नाजायज रिश्ते का शिकार बनी युवती

किरन बेदी
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भारत की पहली महिला आइपीएस (1972 बैच) अधिकारी होने का गौरव प्राप्त है। पुलिस अधिकारी के रूप में उन्होंने अपने दायित्वों का न केवल निष्ठा एवं ईमानदारी से निर्वहन किया, बल्कि इस प्रक्रिया में अनेक बार वह विवादास्पद भी रहीं। वह 'सजा के बजाय सुधार' में विश्वास करने वाली पुलिस ऑफिसर रही हैं। तिहाड़ जेल की महानिरीक्षक के रूप में अपनी अद्वितीय कार्यशैली से उन्होंने दुनिया की सबसे बदनाम जेल का कायाकल्प किया जिसके फलस्वरूप उन्हें रैमन मैगसायसाय पुरस्कार प्राप्त हुआ। समूची पुरस्कार राशि को डॉ. बेदी ने अपनी बहुचर्चित थीम 'टु सेव द नेक्स्ट विक्टिम' के अंतर्गत कैदियों के बच्चों की शिक्षा पर खर्च कर दिया। उन्होंने नशामुक्ति और अपराध मुक्ति के उद्देश्य की पूर्ति हेतु 'नवज्योति'एवं 'इंडिया विजन' नामक गैर-सरकारी सामाजिक संस्थाओं की स्थापना की। सामान्य जनमानस को पुलिस के कर्तव्यों एवं अधिकारों की जानकारी देने एवं उन्हें सामान्य न्यायिक प्रक्रिया से अवगत कराने के लिए 'सेफर इंडिया' नामक वेबसाइट भी लॉन्च की। अपराध से जुड़े विषयों पर अपनी बेबाक राय के लिए वह दुनिया भर में चर्चित हैं। सामाजिक एवं घरेलू समस्याओं का 'म्युचुअल' समाधान प्रस्तुत करने के लिए स्टार टीवी पर 'आपकी कचहरी-किरन के 'साथ' उनका नवीनतम प्रयास है।
लड़की की शादी बेहद नाजुक मसला होता है। यहां तक कि किसी भी रिश्तेदार द्वारा तय कराई गई शादी में भी लड़के के बारे में सारी जानकारी जुटाना जरूरी है। पूर्व आईपीएस अधिकारी किरन बेदी सुना रही हैं एक ऐसी ही लड़की की कहानी, जिसकी शादी उसके एक रिश्तेदार ने कराई और बाद में उस लड़की को लड़के की असलियत पता चली...
मेरा नाम प्रियंका (बदला हुआ नाम) है और उम्र 19 साल है। मैं दिल्ली के एक दलित परिवार में पली-बढ़ी। हम चार भाई-बहन हैं। मैं सबसे छोटी हूं। पिता एक प्राइवेट फैक्ट्री में काम करते हैं और मां लोगों के घरों में सफाई का काम करती है। मेरा बड़ा भाई भी एक कारखाने में काम करता है।
आर्थिक स्थिति अच्छी न होने और परिवार वालों की रूढ़िवादी सोच के कारण मैं ज्यादा पढ़-लिख न सकी। हाई स्कूल (दसवीं) में फेल होने के कारण मेरे पिता ने पढ़ाई छुड़ा दी और मां का हाथ बंटाने का आदेश दिया। पढ़ने की इच्छा पूरी नहीं हुई तो मैंने कटिंग-टेलरिंग का वोकेशनल कोर्स कर लिया। आज वही हुनर मेरी आत्मनिर्भरता का आधार है।
मैं 18 साल की हुई तो मेरे घर वालों को मेरी शादी की फिक्र सताने लगी। मेरे एक रिश्तेदार ने हरियाणा के एक कस्बे में मेरे योग्य एक उचित 'वर' के बारे में बताया। चूंकि रिश्ते का प्रस्ताव नजदीकी रिश्तेदार की ओर से आया था, इसलिए मेरे पिता ने ज्यादा खोजबीन जरूरी नहीं समझा।
लड़के की कद-काठी देख कर ही मेरे घर वाले शादी के लिए राजी हो गए। रिश्तेदार ने बताया था कि लड़के का अपना मकान है और फैक्ट्री में तीन हजार रुपये सैलरी पाता है। पिता जी इतनी जानकारी से ही संतुष्ट हो गए और 15 मार्च 2005 को राजकुमार के साथ शादी की तारीख पक्की कर दी।
बारात पहुंचने तक सब कुछ ठीकठाक नजर आ रहा था। मैं भी एक नए और खुशहाल जीवन के सपने देख रही थी। अचानक दरवाजे पर शोर मचा। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह कहासुनी किससे और क्यों हो रही है।
थोड़ी देर बाद मेरी एक सहेली ने आकर मुझे बताया कि जिस रिश्तेदार ने रिश्ता तय कराया था वह लड़के वालों से पांच हजार रुपये मांग रहा है। पैसे न मिलने पर वह रिश्ता तोड़ने की धमकी भी दे रहा है। मेरे घर वाले यह 'सीन' देख कर हक्का-बक्का रह गए। बहरहाल, मेरी शादी हो गई और मैं 'पिया के घर' पानीपत पहुंच गई।
ससुराल में एक रात गुजारने के बाद रिवाज के मुताबिक अगले दिन मैं पति के साथ मायके आई। मां के घर दो दिन रहने के बाद मैं फिर वापस ससुराल गई। इस बार वहां का नजारा बदला हुआ था। मेरी चचिया सास मेरे पति को मेरे पास न आने देती।
मैंने पड़ोसियों को कानाफूसी करते सुना कि राजकुमार रतीराम का नहीं, उसके बड़े भाई का लड़का है। रतीराम ने अपने घर की 'इज्जत' को नीलाम होने से बचाने के लिए अपने भतीजे की शादी कराई है ताकि लोग यह न जान सकें कि राजकुमार के अपनी चाची के साथ नाजायज संबंध हैं।
इस जानकारी से मेरे होश उड़ गये। मेरे माता-पिता ने मेरी शादी को मुकद्दर का खेल मानकर मुझे ससुराल में बने रहने और पति के सुधरने तक इंतजार करने की सलाह दी, लेकिन मेरे लिए वहां एक पल भी रहना दुश्वार था। इसी बीच मुझे पता चला कि राजकुमार न तो किसी कारखाने में काम करता है और न ही यह मकान उसका अपना है।
मैंने राजकुमार से सच बताने का आग्रह किया तो बदले में उसने मेरी 'धुनाई' कर दी। मैं उसका वह रूप देखकर सहम गई और छुटकारा पाने का उपाय सोचने लगी।
एक दिन अखबार में मैंने अपनी जैसी एक अन्य बदनसीब लड़की की कहानी पढ़ी। उसकी शादी भी धोखे से झूठ बोल कर कराई गई थी। नव ज्योति फैमिली काउंसलिंग सेंटर की सहायता से उसका शोषण करने वाले ससुरालियों से छुटकारा मिला था।
मैं अपनी मां के साथ सेंटर गई। काउंसलर मेरे पति को तो उसके नाजायज रिश्ते से बाहर निकालने में सफल न हो सकी, अलबत्ता राजकुमार से मेरा पिंड जरूर छुड़वा दिया। इतना ही नहीं, नव ज्योति वालों ने शादी में हुए खर्च की आंशिक भरपाई भी करा दी

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