लालू -मुलायम की दोस्ती पर लगी फिरकापरस्त ताक़तों की नज़र
https://tehalkatodayindia.blogspot.com/2010/08/blog-post_08.html
lनई दिल्ली।। पिछले दिनों संसद में लगभग हर मुद्दे पर एकसाथ आवाज उठाने वाले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री ल
ालू प्रसाद यादव और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की दोस्ती पर खतरे के बादल मंडराते नजर आ रहे हैं। इसकी वजह है, इस साल बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव। दरअसल,राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खोने वाले आरजेडी अध्यक्ष लालू चाहते हैं कि मुलायम बिहार चुनाव से खुद को अलग रखें। जबकि मुलायम बिहार के जरिए अपनी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाना चाहते हैं। मुलायम सिंह यादव ने इस संवाददाता से कहा- हम बिहार चुनाव अवश्य लड़ेंगे। समाजवादी पार्टी इसकी तैयारी कर रही है। हम पूरी ताकत से मैदान में उतरेंगे। किसी भी दल से चुनावी गठबंधन के सवाल पर उनका कहना था कि हमने अभी कोई फैसला नहीं किया है। संसदीय दल की बैठक में फैसला करेंगे। मुलायम का कहना है कि बिहार में समाजवादियों की जड़ें काफी गहरी हैं। हम कोशिश करेंगे कि उनकी उम्मीदों पर खरे उतरें।
समाजवादी पार्टी का प्रतिनिधित्व उत्तर प्रदेश के बाहर महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और उत्तराखंड में है। हालांकि पिछले विधानसभा चुनावों में मध्य प्रदेश और उत्तराखंड में उसे वांछित सफलता नहीं मिली। लेकिन वह बिहार में छह प्रतिशत वोट ले आती है, तो उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल सकता है।
मुलायम की ही तरह यादव और मुसलमानों की राजनीति पर निर्भर लालू नहीं चाहते कि मुलायम बिहार के अखाड़े में उतरें। रामविलास पासवान को राज्यसभा पहुंचा कर अपने पीछे खड़ा कर चुके लालू नीतीश से कुर्सी छीनने की लड़ाई में और पार्टनर नहीं चाहते। अगर मुलायम ने अकेले दम पर प्रत्याशी उतार दिए तो नीतीश को लालू की चुनौती कमजोर हो सकती है। और मुलायम के साथ समझौता किया तो लालू को सत्ता में भी समझौता करना पड़ सकता है।
लालू की पार्टी बिहार के अलावा झारखंड, मणिपुर ओर नगालैंड में भी मान्यता प्राप्त पार्टी है। लेकिन पिछले चुनाव में झारखंड में लालू को जो झटका मिला है, उससे उनकी मान्यता वहां खत्म हो गई है। लालू अब कोई जोखिम नहीं लेना चाहते हैं। इसके लिए वह मुलायम पर डोरे डाल रहे हैं।
मुलायम की ही तरह यादव और मुसलमानों की राजनीति पर निर्भर लालू नहीं चाहते कि मुलायम बिहार के अखाड़े में उतरें। रामविलास पासवान को राज्यसभा पहुंचा कर अपने पीछे खड़ा कर चुके लालू नीतीश से कुर्सी छीनने की लड़ाई में और पार्टनर नहीं चाहते। अगर मुलायम ने अकेले दम पर प्रत्याशी उतार दिए तो नीतीश को लालू की चुनौती कमजोर हो सकती है। और मुलायम के साथ समझौता किया तो लालू को सत्ता में भी समझौता करना पड़ सकता है।
लालू की पार्टी बिहार के अलावा झारखंड, मणिपुर ओर नगालैंड में भी मान्यता प्राप्त पार्टी है। लेकिन पिछले चुनाव में झारखंड में लालू को जो झटका मिला है, उससे उनकी मान्यता वहां खत्म हो गई है। लालू अब कोई जोखिम नहीं लेना चाहते हैं। इसके लिए वह मुलायम पर डोरे डाल रहे हैं।
पिछले सप्ताह संसद में वह मुलायम से मिले भी थे। उनके विश्वस्त प्रेमचंद गुप्ता भी उनके साथ थे।मुलायम बिहार के उन वर्गों पर नजर गड़ा रहे हैं, जिन्हें अब तक उपेक्षित रखा गया है। इनमें नाई, जुलाहा एवं अन्य जातियां शामिल हैं। मुसलमानों से खुली माफी के बाद उनके प्रति देशभर के मुसलमानों का नजरिया बदला है। बिहार के मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग मुलायम से प्रभावित है।
सूत्रों के मुताबिक एसपी नेताओं का एक वर्ग इस पक्ष में है कि बिहार में अकेले दम पर चुनाव में उतरा जाए। और यदि मुलायम लालू की ओर झुकते भी हैं तो सीटों में बड़ा हिस्सा अपने लिए लें। फैसला क्या होगा, यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन इतना साफ है कि अगर मुलायम अड़ गए तो लालू को परेशानी में पड़ जाएंगे। फिर दोस्ती कैसे चलेगी?
सूत्रों के मुताबिक एसपी नेताओं का एक वर्ग इस पक्ष में है कि बिहार में अकेले दम पर चुनाव में उतरा जाए। और यदि मुलायम लालू की ओर झुकते भी हैं तो सीटों में बड़ा हिस्सा अपने लिए लें। फैसला क्या होगा, यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन इतना साफ है कि अगर मुलायम अड़ गए तो लालू को परेशानी में पड़ जाएंगे। फिर दोस्ती कैसे चलेगी?