'काले कोट में साफ इंसान चाहिए'

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तहलका टुडे टीम
नई दिल्ली,न्यायपालिका पर पड़ती करप्शन की छाया से परेशान चीफ जस्टिस एस. एच. कपाडि़या ने शनिवार को कहा कि अब जरूरत है काले कोट में एक साफ आदमी की। साथ ही राजनेताओं से भी कहा कि वे भ्रष्ट जजों को संरक्षण न दें। जस्टिस कपाडि़या ने जजों को आगाह किया कि वे सुपर सांसदों की तरह बर्ताव न करें। अदालतों का काम कानून की समीक्षा करना है न कि अपने कानून समाज पर लादना।
चीफ जस्टिस ने कहा, हमें उदाहरण पेश करने होंगे ताकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और सत्यनिष्ठा बनी रहे। जजों को आत्म-संयम बनाए रखना चाहिए और वकीलों, राजनीतिक दलों, उनके नेताओं या मंत्रियों के संपर्क से बचना चाहिए। इसके अलावा लोअर कोर्ट के जजों के प्रशासनिक कामकाज में भी दखल नहीं देना चाहिए।
कपाडि़या पांचवें एम. सी. सीतलवाड़ स्मारक व्याख्यान में बोल रहे थे। उनकी टिप्पणी को महाभियोग की कार्यवाही का सामना कर रहे जस्टिस पी. डी. दिनाकरन और सौमित्र सेन से जुड़े कथित करप्शन के मामलों के संदर्भ में अहम माना जा रहा है।
हालांकि चीफ जस्टिस ने उम्मीद जताते हुए कहा कि मैं हमेशा आशावादी रहा हूं और जहां तक सुप्रीम कोर्ट की सत्यनिष्ठा और विश्वसनीयता का सवाल है मैं देख सकता हूं कि भविष्य में चीजें सुधरेंगी।
अपना उदाहरण देते हुए कपाडि़या ने कहा कि मैं घुलने मिलने से बचता रहा हूं, यहां तक कि किसी गोल्फ क्लब की सदस्यता भी नहीं ली क्योंकि इससे मुझे वकीलों, राजनेताओं आदि से रोज मिलना होगा जिसका लोगों पर गलत असर पड़ेगा।
न्यायपालिका को कानून बनाने वाली संस्था की भूमिका अख्तियार करने से रोकते हुए उन्होंने कहा कि हमें ध्यान रखना चाहिए कि संविधान ने शक्तियों का बंटवारा किया है। हमारा काम कानून की समीक्षा है न कि समाज पर अपने कानून लादना। जरूरत पड़ने पर सरकार और विधायिका को गलत फैसलों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
कोर्ट की आलोचना पर कपाडि़या ने कहा कि जजों की निष्पक्ष आलोचना होनी चाहिए लेकिन गैरजिम्मेदाराना व अनुचित आलोचना से बचना चाहिए। असल में अधिकतर लोगों की यही इच्छा होती है कि अगर फैसला उनके पक्ष में है तभी वह न्याय है।
चीफ जस्टिस ने कहा, हमें उदाहरण पेश करने होंगे ताकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और सत्यनिष्ठा बनी रहे। जजों को आत्म-संयम बनाए रखना चाहिए और वकीलों, राजनीतिक दलों, उनके नेताओं या मंत्रियों के संपर्क से बचना चाहिए। इसके अलावा लोअर कोर्ट के जजों के प्रशासनिक कामकाज में भी दखल नहीं देना चाहिए।
कपाडि़या पांचवें एम. सी. सीतलवाड़ स्मारक व्याख्यान में बोल रहे थे। उनकी टिप्पणी को महाभियोग की कार्यवाही का सामना कर रहे जस्टिस पी. डी. दिनाकरन और सौमित्र सेन से जुड़े कथित करप्शन के मामलों के संदर्भ में अहम माना जा रहा है।
हालांकि चीफ जस्टिस ने उम्मीद जताते हुए कहा कि मैं हमेशा आशावादी रहा हूं और जहां तक सुप्रीम कोर्ट की सत्यनिष्ठा और विश्वसनीयता का सवाल है मैं देख सकता हूं कि भविष्य में चीजें सुधरेंगी।
अपना उदाहरण देते हुए कपाडि़या ने कहा कि मैं घुलने मिलने से बचता रहा हूं, यहां तक कि किसी गोल्फ क्लब की सदस्यता भी नहीं ली क्योंकि इससे मुझे वकीलों, राजनेताओं आदि से रोज मिलना होगा जिसका लोगों पर गलत असर पड़ेगा।
न्यायपालिका को कानून बनाने वाली संस्था की भूमिका अख्तियार करने से रोकते हुए उन्होंने कहा कि हमें ध्यान रखना चाहिए कि संविधान ने शक्तियों का बंटवारा किया है। हमारा काम कानून की समीक्षा है न कि समाज पर अपने कानून लादना। जरूरत पड़ने पर सरकार और विधायिका को गलत फैसलों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
कोर्ट की आलोचना पर कपाडि़या ने कहा कि जजों की निष्पक्ष आलोचना होनी चाहिए लेकिन गैरजिम्मेदाराना व अनुचित आलोचना से बचना चाहिए। असल में अधिकतर लोगों की यही इच्छा होती है कि अगर फैसला उनके पक्ष में है तभी वह न्याय है।