जब दिया रंज बुतों ने तो खुदा याद आया

फ़ज़ल इमाम मल्लिक
हालात बदल गए हैं, माहौल भी और संघ परिवार का टोन भी। भारतीय जनता पार्टी का चाल, चरित्र और चेहरा तो काफ़ी पहले ही बदल गया था। लेकिन अब बदले-बदले मेरे सरकार नज़र आते हैं। यह भी सही है कि उग्रता में किसी तरह का बदलाव नहीं आया है लेकिन लहजा बदला-बदला है। नया-नया लहजा न सुना हुआ, न कहा हुआ। कल तक इस्लामी आतंकवाद का फ़िक़रा उछालते हुए भाजपा और संघ परिवार मुखर हो कर कहते थे कि हर मुसलमान आतंकवादी नहीं है लेकिन जो लोग भी पकड़े गए हैं वे मुसलमान हैं। पर अब टोन बदल गया है और दहशतगर्दी की परभिाषा भी। संध परिवार से जुड़े बड़े से लेकर छुटभैय्ये नेताओं तक को रातोंरात इल्हाम हो गया कि दहशतगर्दी और आतंकवाद से किसी धर्म को नहीं जोड़ा जा सकता। क़रीब साल भर पहले भाजपा के थिंक टैंक कहे जाने वाले सुधींद्र कुलकर्णी से मुलाकात हुई थी। यह भी माहौल में आए बदलाव का नतीजा है कि अब सुधींद्र कुलकर्णी भी भाजपा में नहीं हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री और मेरे मित्र संजय पासवान के साथ सुधींद्र कुलकर्णी के साथ उनके घर जाना हुआ था। उस मुलाक़ात के दौरान सुधींद्र कुलकर्णी से मुसलमानों से जुड़े मसलों पर देर तक बात हुई थी। तब मैंने उनसे कहा था कि इस देश के मुसलमानों की सबसे बड़ी बदक़िस्मती यह रही कि देश का बंटवारा हो गया और पाकिस्तान वजूद में आया। अगर ऐसा नहीं हुआ होता तो मुसलमानों को शक की निगाह से नहीं देखा जाता। पाकिस्तान बनाने का जिन लोगों ने भी सपना देखा था वे या तो अब इस दुनिया में नहीं है या फिर विभाजन के समय ही वे पाकिस्तान चले गए थे। पर विभाजन की पीड़ा को हम आज भी झेल रहे हैं और हर छोटी-बड़ी घटना के बाद हम पर एक बड़ा सवालिया निशान लगा दिया जाता है और हमारी राष्ट्रीयता पर कई तरह से शक किया जाने लगता है। मैंने उनसे 9/11 हमले के बाद अमेरिका के इजाद किए शब्द इस्लामी आतंकवाद पर भी कड़ी आपत्ति गर्द की थी। मैंने कहा था कि अमेरिका ने जिस इस्लामी आतंकवाद की नई परिभाषा गढ़ी है वह सिरे से ग़लत है। कोई भी मजÞहब आतंकवादी नहीं हो सकता। एक मुसलमान तो आतंकवादी हो सकता पर इस्लाम नहीं, ठीक उसी तरह जिस तरह एक हिंदू तो आतंकवादी हो सकता है पर हिंदू धर्म नहीं। पर अफ़सोस की बात यह है कि अमेरिका के चलाए इस शब्द को भारतीय जनता पार्टी और संघ परविार ने रातों-रात, हाथों-हाथ लिया और भारत में इसे नए ब्रांड की तरह चलाया। जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए था। हर धर्म दूसरे धर्म का आदर करना सिखाता है पर सियासत में शायद इसकी कोई जगह नहीं है इसलिए भारतीय जनता पार्टी भी अपनी सियासत के लिए इस ह्यइस्लामी आतंकवादह्ण को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने में किसी तरह की कोताही नहीं करता रहा। सुधींद्र कुलकर्णी ने इस पर बहुत ज्Þयादा कुछ कहा तो नहीं था पर उन्होंने मेरी बात धैर्य के साथ सुनी थी। बात आई-गई हो गई। पर अब आतंकवाद का जो नया चेहरा सामने आया है उसने अचानक ही धर्म की परिभाषा बदली है और आतंकवाद की भी। मालेगांव बम विस्फोटों में साध्वी और साधुओं की गिरफ्तारी के बाद अचानक ही स्थितियां बदलीं और आतंकवाद का नया चेहरा सामने आया। यह चेहरा भगवा आतंकवाद का है। हर धमाके के बाद भाजपाई नेता चैनलों पर मुखर होकर इस्लामी आतंकवाद का फ़तवा दिया करते थे। लेकिन अब जब हिंदू आतंकवाद की बात कही जाने लगी तो संघ परिवार और भाजपाई नेता के सुर ही बदले हुए हैं। प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे लालकृष्ण आडवाणी से लेकर सरसंघ चालक सुदर्शन तक बिलबिलाए हुए हैं और हर जगह कहते फिर रहे हैं कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है। कल तक यही भाजपाई नेता और संघ परिवार के लोग कहते नहीं थक रहे थे कि यह हम नहीं कहते कि सब मुसलमान आतंकवादी होते हैं। लेकिन सचाई है कि जितने भी आतंकवादी पकड़े गए हैं सब मुसलमान हैं। इसे लेकर कई बार मज़हब पर भी सवाल उठाए गए और इस्लामी आतंकवाद को बढ़-चढ़ कर प्रसारित-प्रचारित किया गया। चैनलों में तुर्रमख़ान बने पत्रकार भी इस इस्लामी आतंकवाद को ले उड़े और अपने-अपने तरीक़े से इसे परिभाषित किया। नतीजे में भारत में रहने वाले मुसलमानों के सामने भी कई-कई सवाल खड़े हो गए।
नहीं, ऐसा नहीं है कि पूरे भारतीय समाज ने मुसलमानों की देशभक्ति पर सवाल खड़े कर डाला था। ऐसे लोगों की तादाद न के बराबर थी पर यह भी सच है कि गुजरात में नरेंद्र मोदी के सत्ता में लौटने पर ऐसे लोगों ने भी राहत की सांस ली थी जो धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिक सौहार्द्र का राग अलापते नहीं थकते हैं। बहुतों को हैरत होगी लेकिन कई वामपंथी विचारधारा के लोगं ने भी कहा था, आतंकवादी ताकÞतों (यहां मुसलमानों पढ़ें) से निपटने के लिए मोदी का सत्ता में लोटना ज़रूरी था। अमेरिका के ईजाद किए और संघ परविार के चलाए शब्द इस्लामी आतंकवाद, इसका एक बड़ा कारण रहा। पर अब वही संघ परविार ने यू टर्न ले लिया है। बिलबिलाए भाजपा नेता व संघ परिवार के सर संघचालक दुहाई और सफ़ाई देते फिर रहे हैं कि धर्म का आतंकवाद से कोई रिश्ता नहीं होता। मक्का मस्जिद और अजमेर बम धमाकों में चार्ज शीट में संघ से जुड़े नेताओं का नाम आने के बाद तो यह बिलबिलाहट और भी बढ़ गई है। मालेगांव को लेकर भारतीय जनता पार्टी का व्यवहार निहायत ही गैरजिम्मेदाराना रहा। कल तक भाजपा यूपीए सरकार को इस बात के लिए कोसती थी कि आतंकवाद पर उसका रवैया नरम है। लेकिन यही पार्टी एक आतंकवादी घटना के आरोपियों का खुल कर बचाव करने में जुटी है! साफÞ है कि भाजपा को अपनी विश्वसनीयता की कोई परवाह नहीं है। उसे चिंता है तो बस यह थी कि कैसे मालेगांव को एक सांप्रदायिक मुद्दे में बदल दिया जाए। शुरू में भाजपा नेताओं ने इस बात से ही इनकार कर दिया था कि वे प्रज्ञासिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित को जानते हैं। लेकिन उनके इस इनकार की कलई जल्द ही खुल गई। फिर उन्होंने यह कहना शुरू किया कि आतंकवाद का धर्म से कोई रिश्ता नहीं होता। यह बिल्कुल ठीक तर्क था, हालांकि पार्टी ने इसे महजÞ अपने बचाव में इस्तेमाल किया था। यों यह भाजपा ही थी जो आतंकवाद को ख़ास धर्म से जोड़ कर देखने का आग्रह करती आ रही थी। लेकिन अपने शुरुआती बयानों के विपरीत भाजपा नेताओं ने आतंकवाद को धर्म से जोड़ने का अभियान नए सिरे से शुरू कर दिया। जो पार्टी कल तक देश की आंतरिक सुरक्षा को सबसे बड़ा मसला मानती थी अब वह ह्यअपने आतंकवादीह्ण और ह्यउनके आतंकवादीह्ण के प्रचार में जुट गई। भाजपा ने मालेगांव को एक सांप्रदायिक रंग देकर चुनावों में भुनाने की भी कोशिश की। लेकिन उसका यह दांव भी उलटा पड़ा। यह बड़े अफÞसोस की बात है कि जिस कांड की भाजपा ने कभी कड़े शब्दों में निंदा की थी, उसके आरोपियों का बचाव करने में उसे कोई हर्ज नहीं दिखाई देता। कÞायदे से पार्टी का रुख़ यह होना चाहिए था कि कÞानून को अपना काम करने दिया जाए। लेकिन पार्टी की निगाह में महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधक दस्ते की जांच एक राजनीतिक षड्यंत्र के सिवा कुछ नहीं है। अगर यह बात होती तो कर्नल पुरोहित से पूछताछ करने की इजाजÞत सेना नहीं देती। सब जानते हैं कि ठोस सबूत न हो तो फÞौज अपने एक अफÞसर को हिरासत में लेकर पूछताछ की अनुमति नहीं दे सकती। लेकिन संघ परिवार ने इसे सेना की छवि ख़राब करने की कोशिश बताया। जब यह दांव नहीं चला तो तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा कि उनकी पार्टी साधु-संतों की प्रतिष्ठा पर आंच नहीं आने देगी। लेकिन उन्हें याद रखना चाहिए कि न तो दयानंद पांडेय को हिंदू समाज ने अपना प्रतिनिधि माना है और न कÞानून नागरिकों में भेदभाव करता है। संघ परिवार की प्रचार-मुहिम में सबसे नई दलील यह है कि ये सभी आरोपी उनकी निगाह में निर्दोष हैं क्योंकि अभी अदालत ने इन्हें दोषी नहीं ठहराया है। लेकिन सवाल है कि अदालत के किसी फÞैसले पर पहुंचने से पहले वे उनके निर्दोष होने का प्रचार क्यों कर रहे हैं। कुछ दिन पहले दिल्ली विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं ने एक गोष्ठी में शिरकत करने गए जÞाकिर हुसैन कॉलेज के व्याख्याता एसएआर गिलानी को अपमानित किया था और उन्हें बोलने नहीं दिया। भाजपा के किसी भी नेता ने गिलानी पर हमले की निंदा में एक शब्द नहीं कहा। गिलानी का गुनाह क्या था? सही है कि वे संसद पर हमले के आरोपियों में से एक थे, पर सुप्रीम कोर्ट उन्हें निर्दोष ठहरा चुका है। साफÞ है कि मालेगांव में भाजपा को आतंकवाद नहीं, हिंदुत्व का नया हथियार नजर आया। जो पार्टी मालेगांव या दूसरी आतंकवादी घटनाओं में हिंदू संगठनों के शामिल होने की सच्चाई को स्वीकार करने को तैयार नहीं थी उससे हम आतंकवाद से लड़ने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं!
मालेगांव विस्फोट के सिलसिले में पकड़ी गई कथित साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और फ़जर्Þी शंकराचार्य दयानंद पांडेय की गिरफ्Þतारी ने हिंदू संगठनों के साथ-साथ संघ परिवार को भी कठघरे में खड़ा कर दिया था। अब मक्क मस्जिद, समझौता एक्सप्रेस और अजमेर बम धमाकों में संघ से जुड़े बड़े नेताओं का नाम सामने आने के बाद तो उनकी देशभक्ति पर और भी गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
ज़ाहिर है कि आतंकवाद के इन नए चेहरों के सामने आने से संघ परिवार के नेताओं की नींद उड़नी ही थी, वैसा हुआ भी। हम भूले नहीं है कि साध्वी की गिरफ्Þतारी के बाद धीरे-धीरे साध्वी प्रेम में सब चेहरे एक मंच पर जमा होकर ह्यसाध्वी रागह्ण अलापने लगे और अदालत के फैÞसले से पहले ही साध्वी और उनके साथियों को बेक़सूर ठहराने की ओछी और ग़लीज़ क़वायद में जुट गए। क्या लालकृष्ण आडवाणी और क्या सुदर्शन, राजनाथ सिंह से लेकर नरेंद्र मोदी तक, सब साध्वी को बेक़सूर बता कर एटीएस अधिाकरियों के नार्को टेस्ट की वकालत तक करने लगे। साध्वी की गिरफ्Þतारी पर लंबी चुप्पी के बाद लालकृष्ण आडवाणी ने भी अपना मुखौटा उतारा और संघ परिवार के दूसरे नेता के साथ क़दमताल करने लगे। देश के प्रधानमंत्री का सपना पालने वाले लालकृष्ण आडवाणी ने भी साध्वी के बेक़सूर होने का फ़तवा सादिर कर एक तरह से देश की अदालत और ़क़ानून को ठेंगे पर रख दिया। आडवाणी साध्वी पर किए गए अत्याचार की निंदा करते हुए सामने आए। अदालत में दाख़िल साध्वी के हलफÞनामा पर लालकृष्ण आडवाणी ने ऐसा रंग बदला कि प्रधानमंत्री तक को फÞोन कर डाला। मुझे नहीं माूलम कि इससे पहले आडवाणी आतंकवादियों के नाम पर गिरफ्Þतार और अत्याचर सहने वाले कितने मुसलमानों के पक्ष में बोले थे या फिर प्रधानमंत्री को फ़ोन किया था। पर साध्वी और उनके साथियों के पक्ष में आडवाणी और भगवा ब्रिगेड खुल कर सामने आया। बटला हाउस मामले पर कई संगठनों और दलों की जांच की मांग ठुकराने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मन में भी साध्वी प्रेम उमड़ा और लालकृष्ण आडवाणी को जांच का भरोसा तक दे डाला। यह हिंदुत्वाद का नरम चेहरा था और यह चेहरा उस कांग्रेस का है जो धर्मनिरपेक्षता का ढिंढोरा पीटते हुए नहीं थकती है। पर सत्ता ने उसके चेहरे पर से भी उस बारीक और झीने नक़ाब को हटा कर उस चेहरे को सामने कर दिया जिसे हम-आप देख नहीं पाते। एक ही देश में दो क़ौमों के लिए दो नियम, दो ़क़ानून, दो क़ायदे यानी अगर मुसलमान आतंकवाद के नाम पर गिरफ्Þतार होता है और उसे प्रताड़ित किए जाने या फ़र्ज्Þाी मुठभेड़ में मारे जाने की जांच की मांग की जाती है तो इस देश का मुखिया उसे ठुकरा देता है और मुखिया का सपना देखने वाला दूसरा व्यक्ति ख़ामोश रहता है पर ऐसा ही कुछ हिंदुओं के साथ होता है तो लालकृष्ण आडवाणी मर्माहत होकर प्रधानमंत्री को फ़ोन करते हैं और प्रधानमंत्री उन्हें जांच का भरोसा दिलाते हैं। यह लोकतंत्र का एक अलग चेहरा है जहां कांग्रेस व भाजपा एक ही प्लेटफÞार्म पर साथ-साथ खड़े सत्ता-सत्ता का खेल खेलने में जुटे दिखाई देते हैं।
हैरत तो इस बात की है कि लालकृष्ण अडवाणी को एटीएस और अदालत से ज्Þयादा विश्वसनीय साध्वी का हलफÞनामा लगा था और उन्होंने लगे हाथ मालेगांव विस्फोट की जांच एटीएस से लेकर न्यायिक जांच की मांग कर डाली। हैरत इसलिए भी ज्Þयादा है कि यह एक ऐसे नेता का बयान है जो कुछ साल पहले तक देश के गृहमंत्री थे। आतंकवाद को रोकने के लिए ख़ासतौर से बनाए गए दस्ते के हाथ से बम विस्फोट की जांच का मामला लेकर वे न्यायिक जांच की मांग कर रहे थे क्योंकि उनका मानना था कि जिस घटना में संघ परिवार से निकली और जुड़ी एक आध्यात्मिक साध्वी शामिल हो वह आतंकवादी तो हो ही नहीं सकता। जÞरूर वह राजनीतिक मामला है और इसलिए उसकी न्यायिक जांच होनी चाहिए। फिर संघ परिवार के दूसरे संगठन और नेता भी पूरे लाव लश्कर लेकर एटीएस के ख़िलाफ़ मैदान में उतर गए। संघ परिवार के नेता ने एटीएस की जांच को बदनाम करने के लिए हर हथियार का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि एटीएस को जांच और नार्को टैस्ट में एक भी सबूत नहीं मिला है। इसीलिए बार-बार जांच कराई जा रही है। मुसलमान आतंकवादियों की तो एक बार भी नार्को जांच नहीं कराई गई। लेकिन एक साध्वी की चार बार नार्को जांच कराई गई। यह सब उन्हें फंसाने के लिए तो ही किया जा रहा है। जांच में एक भी सबूत मिला हो तो उसे देश के सामने एटीएस क्यों नहीं रखता। दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। पर असल बात तो यह है कि कोई हिंदू आतंकवादी और राष्ट्र विरोधी हो ही नहीं सकता। फिर साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर तो हिंदूवादी राष्ट्रवादी संगठनों से निकली धार्मिक आध्यात्मिक साधिका हैं। उन्हें आतंकवादी बताना सरासर गÞलत और हिंदूवादी संगठनों को बदनाम करने की अपमानजनक साजिश है। प्रवीण तोगड़िया से लेकर संघ के प्रवक्ता राम माधव तक ने एटीएस पर जम कर कोसा।
दिलचस्प बात यह है कि न तो लालकृष्ण आडवाणी और न ही प्रवीण तोगड़िया और न राम माधव को पता है कि गिरफ्Þतार साध्वी और उनके अभिनव भारत के लोगों के पास से जांच में क्या मिला है। लेकिन सब एक ही राग अलाप रहे हैं कि यह सब कुछ हिंदुओं को बदनाम करने की साज़िश है और जांच में कुछ नहीं मिला है और साध्वी ही नहीं सेना को भी बदनाम करने के लिए सारा खेल रचा गया है। इन लोगों का मानना है कि न सिर्फ रिटायर अफसर रमेश उपाध्याय को पकड़ा गया है, सेवारत लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित को भी बम विस्फोटों में फंसाया जा रहा है। जो लोग आतंकवादियों से राष्ट्र की रक्षा में लगे हुए हैं उन्हें ही आतंकवादी बता कर सेना का मनोबल गिराया जा रहा है। सेना वाले भले ही कहते रहे हों कि यह गंभीर मामला है और हम तत्काल इसे ठीक करने के लिए जÞरूरी कदम उठा रहे हैं। लेकिन संघ वालों को कौन समझाए। वे तो अपने को सबसे बड़ा देशभक्त मानते हैं। इसलिए वे यह कैसे मान लेते कि कोई कार्यरत लेफ्टिनेंट कर्नल आतंकवादियों से मिला भी हो सकता है। इसलिए वे प्रसाद श्रीकांत पुरोहित के पक्ष में खुल कर सामने आ गए। उनका मानना था कि मालेगांव बम विस्फोट के सिलसिले में पकड़े गए लोगों की जांच में जो भी जानकारी मिली है उसे देश के सामने रखा जाए। ये नहीं मानते कि आतंकवाद निरोधक दस्ता कÞानून से बनाया गया है और कÞानूनन बनी जांच एजंसी सीधे न्यायालय के प्रति जवाबदेह है। अगर वे सीधे न्यायालयों में जाकर अपनी जांच और खोजबीन के निष्कर्ष और अपनी कारर्वाई को कÞानून के निर्णय के हवाले नहीं करेंगी तो देश में कÞानून और व्यवस्था नहीं रह सकती। मुंबई के आतंकवाद निरोधक दस्ते ने जो भी किया है उसे अदालत के सामने पेश भी किया है। अदालत की इजाजÞत से ही पकड़ा गया हर व्यक्ति उसकी हिरासत में है। अदालत ने ही नार्को और ब्रेन मैपिंग टैस्ट की इजाजÞत दी थी।
संघ परिवारी क्यों चाहते हैं कि उनके संगठनों या कामकाज से जुड़े रहे लोगों पर देश के क़ानून उसी तरह लागू न किए जाएं जैसे कि वे दूसरे किसी भी नागरिक पर लागू किए जाते हैं? उनका मानना है कि हिंदू आतंकवादी नहीं हो सकता लेकिन मुसलमान तो मुसलमान होने के कारण ही आतंकवादी और राष्ट्रविरोधी हो जाता है। तो फिर मालेगांव, मोडासा, नांदेड में बम विस्फोट कर लोगों को मारने वाले कौन हैं? उनमें और दिल्ली, अहमदाबाद, मुंबई, जयपुर, बंगलूर आदि में बमों से लोगों को उड़ाने वालों में क्या फÞकर्Þ है? है? फÞर्कÞ यह है कि दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद में बम विस्फोट करने वाले मुसलमान थे। वे बम विस्फोट करके भारत नाम के राष्ट्र को तोड़ना चाहते हैं। जबकि मालेगांव, मोडासा आदि में बम विस्फोट करने वाले अपने राष्ट्र पर हो रहे आतंकवादी हमलों से ग्Þाुस्से में आए हिंदू राष्ट्रवादी हैं जो हमलावरों से बदला लेकर उन्हें सबकÞ सिखाना चाहते हैं। इसलिए दोनों को आप एक-आतंकवादी श्रेणी में नहीं रख सकते। दिक्ÞकÞत यह है कि न तो भारत का संविधान न कÞानून न यहां के लोग न उनकी परंपरा हिंदुत्ववादियों के इन विचारों को मंज्Þाूर करती है। भारत में संविधान और क़ानून के सामने सब बराबर हैं।
भाजपा नेताओं को इस बात पर एतराज़ है कि मालेगांव, मक्का मस्जिद, अजमेर या समझौता एकस्प्रेस में जो धमाके हुए उसे हिंदू आतंक कहा जा रहा है। उन्हें बुरा तभी लगता है जब बात हिंदू आतंक की होने लगती है। अस्सी से सिख आतंकवाद और नब्बे से मुसलिम या इस्लामी आतंकवाद के मुहावरे चल रहे हैं। लेकिन न तो कभी
लालकृष्ण आडवाणी ने उसके खिलाफ सार्वजनिक अभियान चलाया और न ही भाजपा का छोटा या बड़ा नेता सामने आया जो कहे कि नहीं सारे मुसलमान आतंकवादी नहीं है। लेकिन अब छुटभैया से लेकर बड़े नेताओं का सुर बदल गया है। वे अब कहते फिर रहे हैं आतंकवाद हिंदू या मुसलिम नहीं होता। यह भी इसलिए क्योंकि हिंदू ातंकवादी पकड़े गए हैं और उनके ख़िलाफ़ अदालत में चाजर्शीट भी दाख़िल कर दी गई है। याद करें साध्वी के बाद दयानंद पांडेय पकड़े गए थे जो खुद को शंकराचार्य कहते हैं लेकिन उनकी जो बातचीत सामने आई उससे साफÞ होता है कि वह हिंसा का पैरोकार है और संघ के नरम माने जाने वाले नेताओं को भी मरवाने पर उतारू था। फिर साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर है जो मालेगांव में बम फोड़ने वाले से पूछ रही हैं कि इतने कम लोग क्यों मरे? सिर्फÞ पांच। तो ये उन मुसलमानों की तरह ही धर्म के ध्वजवाहक हैं जो जेहाद के लिए मासूमों का ख़न बहाते हैं। इस तरह के आतंकवाद की इजाज़त न तो इस्लाम देता है और न ही हिंदू धर्म। लेकिन फिर भी संघ परिवार और भारतीय जनता पीर्टी साध्वी जैसे लोगों के पक्ष में खड़ी हो कर धर्म की दुहाई दे तो समझा जा सकता है कि उनके यहां धर्म को किस तरह से परिभाषित किया जाता है। लाख भाजपा ख़ुद को संघ से अलग कर के दिखने की कोशिश करें और उसके नेता दलीलें दें कि संघ से वे संचालित नहीं होते हैं लेकिन भाजपा नेता आस्था में संघ परिवारियों से अलग नहीं हैं। वे सावरकर के सांप्रदायिक राष्ट्रवाद को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के नाम से चलाना चाहते हैं। वे अपने संघ परिवारियों की तरह कह नहीं सकते कि हिंदू कभी आतंकवादी और राष्ट्रविरोधी नहीं हो सकता क्योंकि वही तो राष्ट्र है। उन्हें भारतीय जनता पार्टी का नेता और लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र की सत्ता के दावेदार बने रहना है। वे हिंदू को राष्ट्र बना कर अपनी पार्टी को गैर-संवैधानिक और अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को असंभव नहीं बनाना चाहते। फिर भी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के हलफनामे के बहाने आतंकवाद निरोधक दस्ते की कारर्वाई को रद्द करने की मांग की है क्योंकि वे एक आध्यात्मिक महिला हैं। लेकिन सच पूछिए तो मालेगांव, अजमेर, मक्का मस्जिद और समझौता एक्सप्रेस धमाकों ने संघ और हिंदुत्व का असली चेहरा फिर देश के सामने रख दिया है। यह चेहरा उस चेहरे से अलग नहीं है जिसने 1948 में महात्मा गांधी के सीने में गोलियां उतारीं थी। इस चेहरे ने इस्लामी आतंकवाद के सामने हिंदू आतंकवाद को ला खड़ा किया है। यह बात दीगर है कि न तो इस्लाम ने और न ही हिंदू धर्म ने आतंकवाद की हिमायत की है। इसे उन्हें भी समझना होगा जो जेहाद के नाम पर मासूमों को वरग़ला रहे हैं और उन्हें भी जो आतंकवाद को आतंकवाद के ज़रिए ख़त्म करने के लिए हिंदू कट्टरवाद को उभार रहे हैं। देश के लिए दोनों ख़तकनाक है, इसे हमें समझना होगा।
वैसे लोग इन दिनों एक फ़िक़रा ठीक उसी तरह उछाल रहे हैं जिस तरह संघ परिवार और भाजपा से जुड़े लोग कुछ साल पहले तक उछालते थे। लोग कह रहे हैं कि यह सही है कि हर हिंदू आतंकवादी नहीं है लेकिन यह भी सही है कि जो हिंदू आतंकवादी गिरफ्Þतार हुए हैं उनका ताल्लुक़ आरएसएस से है, ऐसा क्यों ? संघ परिवार से जुड़े लोग इसका जवाब देंगे। इसका इंतज़ार रहेगा

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