अनाज भंडारण की समस्या

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[केंद्र और राज्य सरकारों से खाद्यान्न भंडारण की क्षमता बढ़ाने के उपाय करने की अपेक्षा कर रहे हैं राजीव शुक्ला
सर्वाेच्च न्यायालय का यह आदेश सुनने में तो अच्छा लग सकता है कि जो अनाज खराब हो रहा है उसे गरीबों में बांट दिया जाए, लेकिन हकीकत में ऐसा करना आसान नहीं होगा। तथ्यों के मुताबिक इस साल मात्र 7 हजार मीट्रिक टन अनाज खराब हुआ है। पहले 2 लाख मीट्रिक टन अनाज खराब होता था। पिछले कुछ सालों में तमाम नए गोदामों का निर्माण किया गया है और अनाज के भंडारण की क्षमता काफी बढ़ गई है। फिर भी सात हजार मीट्रिक टन अनाज भी क्यों खराब होना चाहिए? करोड़ों गरीब लोगों के लिए सात हजार मीट्रिक टन अनाज कुछ भी नहीं हैं। जिस इलाके में सरकारी ट्रक इसे मुफ्त बांटने जाएंगे वहीं आपा-धापी मच जाएगी और जिन इलाकों में नहीं जाएंगे वहां हंगामा होगा। किस आधार पर आप इस बात का चयन करेंगे कि किन गरीबों को मुफ्त अनाज दिया जाए और किन्हें न दिया जाए? गरीबी की रेखा के नीचे रहने वालों के लिए दो रुपये प्रति किलो के हिसाब से 35 किलो अनाज हर महीने दिया जा रहा है। ऐसा अनाज जिसके भंडारण के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के पास व्यवस्था न हो वे इस बचे हुए अनाज को इसी कोटे में डालकर दो रुपये के भाव से गरीब लोगों को दे सकती हैं। 35 किलो के बजाय अगर हर महीने एक गरीब परिवार को 40 किलो अनाज मिल जाता है तो यह तरीका सही रहेगा। मुफ्त में बांटने की बात कारगर नहीं हो सकती है। वैसे भी जो अनाज सरकार को 16 रुपये प्रति किलो पड़ता है उसे वह दो रुपये प्रति किलो के हिसाब से गरीबी की रेखा से नीचे वालों को देती है। अर्थात हर एक किलो पर 14 रुपये सरकार अपनी जेब से भरती है। जल्दी ही सोनिया गांधी के निर्देश से खाद्य सुरक्षा बिल भी आने वाला है। इसमें इस बात की गारंटी की जाएगी कि कोई भी व्यक्ति भूख से नहीं मरेगा। उस हालात में भी अनाज की काफी जरूरत सरकार को पड़ेगी।
यह बात सही है कि इस बार पैदावार अच्छी हुई है और 6 करोड़ मीट्रिक टन अनाज अब तक सरकार किसानों से खरीद चुकी है। सरकार के पास करीब 4.15 करोड़ मीट्रिक टन के उचित भंडारण की क्षमता है और बाकी को तिरपाल आदि के जरिये खुले में रखा जा रहा है। इस खुले वाले अनाज में सात हजार मीट्रिक टन बारिश आदि से सड़ गया। कुछ अनाज चूहे भी खा जाते हैं। हालांकि यह भी आरोप है कि भारतीय खाद्य निगम के अफसर कुछ अनाज को चोरी से बाजार में बेच देते हैं और कागजों पर दिखा देते हैं कि उसे चूहे खा गए। चूंकि इस तरह की शिकायतें लंबे चौड़े स्टॉक के बारे में नहीं आई हैं इसलिए इस ओर इतना ध्यान नहीं दिया जा रहा है। सबसे ज्यादा शिकायत उत्तर-पूर्वी राज्यों के बारे में आती है। उन्हें केंद्र सरकार सस्ती दर पर गेहूं, चावल देती है ताकि असम, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, अरुणाचल, त्रिपुरा राज्यों की जनता को आसानी से अनाज मिल सके। शिकायत है कि यह अनाज दिल्ली से ही बड़े-बड़े व्यापारियों और मिल मालिकों को बेच दिया जाता है। इसमें इन राज्यों के आला अफसरों की मिलीभगत रहती है। इस तरह की गतिविधियों पर रोक लगनी चाहिए। इसमें कोई शक नहीं है कि देश में गोदामों की लगातार कमी रही है। मुझे याद है कि वाजपेयी सरकार में कृषि मंत्री नीतीश कुमार ने एक बार राज्यसभा में बताया था कि भंडारण की क्षमता न होने की वजह से करीब दो लाख टन अनाज उन्हें समुद्र में फिंकवाना पड़ रहा है। हमारे किसान मेहनत करके पैदावार बढ़ाते हैं तथा अच्छे दाम देकर सरकार उनका अनाज खरीद लेती है वरना प्राइवेट एजेंट बहुत सस्ते में गांव से उनका अनाज लेते हैं। सरकार अनाज तो खरीद लेती थी, लेकिन रखने के लिए उसके पास उतनी जगह नहीं होती थी।
पिछले छह सालों में तमाम गोदामों का निर्माण किया गया है और उसी के कारण पहले जहां दो लाख मीट्रिक टन अनाज सड़ता था वहींअब यह संख्या घटकर सात हजार मीट्रिक टन तक पहुंच गई है। फिर भी खुले में अनाज रखने को बंदोबस्त ठीक नहीं है। अभी भी सरकार को करीब दो लाख मीट्रिक टन अनाज अंदर रखने की व्यवस्था और करनी चाहिए। अंदर अनाज रखने वाले गोदामों में ऐसी तकनीक बनानी चाहिए ताकि 5 साल तक अनाज न खराब हो। अब सरकार ने नई योजना की घोषणा की है, जिसमें लोगों के लिए व्यापार की बड़ी अच्छी सुविधा है। हाल में संसद में सरकार ने घोषणा की है कि यदि कोई व्यक्ति अपना गोदाम बनाएगा तो सरकार उसे दस साल के लिए कम से कम किराए पर ले लेगी, भले ही उसमें वह अपना अनाज रखे या न रखे। उस व्यक्ति को कम से कम दस साल तक गोदाम का किराया मिलता रहेगा। यह एक अच्छी योजना है और ज्यादा से ज्यादा लोगों को गोदाम बनाकर सरकार को किराए पर दे देना चाहिए।
इसी तरह कोल्ड स्टोरेज को भी किराए पर लेने के लिए सरकार तैयार हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने तो यहां तक कहा है कि यदि अनाज रखने की पूरी सुविधा नहीं है तो लोगों के घरों में अनाज रखवा देना चाहिए और सरकार उसका किराया उन्हें दे दे। मुझे नहीं लगता है कि यह कारगर उपाय हो सकता है। बेहतर होगा कि राज्य सरकारें भी इस तरह की योजना अपने यहां शुरू करे। अनाज को चूहों, कीड़ों से बचाने के लिए कई उपाय करने पड़ेंगे जिसके लिए रिसर्च जरूरी है। अब भारत के किसानों को दालों की पैदावार पर खास ध्यान देना होगा। सबसे कम दाल भारतीय किसान बोता है, जबकि सबसे ज्यादा दाल भारतीय खाते हैं। यह बेमेल कब तक चलेगा।
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