मायाराज में इन्तिहाँ हो गई......

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कानपूर .माया राज में इन्तिहाँ हो गई..! महीने गुज़र चुके है दिव्या की आत्मा को तकलीफ के साथ हर इंसाफ पसंद इंसानों की धड़कने तेज़ हो गयी है,परदेश में न खौफ रहा अयोध्या मामले का ,ना नक्सालियो का ना ही आतंकवादियो का डर सिर्फ है माया की ज़ालिम पुलिस का
कानपूर की कक्षा 6 की एक मासूम बच्ची के साथ उस के स्कूल मेँ ही बलात्कार हुआ। वह भी स्कूल के प्रबंधक के बेटे के द्वारा। विद्या का मंदिर माने जाने वाले पवित्र स्थान मेँ वहशीपन की सारी सीमाएँ टूट गईँ।बच्ची खून से लथपथ होकर चिल्लाती रही और दरिँदा उसे भोगता रहा। इतने परभी उसकी हवस शांत नहीं हुई तो इलेक्ट्रिक ड्रिल से उसके यौनांगोँ को क्षत-विक्षत कर दिया। 11 साल की उस मासूम के दर्द की भीषणता का अंदाजा आप इसी बात हैँ कि उसके उत्सर्जन अंगोँ के साथ प्रजनन अंग तक क्षतिग्रस्त हो गए जिसे देखकर डाक्टर तक दहशत मेँ आ गए। इतना सब होने के बाद खून से लथपथ बच्ची को उसकी कक्षा मेँ छोड़ दिया गया जहाँ से किसी ने उसे उसके घर पर छोड़ा। जब पड़ोसियोँ ने उसकी माँ जो किसी शापिंग माल मेँ मामूली नौकरी करती थी को सूचित किया। वे लोग उसे लेकर अस्पताल पहुँचे जहाँ उसने दम तोड़ दिया।"
"क्या सोच रहे हैँ आप, यही न कि ऐसे बर्बर पापी के साथ क्या सलूक किया जाना चाहिए? पर ये त्रासद प्रकरण अभी खत्म नहीँ हुआ है। हमारी विलक्षण साहसी पुलिस की भूमिका देखिए। जिला प्रशासन ने पोस्टमार्टम के लिए 4 डाक्टरोँ का एक विशेष पैनल बनाया ताकि निष्पक्ष जाँच हो सके। तब जिस हत्यारे की उपर की चमड़ी उधेड़कर उसे सीँखचोँ मेँ घुसेड़ देना चाहिए था उससे मोटी रकम लेकर पोस्टमार्टम रिपोर्ट बदलवाने के लिए डाक्टरोँ को रिश्वत देने पहुँच गए। जब बात नहीँ बनी तो उन्हेँ धमकाया भी पर डाक्टरोँ
ने सही रिपोर्ट दी। इस पर रिपोर्ट की व्याख्या शुरू कर दी कि जाँच मेँ सीमन नहीँ पाया गया। अरे इतना खून बह जाने के बाद सीमन क्या रखा रहेगा?कहने लगे कि बच्ची पहले से गर्भवती थी। जरा सोचिए.....।
पुलिस की मनमानी यहीँ समाप्त नहीँ हुई। प्रदर्शन कर रहेअभिभावकोँ व परिजनोँ की पिटाई कर दी। यहाँ तक कि उस बच्ची की माँ को भी लाठियोँ से बुरी तरह पीटा। और देखिए इस प्रकरण को सुर्खियोँ मेँ लाने वाले अखबार हिन्दुस्तान के स्थानीय संपादक व पत्रकारोँ को झूठा केस लगा देने की धमकी दी। फिर भी खबरेँ नहीँ थमीँ तो कार्यालय मेँ तोड़फोड़ कर कर्मचारियोँ की पिटाई कर दी जिसकी पूरे मीडिया जगत ने निँदा की और विरोध किया। तब समाज के कुछ सक्षम तथा जिम्मेदार लोगोँ के आगे आने तथा जनाक्रोश को देखते हुए दबाव मेँ आकर अपराधी को गिरफ्तार किया।"
क्या इस पूरे प्रकरण से नहीँ लगता कि पुलिस का नंगनाच इन दिनोँ ज्यादा बढ़ गया है? यह अकेला कांड नहीँ है, ऐसे जाने कितने प्रकरण हैँ जोजनता जानती है। कितनी फर्जी मुठभेड़ें दिखाकर अपनी बहादुरी का दम भरनेवाली पुलिस ने यह मामला इसलिए दबाने की कोशिश की क्योँकि अपराधी से रकम का नियमित बंदोबस्त था। कोई मरे कोई मल्हार गाए। क्या इन पुलिसियोँ के घर मेँ बेटियाँ नहीँ हैँ या ये उन्हेँ भी भोगते हैँ? हाय रे लोकतंत्र! और हाय रे निकम्मी पुलिस! हमारे महापुरुष अगर आज होते तो शर्म से मर गए होते। इस मामले मेँ जितना बड़ा गुनाह उस अपराधी ने किया है उससे भी बड़ी गुनहगार पुलिस है।
इस संदर्भ मेँ मीडिया और खासतौर पर हिन्दुस्तान बधाई का पात्र है
जिसने इस पूरे प्रकरण पर सच की आवाज़ बुलंद की और जनजागरण किया। चूँकि
जनता की आवाज़ से ही पुलिस मजबूर हुई हिन्दुस्तान की पूरी यूनिट से अपेक्षा करता हूँ कि वे आगे भी ऐसे ही निर्भीक पत्रकारिता करते रहेँगे। यह प्रकरण तो एक बारगी
पत्र के लिए खुद की भी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था।
अंत मेँ मुख्यमंत्री मायावती तुम से अपील है मुलायम और उनके लोगो द्वारा गेस्ट हाउस में तुम्हारी इज्ज़त पर हुए हमले को ये पुलिस भी न रोक पाई सिर्फ भगवान ने ही तुम्हारी आवाज़ को सुना और तुम्हे बचाया यही नहीं तुमको सत्ता मिली की ज़ालिम से मज़लूमो को बचाओ,माँ बहेन बेटियों की इज्ज़त पर निगाह रखने वालो की आँखे फोड़ दो,लेकिन आप की सरकार में इस तरह आपकी पुलिस कर रही है उनको इंसाफ दो,यही अपील उस बच्ची के लिए जिसने मुझे द्रवित कर यह सब लिखने को प्रेरित किया। पड़ने वालो से तहलका टुडे की अपील है की इस संदेश को जमकर प्रसारित करेँ ताकि शीर्ष स्तर तक इसकी गूँज पहुँचे और उचित कार्यवाही हो। उस गुनहगार के लिए ऐसी सज़ा तजवीज़ हो जो मौत से भी बदतर हो, फाँसी तो छोटी सज़ा है। जिसे सुनकर ही शैतान तक की रूह काँप जाए और भविष्य मेँ कोई ऐसी घिनौनी करतूत करने के बारे मेँ सोचे भी न।
इंसाफ और आत्मा को शांति मिल सकती है।
ने सही रिपोर्ट दी। इस पर रिपोर्ट की व्याख्या शुरू कर दी कि जाँच मेँ सीमन नहीँ पाया गया। अरे इतना खून बह जाने के बाद सीमन क्या रखा रहेगा?कहने लगे कि बच्ची पहले से गर्भवती थी। जरा सोचिए.....।
पुलिस की मनमानी यहीँ समाप्त नहीँ हुई। प्रदर्शन कर रहेअभिभावकोँ व परिजनोँ की पिटाई कर दी। यहाँ तक कि उस बच्ची की माँ को भी लाठियोँ से बुरी तरह पीटा। और देखिए इस प्रकरण को सुर्खियोँ मेँ लाने वाले अखबार हिन्दुस्तान के स्थानीय संपादक व पत्रकारोँ को झूठा केस लगा देने की धमकी दी। फिर भी खबरेँ नहीँ थमीँ तो कार्यालय मेँ तोड़फोड़ कर कर्मचारियोँ की पिटाई कर दी जिसकी पूरे मीडिया जगत ने निँदा की और विरोध किया। तब समाज के कुछ सक्षम तथा जिम्मेदार लोगोँ के आगे आने तथा जनाक्रोश को देखते हुए दबाव मेँ आकर अपराधी को गिरफ्तार किया।"
क्या इस पूरे प्रकरण से नहीँ लगता कि पुलिस का नंगनाच इन दिनोँ ज्यादा बढ़ गया है? यह अकेला कांड नहीँ है, ऐसे जाने कितने प्रकरण हैँ जोजनता जानती है। कितनी फर्जी मुठभेड़ें दिखाकर अपनी बहादुरी का दम भरनेवाली पुलिस ने यह मामला इसलिए दबाने की कोशिश की क्योँकि अपराधी से रकम का नियमित बंदोबस्त था। कोई मरे कोई मल्हार गाए। क्या इन पुलिसियोँ के घर मेँ बेटियाँ नहीँ हैँ या ये उन्हेँ भी भोगते हैँ? हाय रे लोकतंत्र! और हाय रे निकम्मी पुलिस! हमारे महापुरुष अगर आज होते तो शर्म से मर गए होते। इस मामले मेँ जितना बड़ा गुनाह उस अपराधी ने किया है उससे भी बड़ी गुनहगार पुलिस है।
इस संदर्भ मेँ मीडिया और खासतौर पर हिन्दुस्तान बधाई का पात्र है
जिसने इस पूरे प्रकरण पर सच की आवाज़ बुलंद की और जनजागरण किया। चूँकि
जनता की आवाज़ से ही पुलिस मजबूर हुई हिन्दुस्तान की पूरी यूनिट से अपेक्षा करता हूँ कि वे आगे भी ऐसे ही निर्भीक पत्रकारिता करते रहेँगे। यह प्रकरण तो एक बारगी
पत्र के लिए खुद की भी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था।
अंत मेँ मुख्यमंत्री मायावती तुम से अपील है मुलायम और उनके लोगो द्वारा गेस्ट हाउस में तुम्हारी इज्ज़त पर हुए हमले को ये पुलिस भी न रोक पाई सिर्फ भगवान ने ही तुम्हारी आवाज़ को सुना और तुम्हे बचाया यही नहीं तुमको सत्ता मिली की ज़ालिम से मज़लूमो को बचाओ,माँ बहेन बेटियों की इज्ज़त पर निगाह रखने वालो की आँखे फोड़ दो,लेकिन आप की सरकार में इस तरह आपकी पुलिस कर रही है उनको इंसाफ दो,यही अपील उस बच्ची के लिए जिसने मुझे द्रवित कर यह सब लिखने को प्रेरित किया। पड़ने वालो से तहलका टुडे की अपील है की इस संदेश को जमकर प्रसारित करेँ ताकि शीर्ष स्तर तक इसकी गूँज पहुँचे और उचित कार्यवाही हो। उस गुनहगार के लिए ऐसी सज़ा तजवीज़ हो जो मौत से भी बदतर हो, फाँसी तो छोटी सज़ा है। जिसे सुनकर ही शैतान तक की रूह काँप जाए और भविष्य मेँ कोई ऐसी घिनौनी करतूत करने के बारे मेँ सोचे भी न।
इंसाफ और आत्मा को शांति मिल सकती है।