली बापू यानी गांधी के अंदर भी थी और नकली बापू आसाराम के अंदर भी। लेकिन दोनों में फ़र्क यह है कि जहां गांधी ने इसको पहचाना और उसे नियंत्रण में करने की कोशिशें कीं, वहीं नकली बापू ने उसको बाहर आने दिया और जैसे ही पकड़े गए, वह एक-के-बाद-एक झूठ बोलने लगे। पहले अपने प्रवक्ता से कहलवाया कि बापू तो वहां थे ही नहीं, वह उससे मिले ही नहीं। फिर जब फार्म हाउस के मालिक ने पोल खोल दी तो कहा कि फार्म हाउस तो छोटा सा है, मैंने कुछ किया होता या लड़की चिल्लाई होती तो सभी सुन लेते।
मामले की सच्चाई क्या है, इसे अभी पुलिस और न्यायालय के लिए छोड़ देते हैं। लेकिन सवाल तो यह है कि आप भाग क्यों रहे हैं? आप झूठ क्यों बोल रहे हैं? गांधी ने तो झूठ नहीं बोला। वह जब निर्वस्त्र लड़कियों के साथ हमबिस्तर हुए यह जांचने के लिए कि उनका ब्रह्मचर्य का संकल्प कितना मजबूत है तो उन्होंने इस परीक्षण और इसके परिणामों को दुनिया से छुपाया नहीं। दरअसल जब आप ईमानदार होते हैं तो आप सच बोलते हैं। और जब आपमें बेईमानी आ जाती है तो आप झूठ का सहारा लेते हैं। आसाराम लगातार झूठ का सहारा ले रहे हैं। इसी से उनके चरित्र पर उत्पन्न संदेह पुख्ता होता है।

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