कैसी आज़ादी?

आज़ादी की इस 64 वीं सालगिरह पर एक सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश में हैं कि आख़िर कितने आज़ाद हैं हम?

कलंक से मुक्ति मिले तो...

मेरा नाम जोगेश्वरी है. मेरी उम्र 32 साल है और मैं उत्तरप्रदेश के करहिया गांव की रहने वाली हूँ.
गांव के लोग मुझे ‘डायन’ के नाम से पुकारते हैं.
गांवभर के सामने मैं चीख़ती चिल्लाती रही लेकिन किसी ने मेरी कोई मदद नहीं की. मेरे पति से कहा गया कि अगर उन्होंने मुझे बचाने की कोशिश की तो मेरे बच्चों का भी यही हाल किया जाएगा.
जोगेश्वरी
आज़ादी के 63वें साल में मेरे लिए आज़ादी के दिन का मतलब है इस कलंक से मुक्ति क्योंकि मैं 'डायन' होने का नहीं नहीं बल्कि अंधविश्वास का दंड भोग रही एक औरत हूं.
मेरी बहन का घर मेरे पड़ोस में है. तीन साल के अंदर बीमारी से उसके दो बच्चों की मौत हो गई. कुछ दिन पहले तीसरी बेटी सोनिया ने भी बीमारी से दम तोड़ दिया. उसका इलाज गांव के एक झोलाछाप डॉक्टर के यहां चल रहा था.
अपने बच्चों की बीमारी से परेशान मेरे जीजा सहदेव एक ओझा के पास पहुंचे और मौतों की वजह जाननी चाही. ओझा ने सहदेव को बताया कि इन मौतों की वजह है मेरी जीभ पर बैठा एक भूत.
ओझा ने कहा कि अगर जल्द इस भूत से छुटकारा नहीं मिला तो मौत का सिलसिला जारी रहेगा. आनन-फ़ानन में पंचायत बुलाई गई और मुझे एक पेड़ से बांध दिया. फिर मेरा मुंह खोलकर उसमें चावल डाल दिए गए. अचानक कुछ लोगों ने मुझे पकड़ा और ब्लेड से मेरी जीभ काट दी.
जोगेश्वरी देवी
जोगेश्वरी अब अपने बच्चों को लिए गुमसुम बैठी रहती है.
गांवभर के सामने मैं चीखती चिल्लाती रही लेकिन किसी ने मेरी कोई मदद नहीं की. मेरे पति से कहा गया कि अगर उन्होंने मुझे बचाने की कोशिश की तो मेरे बच्चों का भी यही हाल किया जाएगा. ख़ून से लथपथ हालत में गांववालों ने मुझे एक कमरे में बंद कर दिया. मेरा मुंह सूज गया और मुझे सांस लेने में तकलीफ़ होने लगी.
इस घटना की जानकारी किसी तरह गोविंदपुरी गांव के एक सामाजिक कार्यकर्ता जगत नारायण और प्रभात तक पहुंची. वो पुलिस की टीम लेकर मुझे छुड़ाने आए और अस्पताल में भर्ती कराया.
मैं चाहती हूं कि जिन लोगों ने मेरे साथ ऐसा किया उन्हें इस किए की सज़ा मिले.
ये कहानी अकेले मेरी नहीं. दूर-दराज़ गांव में न जाने कितनी औरतों को डायन ठहराकर मार दिया जाता है.
गांवों में आज भी औरत का जन्म दुख झेलने के लिए ही होता है. सच तो ये है कि भारत आज़ाद हो या ग़ुलाम हमारे लिए न कुछ बदला है न बदलेगा.

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