कोई बताएगा, इनका गुनाह क्या है

भोपाल । ये न तो उस काली भयावह रात में बदहवास भागती भीड़ में शामिल चेहरे हैं और न कभी इन्होंने जीते जी, हत्यारी यूनियन कार्बाइड को चालू हालत में देखा। कोई बताएगा फिर ये बेचारे किस जुर्म की सजा पा रहे हैं? क्यूं इन्हें सांस लेने में दिक्कत होती है? क्यूं इनके पेट में असहनीय दर्द होता है? शारीरिक और मानसिक रूप से ये दूसरे बच्चों से क्यूं अलग हैं?
26 साल पहले 2-3 दिसंबर की रात बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनियन कार्बाइड के भोपाल स्थित कारखाने से निकली जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट ने एक नहीं तीन-तीन पीढि़यों का जीवन नर्क से बदतर कर दिया। वैज्ञानिक व चिकित्सकीय शोधों से प्रमाणित हो गया है कि मिथाइल आइसोसाइनेट का आनुवांशिक प्रभाव होता है। इसी के चलते गैस पीड़ितों की तीसरी पीढ़ी भी गंभीर बीमारियों का शिकार हो रही है। गैस की मार से करीब 25 हजार लोगों की उसी रात जान चली गई थी। जो बच गए वे हर पल ईश्वर को याद कर नासूर बन चुके रोगों के साथ जिंदगी के दिन काट रहे हैं।
भोपाल की गैस पीड़ित बस्तियों में कुछ बच्चे तो ऐसे भी मिल जाएंगे जिनके माता या पिता गैस कांड के समय पैदा भी नहीं हुए थे, लेकिन दादा-दादी या नाना-नानी की वसीयत में इन्हें कभी न खत्म होने वाले रोग उस रात ही मिल गए थे। यूनियन कार्बाइड कारखाने के सामने जेपी नगर वह बस्ती है जहां जहरीली गैस ने सबसे ज्यादा कहर बरपाया था। गैस से मरने वाले अभागे सबसे ज्यादा इसी बस्ती से ताल्लुक रखते हैं। आज भी यह बस्ती चलती-फिरती लाशों का रैन बसेरा है। इस बस्ती में एक-दो नहीं सैकड़ों लोग गैस जनित बीमारियों से पीड़ित हैं। इनमें कई ऐसे पीड़ित भी शामिल हैं, जिनकी उम्र 5 से 25 साल के बीच है। दिक्कत यह है किकोई भी सरकारी फार्मूला इन्हें गैस पीड़ित मानने को तैयार नहीं है, लिहाजा मुआवजा तो छोड़िए दवा तक के लिए उन्हें पैसे नहीं मिल रहे।
65 वर्षीय बाबू खां खुद कैंसर से पीड़ित हैं, उनकी 16 वर्षीय नातिन गुलफ्शां को पेट की गंभीर बीमारी है जबकि 10 वर्षीय नाती अरबाज विक्षिप्त है। बेटी सुरैया को भी दमा है। बाबू खां का इलाज तो मुफ्त में हो रहा है, लेकिन गुलफ्शां और अरबाज की फिक्र बाबू खां को हर रोज मौत के करीब ला रही है। याकूब का 15 वर्षीय बेटा शाहरुख आठवीं कक्षा का छात्र है लेकिन इस वर्ष वह एक दिन भी स्कूल नहीं जा सका क्योंकि उसकी किडनी में पस पड़ चुका है और उसकी खांसी भी थमने का नाम नहीं ले रही। बलराम और लीला बाई का 23 वर्षीय बेटा जगदीश शारीरिक विकास रुकने की वजह से दस साल से ज्यादा का नहीं दिखता। उनकी शादीशुदा बेटी राजकुमारी छह माह पहले दो साल के बेटे मोहित को छोड़, चल बसी। वह फेफड़े की गंभीर बीमारी से पीड़ित थी।
50 वर्षीय रशीदा बी के पैरों की सूजन ही नहीं जाती। बच्चों और बड़ों दोनों के पैरों में सुन्न होने की शिकायतें आम हैं। चार साल की मोना के दोनों पैरों में कुछ समय से दर्द रहने लगा है, डाक्टर समझ नहीं पा रहे हैं कि हो क्या रहा है? इससे भी बुरा हाल नौ साल के अभय और ग्यारह साल के विकास का है। दोनों ही अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकते, माता-पिता की मदद से ही वे उठ-बैठ पाते हैं। पिछले आठ माह से कैंसर पीड़ित शहजाद मरणासन्न अवस्था में पहुंच गया है। उसके पास इलाज के लिए पैसे नहीं हैं, लिहाजा वह घर पर बैठकर अपनी मौत की बाट जोह रहा है

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  1. bhai jee...iske jimmedar ko to hamari nakara sarkar ne sakusal desh ke bahar bhej diya tha..ab inke swastha ke liye hi kiya ja sakta hai aur kya kar sakte hai ham sabhi?

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