शिया मुस्लिमों का संगठन अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए 15 लाख देने को तैयार

https://tehalkatodayindia.blogspot.com/2010/10/15.html
लखनऊ. देश सांप्रदायिकता की कई कड़वी यादों को भुलाकर आगे बढ़ चला है। गंगा जमुनी तहजीब के लिए मशहूर इस देश की मजहबी फिजा में मिठास घुलने लगी है। अयोध्या में विवादित ज़मीन के मालिकाना हक के मुकदमे का फैसला आने के बाद मुस्लिम समाज से विवादित जगह पर मुस्लिमों को मिली ज़मीन छोड़ने और कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील न करने की आवाजें उठने लगी हैं। लखनऊ का एक युवा शिया मुस्लिमों का संगठन तो अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए 15 लाख रुपये भी देने को तैयार है। यह संगठन सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड से यह अपील भी करेगा कि वह इस मामले में आए इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट न जाएं।
विवाद पर हाई कोर्ट का फैसला आ जाने के बाद मुस्लिम समुदाय का एक हिस्सा बेहद साहसिक और सौहार्दपूर्ण नजरिये के साथ सामने आ रहा है। कई सामाजिक कार्यकर्ता, धार्मिक नेता और इस्लाम के जानकार कह रहे हैं कि राम जन्मभूमि से कहीं दूर मस्जिद बनाई जा सकती है। इस्लामिक मामलों की जानकार ज़ीनत शौकत अली, प्रगतिशील धड़े के विद्धान माने जाने वाले मौलाना वाहिदुद्दीन खान और मुस्लिम्स फॉर सेक्युलर डिमोक्रेसी (एमएसडी) का यह भी मानना है कि मुस्लिमों को इस विवाद पर हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट नहीं जाना चाहिए। मुस्लिम समुदाय के इस धड़े का मानना है कि इस कदम से मुसलमानों की छवि बेहतर और मजबूत करने में मदद मिलेगी।
शिया हुसैनी टाइगर्स के चीफ शमील शम्सी ने लखनऊ में पत्रकारों से बातचीत में कहा, 'हम सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड से औपचारिक तौर पर गुजारिश करेंगे कि वे कोर्ट के फैसले के खिलाफ कोई अपील न करें ताकि लंबे समय से चल रहे इस झगड़े को हमेशा के लिए खत्म कर दिया जाए।' शम्सी ने यह भी कहा कि इस अपील को लेकर संगठन का एक प्रतिनिधिमंडल ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के पास भी जाएगा। शम्सी शिया मुस्लिम धर्मगुरु और विद्वान मौलाना कल्बे सादिक के नजदीक के रिश्तेदार हैं। मौलाना सादिक मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वरिष्ठ उपाध्यक्ष हैं। कल्बे सादिक के चचेरे भाई मौलाना कल्बे जव्वाद भी शिया मुसलमानों के गुरु हैं। मौलाना जव्वाद हुसैनी टाइगर्स के मुख्य संरक्षक हैं।
इस मामले पर बयान देने के लिए मौलाना कल्बे सादिक बीमार होने की वजह से उपलब्ध नहीं हो पाए। शम्सी ने विभिन्न मुस्लिम नेताओं को याद दिलाया कि सभी ने यह वादा किया था कि वे कोर्ट के फैसले को हर हाल में मानेंगे। शम्सी के मुताबिक सबको अपने वादे पर खरा उतरना चाहिए। शम्सी के अनुसार, 'इस विवाद को खत्म करने के लिए बोर्ड को पहल करनी चाहिए।'
युवा शिया मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व करने वाले हुसैनी टाइगर्स का मानना है, 'कोर्ट के आदेश ने देश को यह मौका दिया है कि दुनिया के सामने हम यह साबित कर सकें कि यह मुल्क सांप्रदायिक सौहार्द की ऐसी अनूठी मिसाल पेश कर सकता है, जिसमें मुस्लिम हिंदू मंदिर के निर्माण में सहयोग करें और हिंदू मस्जिद के निर्माण में। ऐसा करने से कोर्ट के आदेश का उसके भावों के साथ पूरा पालन भी हो जाएगा।' गौरतलब है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने 30 सितंबर को सुनाए गए अपने फैसले में कहा था कि विवादित ज़मीन को तीन हिस्सों में बांटते हुए एक हिस्सा रामलला विराजमान, दूसरा निर्मोही अखाड़े और तीसरा हिस्सा सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड को दे दिया जाए। साथ ही कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि बाबरी मस्जिद जिस जगह पर मौजूद थी, वह भगवान राम का जन्मस्थान है।
विवाद पर हाई कोर्ट का फैसला आ जाने के बाद मुस्लिम समुदाय का एक हिस्सा बेहद साहसिक और सौहार्दपूर्ण नजरिये के साथ सामने आ रहा है। कई सामाजिक कार्यकर्ता, धार्मिक नेता और इस्लाम के जानकार कह रहे हैं कि राम जन्मभूमि से कहीं दूर मस्जिद बनाई जा सकती है। इस्लामिक मामलों की जानकार ज़ीनत शौकत अली, प्रगतिशील धड़े के विद्धान माने जाने वाले मौलाना वाहिदुद्दीन खान और मुस्लिम्स फॉर सेक्युलर डिमोक्रेसी (एमएसडी) का यह भी मानना है कि मुस्लिमों को इस विवाद पर हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट नहीं जाना चाहिए। मुस्लिम समुदाय के इस धड़े का मानना है कि इस कदम से मुसलमानों की छवि बेहतर और मजबूत करने में मदद मिलेगी।
शिया हुसैनी टाइगर्स के चीफ शमील शम्सी ने लखनऊ में पत्रकारों से बातचीत में कहा, 'हम सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड से औपचारिक तौर पर गुजारिश करेंगे कि वे कोर्ट के फैसले के खिलाफ कोई अपील न करें ताकि लंबे समय से चल रहे इस झगड़े को हमेशा के लिए खत्म कर दिया जाए।' शम्सी ने यह भी कहा कि इस अपील को लेकर संगठन का एक प्रतिनिधिमंडल ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के पास भी जाएगा। शम्सी शिया मुस्लिम धर्मगुरु और विद्वान मौलाना कल्बे सादिक के नजदीक के रिश्तेदार हैं। मौलाना सादिक मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वरिष्ठ उपाध्यक्ष हैं। कल्बे सादिक के चचेरे भाई मौलाना कल्बे जव्वाद भी शिया मुसलमानों के गुरु हैं। मौलाना जव्वाद हुसैनी टाइगर्स के मुख्य संरक्षक हैं।
इस मामले पर बयान देने के लिए मौलाना कल्बे सादिक बीमार होने की वजह से उपलब्ध नहीं हो पाए। शम्सी ने विभिन्न मुस्लिम नेताओं को याद दिलाया कि सभी ने यह वादा किया था कि वे कोर्ट के फैसले को हर हाल में मानेंगे। शम्सी के मुताबिक सबको अपने वादे पर खरा उतरना चाहिए। शम्सी के अनुसार, 'इस विवाद को खत्म करने के लिए बोर्ड को पहल करनी चाहिए।'
युवा शिया मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व करने वाले हुसैनी टाइगर्स का मानना है, 'कोर्ट के आदेश ने देश को यह मौका दिया है कि दुनिया के सामने हम यह साबित कर सकें कि यह मुल्क सांप्रदायिक सौहार्द की ऐसी अनूठी मिसाल पेश कर सकता है, जिसमें मुस्लिम हिंदू मंदिर के निर्माण में सहयोग करें और हिंदू मस्जिद के निर्माण में। ऐसा करने से कोर्ट के आदेश का उसके भावों के साथ पूरा पालन भी हो जाएगा।' गौरतलब है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने 30 सितंबर को सुनाए गए अपने फैसले में कहा था कि विवादित ज़मीन को तीन हिस्सों में बांटते हुए एक हिस्सा रामलला विराजमान, दूसरा निर्मोही अखाड़े और तीसरा हिस्सा सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड को दे दिया जाए। साथ ही कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि बाबरी मस्जिद जिस जगह पर मौजूद थी, वह भगवान राम का जन्मस्थान है।
युवा शिया मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व करने वाले हुसैनी टाइगर्स का मानना है?
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