उत्तर भारत को मिला पहला एक्सप्रेसवे



दिल्ली : महाराष्ट्र के तत्कालीन पीडब्लूडी मिनिस्टर नितिन गडकरी ने एक एक्स्प्रेस वे बनाया था. मुंबई से पुणे के बीच. उस एक्स्प्रेसवे की बदौलत वे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गये. आज भी उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि वही एक्स्प्रेसवे है जो मुंबई से पुणे के बीच बना था. लेकिन यह एक्सप्रेसवे जो ग्रेटर नोएडा से आगरा तक बनाया गया है, उसका ख्वाब देखनेवाली मायावती के नसीब में वह दिन भी नहीं आया जबकि वे इसका उद्घाटन कर सकतीं. उद्घाटन किया मायावती को हराकर सत्ता में आये समाजवादी पार्टी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने. वह भी नोएडा आये बिना. लखनऊ से ही बटन दबाकर उन्होंने यमुना एक्सप्रेसवे को जनता को समर्पित कर दिया. करीब 165 किलोमीटर लंबे इस एक्सप्रेसवे के उद्घाटन में नोएडा न आकर अखिलेश ने एक तरह से अपना राजनीतिक बचाव ही किया है लेकिन मायावती के किसी और फैसले का उत्तर प्रदेश को कोई लाभ मिला हो या न मिला हो, इस फैसले ने उत्तर भारत के इतिहास में एक आधुनिक अध्याय जरूर जोड़ दिया. उत्तर भारत को पहला एक्सप्रेस वे दे दिया.
नोएडा के बाद ग्रेटर नोएडा की स्थापना उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है. यह बात सच है कि ग्रेटर नोएडा और उसके आगे के फैलाव में जमीन की धोखाधड़ी बड़े पैमाने पर की गई और किसानों तथा औद्योगिक घरानों के बीच जमकर खींचतान हुई. भट्टा पारसौल में हुई गोलीबारी और किसानों के साथ की गई जबर्दस्ती को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. लेकिन जिस तेजी से दिल्ली में एनसीआर का विस्तार हो रहा है, उसमें जमीन की मांग अभी और तेज होगी. अच्छा हो कि सरकार किसानों की सहभागिता के साथ इसे आगे बढ़ाए जिसमें अब तक सरकार और औद्योगिक घराने दोनों ही चूकते चले आ रहे हैं.
यह एक्सप्रेस वे इसी तरह के ज्यादतियों के कारण अस्तित्व में आया है. किसानों की जमीन लेने के लिए न जाने कौन कौन से हथकण्डे अपनाए गये. पहले ताज एक्सप्रेसवे के नाम से यह सड़क बननी थी लेकिन विवादों में फंसने के बाद इस परियोजना का नाम बदलकर नया नोटिफिकेशन जारी किया गया और आनन फानन में इस एक्स्प्रेसवे के काम को पूरा किया गया. करीब 165 किलोमीटर लंबे इस एक्सप्रेसवे के बनाने पर जेपी ने 12 हजार 800 करोड़ रूपये खर्च किये हैं. जेपी का यह एक्सप्रेसवे पूरी तरह से एक्सेस कन्ट्रोल्ड एक्सप्रेसवे है. इसका मतलब यह है कि यह सड़क जिन इलाकों से गुजरेगी वहां के स्थानीय लोग इस सड़क का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे. स्थानीय लोगों, पशुओं और साधनों को एक्सप्रेसवे पर आने से रोकने के लिए पूरे रास्ते में बाड़ लगाई गई है. स्थानीय लोगों के लिए ऐसे एक्सप्रेस वे किनारे दोनों ओर सर्विस रोड बनाई जाती है. यहां भी प्रावधान तो किया गया है लेकिन सर्विस रोड का काम अभी पूरा का पूरा अधूरा है.
भविष्य में इस एक्सप्रेसवे के किनारे कई छोटे बड़े शहर आकार लेंगे. जैसी कि जेपी ग्रुप की योजना है वह हर टोल प्वाइंट पर एक शहर विकसित करने की योजना बनाए हुए है. इस एक्सप्रेसवे पर तीन टोल हैं. पहला ग्रेटर नोएडा जहां पहले ही जेपी स्पोर्ट्स सिटी पर काम शुरू कर चुका है और फार्मूला वन रेसिंग भी करा चुका है. दूसरा अलीगढ़ और मथुरा के बीच में तथा तीसरा आगरा से पहले. इन तीनों जगहों पर भविष्य में कौन सा शहर आकार लेगा पता नहीं लेकिन एक्सप्रेसवे पर गुजरते हुए बिल्डरों द्वारा लगाई जा रही बाड़ बता देती है कि एक्सप्रेसवे भविष्य का सबसे मंहगा रास्ता साबित होगा.
ग्रेटर नोएडा से आगरा के बीच के बने इस एक्सप्रेसवे को अभी पंद्रह अगस्त तक टोल फ्री रखा जाएगा लेकिन पंद्रह अगस्त के बाद आगरा जाकर वापस आने पर एक निजी वाहन को करीब 500 रूपये चुकाने होंगे. निश्चित रूप से यह मंहगा एक्सप्रेसवे होगा जिसपर चलने के लिए आम आदमी सोच भी नहीं सकता लेकिन अगर उत्तर प्रदेश सरकार ने जन परिवहन के लिए भी इस रास्ते के द्वार खोल दिये तो कम से कम सरकारी बसों में सफर करते हुए वे लोग विकास के इस द्रुतगामी महामार्ग पर चढ़ाई कर सकेंगे जिन पर चढ़ाई करके विकास के ऐसी इबारतें लिखी जाती हैं.

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